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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ मिलता है। धन चाहते हैं; मिल जाए तो धन हाथ में आ जाता है, लेकिन सुख हाथ में नहीं आता। महल चाहते हैं, मिल जाए; राज्य चाहते हैं, साम्राज्य चाहते हैं, मिल जाए; मिल गया बहुत लोगों को। लेकिन सिकंदर ने कहा है कि मैं खाली हाथ मर रहा हूं; मेरे हाथ खाली हैं। इतना बड़ा साम्राज्य हो और हाथ खाली हों; क्या अर्थ होगा इसका? साम्राज्य तो मिल गया, लेकिन जिस सुख का सपना संजोया था वह पूरा नहीं हुआ। वह अभी भी खाली का खाली है। जो चाहें वह मिले तो सुख नहीं मिलता; सिर्फ ऊब पैदा होती है। और न मिले तो दुख पैदा होता है। सुख की वासना के दो छोर हैं। मिलने वाला आदमी ऊबा हुआ होता है। इसलिए धनी आदमी बोर्ड हैं, ऊबे हुए हैं, त्रस्त हैं। कुछ सूझता नहीं कि जीवन में क्या अर्थ है, क्या रस है। जिन्हें नहीं मिल पाता, न मिलने की पीड़ा सताती है। यह दिखाई पड़ने लगे कि दुख कोई बाहरी घटना नहीं है; कष्ट बाहरी घटना है। स्मरण रखें, कोई दूसरा आदमी चाहे तो आपको कष्ट दे सकता है, दुख नहीं दे सकता। दुख तो आप ही अपने को दे सकते हैं। वह निजी घटना है। कष्ट दूसरे पर निर्भर है। बुद्ध को भी किसी ने जहर दे दिया-भूल से सही-तो भी कष्ट तो दिया। शरीर पीड़ित हुआ; मृत्यु भी उसी । घटना से घटी। लेकिन बुद्ध को कोई दुख नहीं दे सकता है। कष्ट बाहर से आता है; दुख भीतर का दृष्टिकोण है। इसलिए कष्ट से भी हम दुख पा सकते हैं; और चाहें तो कष्ट से भी दुख न पाएं। क्योंकि वह भीतर की व्याख्या है। बुद्ध को जहर दिया, भूल से दिया। किसी गरीब आदमी ने निमंत्रण दिया, भोजन कराया। लेकिन भोजन में विषाक्त सब्जी थी। बिहार में लोग कुकुरमुत्ते इकट्ठे कर लेते हैं। गरीब आदमी वर्षा में कुकुरमुत्ते इकट्ठे कर लेते हैं, उनको सुखा लेते हैं; फिर उनका भोजन करते हैं साल भर तक। गरीब आदमी था। कुकुरमुत्ते की सब्जी उसने बुद्ध के लिए बनाई थी। बुद्ध ने खाई तो जहर थी। लेकिन एक ही सब्जी थी, और उस आदमी ने वर्षों इंतजार किया था बुद्ध का। और वह इतने आनंद से बैठ कर उन्हें खिला रहा था कि बुद्ध को यह कहना ठीक न मालूम पड़ा कि सब्जी कड़वी है। उसे दुख होगा। और वह इतना गरीब था कि दूसरी कोई सब्जी नहीं थी। और बुद्ध भूखे घर से लौटें तो उसकी पीड़ा अनंत हो जाएगी। इसलिए बुद्ध चुपचाप उस जहरीली, कड़वी सब्जी को खाते रहे। वह तो उसे बाद में पता चला। जब सब्जी उसने बुद्ध के जाने के बाद चखी तो वह तो हैरान हो गया। वह तो जहर थी! वह भागा हुआ आया। बुद्ध को चिकित्सकों ने देखा। उन्होंने कहा, यह विषाक्त था भोजन और जहर खून में पहुंच गया है; बचना बहुत मुश्किल है। तो बुद्ध ने जो पहला काम किया वह यह, अपने भिक्षुओं को बुला कर कहा कि बुद्ध के जीवन में दो व्यक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं। पहला वह व्यक्ति, मां, जो पहला भोजन देती है, दूध; और अंतिम, जो अंतिम बुद्ध को भोजन कराता है। तो इस व्यक्ति का तुम स्वागत करना, इस व्यक्ति का सम्मान करना और इतिहास में इसका उल्लेख करना कि यह बुद्ध को अंतिम भोजन देने वाला व्यक्ति है। आनंद ने कहा, आप क्या कह रहे हैं! भिक्षु तो बहुत रुष्ट हैं और डर है कि लोग उस पर हमला न बोल दें। बुद्ध ने कहा, इसीलिए मैं कह रहा हूं। उसका तुम सम्मान करना, उसका कोई कसूर नहीं है। लेकिन अनायास ही वह महाभाग को उपलब्ध हुआ है कि बुद्ध को उसने अंतिम भोजन दिया है। बुद्ध दुख को भी दुख की भांति नहीं लेते; कष्ट को भी दुख की भांति नहीं लेते। इससे विपरीत भी होता है। हम सुख को भी दुख की भांति ले सकते हैं। क्योंकि वह हमारी व्याख्या पर निर्भर है। . मैंने सुना है, अमरीका के एक महानगर में एक होटल का मालिक अपने मित्र से रोज की शिकायतें कर रहा था कि धंधा बहुत खराब है, और धंधा रोज-रोज नीचे गिरता जा रहा है। होटल में अब उतने मेहमान नहीं आते। उसके मित्र ने कहा, लेकिन तुम क्या बातें कर रहे हो? मैं तुम्हारे होटल पर रोज ही नो वेकेंसी की तख्ती लगी देखता 270
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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