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________________ ताओ सब से परे है 'ताओ से एक का जन्म हुआ। एक से दो का; दो से तीन का; और तीन से सृष्ट ब्रह्मांड का उदय हुआ।' एक, दो, तीन-गहरे प्रतीक हैं। और अगर आप तीसरे को मिटाने से शुरू करते हैं तो आप गलती कर रहे हैं। जैसे कोई आदमी वृक्ष के पत्ते काटता हो और सोचता हो कि वृक्ष नष्ट हो जाएगा। एक पत्ते की जगह दो पत्ते आ जाएंगे। वृक्ष समझेगा, आप कलम कर रहे हैं। संसार तो आखिरी बात है। वह तो पत्ते हैं। मैं जड़ हूं। मेरे बिना कोई संसार नहीं हो सकता। ___ इसका यह अर्थ नहीं कि मैं नहीं रहूंगा तो वृक्ष, पर्वत और लोग नहीं रहेंगे। वे रहेंगे, लेकिन मेरे लिए वे संसार न रहे। जैसे ही मैं मिटता हूं, वैसे ही उनके ऊपर जो आवरण थे व्यक्तित्व के वे मेरे लिए खो जाएंगे; मुझे उनके भीतर का सागर दिखाई पड़ने लगेगा। उनकी लहरों की जो आकृतियां थीं वे मेरे लिए व्यर्थ हो जाएंगी; लहरों के भीतर जो छिपा था सागर वही सार्थक हो जाएगा। मेरे लिए संसार मिट जाएगा। संसार का मिटना दृष्टि का परिवर्तन है। मैं के बिंदु से जब मैं देखता हूं अस्तित्व को तो संसार है, और जब मैं मैं-शून्य होकर देखता हूं तो वहां कोई संसार नहीं। वहां जो शेष रह जाता है वही ताओ है, वही स्वभाव है। स्वभाव का अर्थ है, वही आखिरी तत्व है जिससे सब पैदा होता है और जिसमें सब लीन हो जाता है। वह बेसिक, आधारभूत अस्तित्व है। __'सृष्ट ब्रह्मांड के पीछे यिन का वास है, और उसके आगे यान का। इन्हीं व्यापक सिद्धांतों के योग से वह लयबद्धता को प्राप्त होता है।' लाओत्से की दृष्टि समस्त विरोधों के बीच संगीत को खोज लेने की है। जहां-जहां विरोध है वहां-वहां विरोध को जोड़ने वाली कोई लयबद्धता होगी। और जब तक हमें लयबद्धता न दिखाई पड़े तब तक हम भ्रांति में भटकते रहेंगे। __ स्त्री है; पुरुष है। स्त्री भी दिखाई पड़ती है; पुरुष भी दिखाई पड़ता है। लेकिन दोनों के बीच एक लयबद्धता है, वह हमें दिखाई नहीं पड़ती। और जब भी स्त्री-पुरुष उस लयबद्धता में आ जाते हैं तो उसे हम प्रेम कहते हैं। लेकिन प्रेम किसी को दिखाई नहीं पड़ता। और जब भी स्त्री-पुरुष के बीच की वह लयबद्धता टूट जाती है तो घृणा पैदा हो जाती है। घृणा भी दिखाई नहीं पड़ती। व्यवहार दिखाई पड़ता है। दो व्यक्ति घृणा में हों तो दिखाई पड़ता है; दो व्यक्ति प्रेम में हों तो दिखाई पड़ता है। प्रेम दिखाई नहीं पड़ता; घृणा दिखाई नहीं पड़ती। प्रेम है दो विरोधी तत्वों का लयबद्ध हो जाना। उनके बीच का विरोध शत्रुता में न रह जाए, बल्कि विरोध के कारण ही एक लय पैदा हो जाए; विरोध परिपूरक हो जाए, कांप्लीमेंटरी हो जाए, तो प्रेम का जन्म होता है। - जीसस ने बार-बार कहा है कि परमात्मा प्रेम है। और अगर जीसस के वचन का अर्थ समझना हो तो लाओत्से में खोजना पड़ेगा कि प्रेम का क्या अर्थ है। प्रेम का अर्थ है, दो विरोधों के बीच लयबद्धता। और जहां भी दो विरोध के बीच लयबद्धता होती है वहां सृष्टि बड़े अनूठे श्रृंगार में और उत्सव में जन्म लेती है। आपका पूरा जीवन जन्म और मृत्यु के बीच एक लयबद्धता है। और जब आप पूरी तरह जीवंत होते हैं तो उसका केवल इतना ही अर्थ होता है कि मृत्यु और जन्म की जो प्रक्रिया है उसका सारा विरोध खो गया। बच्चे को हम पूरा जीवंत नहीं कहते, क्योंकि बच्चे में जन्म का प्रभाव ज्यादा है, मृत्यु का अंश कम है। बूढ़े को हम पूरा जीवित नहीं कहते, क्योंकि उसमें मृत्यु का प्रभाव ज्यादा हो गया और जीवन का, जन्म का अंश कम हो गया। ठीक जवान आदमी को हम शिखर पर मानते हैं जीवन के। उसका कुल इतना ही अर्थ है कि ठीक जवानी के क्षण में मृत्यु और जन्म दोनों संतुलित हो जाते हैं; दोनों बाजू तुला की एक रेखा में आ जाती हैं। जवानी एक संगीत है जन्म और मृत्यु के बीच। बचपन अधूरा है; बुढ़ापा अधूरा है। एक सूर्योदय है; एक सूर्यास्त है। लेकिन जवानी ठीक मध्य बिंदु है, जहां दोनों शक्तियां संतुलित हो जाती हैं। 291
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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