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अस्तित्व में सब कुछ परिपूरक है
ऊर्जाएं जब भी एक आयाम में संलग्न हो जाती हैं तो सब तरफ से सिकुड़ जाती हैं। स्वाभाविक है। आदमी की सीमित सामर्थ्य है, और अस्तित्व अनंत है। इससे ऐसा होगा ही। अक्सर ऐसा होता है कि सुंदर स्त्रियों के पास बुद्धि बिलकुल नहीं होती। बहुत मुश्किल है, बहुत मुश्किल है। और अक्सर ऐसा होगा कि बुद्धिमान स्त्री सुंदर नहीं होगी। सुंदर स्त्री को बुद्धि की जरूरत भी नहीं होती, सौंदर्य काफी है। उससे यात्रा हो जाती है सुगमता से। स्त्री कुरूप हो तो उसको बुद्धि की जरूरत होती है। क्योंकि फिर उसकी यात्रा के लिए कोई उपाय ही नहीं रहा।
इसलिए एडलर कहता है कि कुरूप स्त्रियां जरूर अपनी प्रतिभा को विकसित कर लेती हैं किसी न किसी दिशा में संगीत में, काव्य में, लेखन में, पेंटिंग में। क्योंकि कहीं न कहीं उन्हें भी चमक कर दिखने की आकांक्षा होती है। चमड़ी से नहीं चमक सकतीं तो किसी पेंटिंग में, किसी काव्य में, किसी संगीत में, सितार पर...। इसलिए जरा देखें, जब भी आप प्रतिभाशाली स्त्री देखें तो सोचना, बड़ी संगीतिका हो, प्लेबैक सिंगर हो, पर सुंदर नहीं होगी। सुंदर स्त्री इस तरह की झंझट में नहीं पड़ती। क्या जरूरत संगीत की? उसका शरीर संगीत है। तो कोई परिपूरक खोजने की आवश्यकता नहीं है। एक दिशा में आदमी बढ़ जाए तो सब दिशाओं से सिकुड़ जाता है।
एडलर का तो पूरा का पूरा जीवन-सिद्धांत यही है कि हीनता के कारण ही, किसी हीनता के कारण ही लोगों में महत्वाकांक्षा पैदा होती है। कुछ कमी होती है गहरी, उस कमी को झुठलाने के लिए लोग किसी दिशा में बहुत तीव्रता से बढ़ जाते हैं। और ऊर्जा बदल जाती है; स्थान बदल लेती है। अंधा आदमी, उसकी सारी आंख की ऊर्जा कान में चली जाती है, इसलिए उसके सुनने की कला गहन हो जाती है। कोई आंख वाला आदमी उस तरह नहीं सुन सकता जैसा अंधा सुनता है। अंधे का सुनना बड़ा सूक्ष्म हो जाता है। पदचाप भी पहचानता है कि कौन आ रहा है। आपको पदचाप सुनाई भी नहीं पड़ते, लेकिन अंधा दूर बरांडे में चलते हुए आदमी को जानता है कि कौन चल रहा है। सारी आंख कान बन गई है। इसलिए अंधे संगीत में गहरे उतर जाते हैं जो आंख वाले नहीं उतर पाते। क्योंकि ध्वनि के संबंध में उनकी पकड़ स्वभावतः आंख वाले से ज्यादा होगी।
हेलेन केलर अंधी है, बहरी है, गूंगी है। तो उसकी सारी जीवन-ऊर्जा उसके हाथों में उतर आई है। वह जिस भांति से छूती है, दुनिया में कोई आदमी नहीं छू सकता। क्योंकि हाथ से उसको आंख का भी काम लेना है, हाथ से उसे कान का भी काम लेना है, हाथ से उसे मुंह का भी काम लेना है, हाथ से ही उसे सारा काम लेना है। तो दस वर्ष पहले आपके चेहरे को छूकर देखा हो और दस वर्ष बाद आपको देखेगी तो पहचान लेगी और कहेगी कि आपका स्वास्थ्य कुछ पहले जैसा नहीं रह्य, कुछ अस्वस्थ मालूम होते हैं; कुछ देह जीर्ण हो गई या वृद्ध हो गए। दस वर्ष पहले की स्मृति अंगुलियों में है। और उसके स्पर्श से जैसी विद्युत बहती है वैसी किसी व्यक्ति के स्पर्श से नहीं बह सकती। क्योंकि सारा जीवन सिकुड़ कर हाथों में आ गया। वही उसकी सब इंद्रियां हैं।
तो जीवन-ऊर्जा एक दिशा में बहनी शुरू हो जाती है तो दूसरी तरफ से सिकुड़ आती है। दूसरी तरफ मार्ग न मिले तो किसी एक दिशा में बहनी शुरू हो जाती है। एक बात स्मरणीय है कि आप कभी भी ऐसी अवस्था में न पहुंच • सकेंगे जहां तुलना से पीड़ा न हो। होगी ही। और जितने ज्यादा आप बढ़ जाएंगे किसी दिशा में उतनी ही ज्यादा पीड़ा होगी, क्योंकि उतनी ही दिशाओं में आप क्षीण हो जाएंगे।
एक ही उपाय है जिसे सुख चाहिए हो कि वह तुलना छोड़ दे, तुलना का त्याग कर दे। दूसरे से अपने को तौले ही नहीं। तौलने की दृष्टि ही भ्रांत है। अपने को ही देखे, दूसरे से तौलना छोड़ दे। तो संतोष का जन्म होता है, अपरिसीम संतोष का जन्म होता है। क्योंकि तब न कोई कुरूप है, तब न कोई बुद्धिमान है, तब न कोई मूढ़ है, तब न कोई सुंदर है। क्योंकि ये सारी की सारी चीजें विपरीत से जुड़ती हैं। जब मैं अकेला हूं-समझ लें कि सारी पृथ्वी के लोग समाप्त हो गए और आप अकेले बचे, तीसरा महायुद्ध हो गया और आप अकेले बचे, सारी पृथ्वी शांत हो गई।
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