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ताओ उपनिषद भाग ४
स्त्री-पुरुष, या अगर हम विज्ञान की भाषा का उपयोग करें तो ऋण और धन विद्युत पोलेरिटीज हैं, विरोधी ध्रुव हैं। और जहां दोनों संतुलित होते हैं वहीं एक गहन, प्रगाढ़ शांति, और उस प्रगाढ़ शांति में एक क्रिएटिविटी, एक सृजनात्मक ऊर्जा का जन्म होता है। लाओत्से का नाम है : यिन और यान। इन्हें वह दो विरोधी तत्व कहता है। चाहे स्त्री-पुरुष कहें, चाहे ऋण-धन कहें। उसका शब्द है : यिन और यान। और लाओत्से कहता है, इन दोनों विरोधों के बीच जो लयबद्धता है वही ताओ है।
लेकिन हम या तो पुरुष होते हैं, या स्त्री होते हैं। हम एक ध्रुव से बंधे होते हैं, एक विरोधी अंग से। और इसलिए हम दूसरे विरोधी अंग की तलाश करते हैं। स्त्री पुरुष को खोज रही है। पुरुष स्त्री को खोज रहा है। जन्म मृत्यु को खोज रहा है; मृत्यु पुनः जन्म को खोज रही है। वह जो विरोधी है, उसके बिना हम अधूरे हैं। इसलिए उसकी खोज जारी रहती है।
यह थोड़ा समझने जैसा है कि हम सब जीवन में अपने से विपरीत को खोजते रहते हैं। आपकी सारी खोज विपरीत की खोज है। अगर आप गरीब हैं, दीन हैं, दरिद्र हैं, तो धन को खोज रहे हैं। पर बड़े मजे की बात है कि जिनके पास सच में धन हो जाता है वे दरिद्रता को खोजने में लग जाते हैं। महावीर हैं, बुद्ध हैं; इनके लिए धन का . आकर्षण नहीं है। ये परम दरिद्र होने की खोज कर रहे हैं। जीसस कहते हैं, धन्य हैं वे जो दरिद्र हैं।
हम जब भी कुछ खोजते हैं तो विरोध को खोजते हैं। और इससे बड़ी कठिनाइयां पैदा होती हैं। विरोधी को हम खोजते हैं, लेकिन विरोधी के साथ रहना एक महान कला है। क्योंकि वह विरोधी है। पुरुष स्त्री को खोज रहा है। आस्कर वाइल्ड ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि मैं स्त्री के बिना भी नहीं रह सकता, और स्त्री के साथ तो बिलकुल नहीं रह पाता। स्त्री के बिना रहना मुश्किल है; अधूरापन है। और स्त्री के साथ रहना बहुत मुश्किल है। क्योंकि विपरीत है, विरोध है। और हर बात में कलह है। विपरीत एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। लेकिन वे विपरीत हैं,
और जब निकट आएंगे तो कलह शुरू हो जाएगी। प्रेमियों की कलह अनिवार्य है। क्योंकि प्रेम का मतलब ही है कि विपरीत को आकर्षित किया है।
फ्रायड ने तो बड़ा ही निराशाजनक दृष्टिकोण लिया है; उसका कहना है कि आदमी कभी भी सुखी हो नहीं सकता। आदमी के होने का ढंग ऐसा है कि वह दुखी ही होगा। क्योंकि जो भी वह चाहता है अगर न मिले तो दुखी होता है, अगर मिल जाए तो भी दुखी होता है। और दो ही विकल्प दिखाई पड़ते हैं।
लाओत्से के हिसाब से एक तीसरा विकल्प है। और वह है : विरोध के बीच लयबद्धता। पुरुष जब तक स्त्री को खोजेगा, दुखी होगा। स्त्री जब तक पुरुष को खोजेगी तब तक दुखी होगी। और जब स्त्री-पुरुष के बीच की लयबद्धता को वे खोजने में लग जाते हैं तो सुख की पहली किरण उतरनी शुरू होती है। वास्तविक प्रेम का जन्म उस दिन होता है जिस दिन स्त्री-पुरुष के बीच जो प्रवाह है, जो ऊर्जा का अदृश्य प्रवाह है, वह खयाल में आना शुरू हो जाता है। विरोध के बीच में जो संगम है, विरोधियों के बीच में जो बहती हुई धारा है, दो किनारों के बीच जो बहती हुई नदी है, जब वह दिखाई पड़नी शुरू हो जाती है, तो ही जीवन में सुख की कोई संभावना उतरती है। और जैसे ही किसी व्यक्ति को यह लयबद्धता दिखाई पड़नी शुरू हो जाती है, विरोधी का आकर्षण भी खो जाता है। इस लयबद्धता की प्रतीति-योग कहता है ध्यान है; तंत्र कहता है महासमाधि, महासंभोग का क्षण है; लाओत्से कहता है, यिन और यान के बीच एक संगीत का जन्म है।
जहां भी आपको आकर्षण दिखाई पड़े, दो बातें समझ लेनी जरूरी हैं। पहला, कि जिससे भी आप आकर्षित हों, वह आपका विपरीत होगा; इसलिए आप खतरे में उतर रहे हैं। कोई भी व्यक्ति अपने समान से आकर्षित नहीं होता। समान के प्रति एक तरह का विलगाव होता है, रिपल्शन होता है, एक विकर्षण होता है। समान से हम दूर हटते
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