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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ बेशर्त है, अनकंडीशनल है। आप क्या हैं, इससे उसका कोई संबंध नहीं है। मैं भद्र हूं। भद्र होना मेरा गुण है। आप असभ्य भी हों तो भी मैं भद्र होऊंगा। 'भद्रता ताओ का व्यवहार है। संसार की वस्तुएं अस्तित्व से पैदा होती हैं; और अस्तित्व अनस्तित्व से आता है।' सब शून्य से पैदा होता है और सब शून्य में लीन हो जाता है। जन्म के पहले आप क्या थे? एक शून्य। मृत्यु के बाद आप क्या होंगे? एक शून्य। एक वृक्ष अभी पैदा नहीं हुआ, अभी शून्य में है। फिर आपने बीज बोया और वृक्ष को शून्य से पुकारा। बीज पुकार है शून्य से वृक्ष के लिए कि परिस्थिति तैयार है, तुम आओ और प्रकट हो जाओ! और वृक्ष प्रकट होना शुरू हो गया। फैलेगा, विराट बनेगा। फिर वृद्ध होगा, गिरेगा, खो जाएगा। फिर शून्य में लीन हो जाएगा। अस्तित्व के दोनों तरफ अनस्तित्व है। अस्तित्व के दोनों तरफ शून्य है। अभिव्यक्ति के दोनों ओर अनभिव्यक्ति है। प्रलय है सृष्टि के दोनों ओर। जन्म के दोनों ओर मृत्यु है। जीवन दोनों ओर मृत्यु से घिरा है। इसे खयाल में ले लें, तो वह जो अस्तित्व के साथ हमारा बड़ा राग पैदा हो जाता है, वह पैदा न हो। क्योंकि तब हम जानें कि अस्तित्व अनस्तित्व से आता है, और अस्तित्व फिर अनस्तित्व में खो जाता है। इसलिए व्यर्थ मोह और राग और बहुत बंधन में पड़ जाने का कोई अर्थ नहीं है। अगर पड़ना भी हो तो नाटक से ज्यादा उसका मूल्य नहीं है; अभिनय से ज्यादा परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा बोध आ जाए तो सब समान हो जाता है। तब हम जानते हैं कि जो है वह कल नहीं था और कल फिर नहीं हो जाएगा। इसलिए आज जब है तब हम बहुत पागल न हो जाएं। और हम इतने पागल न हो जाएं कि कल जब वह नहीं होने लगे तो हमें पीड़ा हो। आज आपका किसी से प्रेम हो गया। लेकिन कल तक यह शून्य था, कल तक इस प्रेम का कोई पता न था। आज अचानक प्रेम निर्मित हो गया; एक मैत्री बनी। लेकिन जानें कि कल यह शून्य थी और कल फिर शून्य हो जाएगी। सभी चीजें जहां से आती हैं वहीं लौट जाती हैं। तो इस प्रेम के लिए इतने पागल न हो जाएं कि कल जब यह शून्य होने लगे तो आप छोड़ न पाएं। आज एक बच्चा आपके घर में पैदा हुआ; कल यह मरेगा। क्योंकि जन्म मृत्यु को अपने भीतर लिए है। तो आप इससे इतने ज्यादा मोहग्रस्त न हो जाएं कि कल जब यह विदा होने लगे, या विदा का क्षण आ जाए, तो आप छोड़ न पाएं। इसका यह अर्थ नहीं है कि आप आनंदित न हों। इसके होने में आनंदित हों, लेकिन इसके होने के भीतर न होना छिपा है, इसे स्मरण रखें। और जब यह न होने लगे तब इसको सहज स्वीकार कर लें, जैसा इसके होने को स्वीकार किया था। जो व्यक्ति ऐसी अवस्था को उपलब्ध हो जाए, उसे उपनिषदों ने साक्षी कहा है; जो अस्तित्व में अनस्तित्व को देखता रहे, जो प्रकट में अप्रकट को देखता रहे, जो होने में न होने को देखता रहे। दोनों फिर शांत हो जाते हैं। फिर कोई पकड़, कोई बंधन पैदा नहीं होता, फिर कोई कर्म ग्रसता नहीं और कोई नियति निर्मित नहीं होती। जैसे ही कोई व्यक्ति दोनों को देख लेता है एक साथ, अस्तित्व-अनस्तित्व को, मुक्त हो जाता है। __'संसार की वस्तुएं अस्तित्व से पैदा होती हैं; और अस्तित्व अनस्तित्व से आता है। जब श्रेष्ठ प्रकार के लोग इस तरह के सत्य को सुनते हैं...।' यह बहुत महत्वपूर्ण है वचन। 'जब श्रेष्ठ प्रकार के लोग ताओ को सुनते हैं...।' इस तरह के वचन को सुनते हैं कि प्रतिक्रमण ताओ का धर्म है, कि भद्रता ताओ का व्यवहार है, कि संसार की वस्तुएं अस्तित्व से पैदा होती हैं और अस्तित्व स्वयं अनस्तित्व से आता है, और सभी चीजें वहीं लौट जाती हैं जहां से जन्म पाती हैं, जब इस तरह के सत्य को सर्वश्रेष्ठ प्रकार के लोग सुनते हैं। ....तब वे उसके अनुसार जीने की अथक चेष्टा करते हैं।' 236
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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