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________________ छला प्रश्न : हम दुनब जानते हैं, बुद्ध आनंद जानते हैं। क्या हम सच ही दुख को जानते हैं? यदि हम सच ही दुत्व को जानते हैं तो क्यों कर आनंद की दिशा में नहीं जाते? निश्चय ही, जो दुख को जान लेगा वह दुख से मुक्त होना शुरू हो जाता है। हम दुख को भोगते हैं, जानते नहीं। भोगना जानना नहीं है। हमारा भोगना भी मुछित, सोया हुआ, बेहोश है। और इस बेहोशी का लक्षण, बुनियादी लक्षण उसे समझ लेना जरूरी है। हम दुख भोगते भी हैं तो हमें यह स्मरण नहीं आता कि हम सुख की तलाश में दुख भोगते हैं। चाहते तो हम सुख हैं, मिलता दुख है। चाहते तो हम स्वर्ग हैं, उपलब्ध जो होता है वह नरक है। और जो सुख को चाहेगा वह दुख भोगेगा ही। सुख की चाह से ही दुख का जन्म है। यदि हम समझ जाएं कि हम दुख भोग रहे हैं, और यह भी समझ जाएं कि क्यों भोग रहे हैं, और दुख क्या है, तो हम सुख की चाह छोड़ देंगे। सुख की चाह के छूटते ही दुख से मुक्ति होनी शुरू हो जाती है। दुख है इसलिए कि सुख की मांग है। इसलिए जितनी ज्यादा सुख की मांग होगी उतना ज्यादा दुख होगा। बहुत आश्चर्य की घटना है कि दीन-दरिद्र इतने दुखी नहीं होते हैं जितने समृद्ध और धनी हो जाते हैं। क्योंकि दीन और दरिद्र की सुख की बहुत मांग नहीं होती। वह सोच भी नहीं सकता बहुत सुख के लिए, स्वप्न भी नहीं देख सकता बहुत सुख के लिए। उसके सुख की मांग उसके दायरे में होती है। लेकिन जिसके पास सारी सुविधाएं हैं, उसकी सुख की मांग असीम हो जाती है। उसके पास सब है; सुख को वह खरीद सकता है। तो मांग भी स्वभावतः खड़ी हो जाती है। इसलिए धनी जितने दुखी होते हैं उतने दरिद्र दुखी नहीं होते। दरिद्र कष्ट में हो सकते हैं, लेकिन दुख में नहीं होते। धनी कष्ट में नहीं होते, लेकिन महादुख में होते हैं। कष्ट तो भौतिक अभाव है। एक भूखा आदमी है, कष्ट में है। एक नंगा आदमी है, सर्दी है, गर्मी है; कष्ट में है। एक बीमार आदमी है, दवा का इंतजाम नहीं; कष्ट में है। लेकिन एक भरा पेट आदमी है; कपड़े हैं, दवा है, सुविधा है, सब कुछ है, और भीतर पाता है कि सब व्यर्थ है; कुछ सार नहीं, कुछ उपलब्ध नहीं हो रहा। बाहर सब है; भीतर खालीपन है। यह आदमी दुख में है। दुख समृद्धि का लक्षण है। इसलिए दुखी होना हो तो समृद्ध होना जरूरी है। और दुख का अनुभव न हो तो हमारी सुख की वासना नहीं छूटती। दुख के प्रगाढ़ अनुभव से ही यह प्रतीति होनी शुरू होती है कि दुख क्यों है। हमने विपरीत मांगा है। जो हम मांगते हैं, न मिले, तो दुख पैदा होता है। और मजा तो यह है कि मिल जाए तो भी सुख पैदा नहीं होता। जीवन की सारी जटिलता और पहेली यही है कि जो हम चाहते हैं, मिल जाए, तो सुख नहीं मिलता; और न मिले तो दुख 269
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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