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ताओ उपनिषद भाग ४
तब आप बुद्धिमान होंगे, मूढ़ होंगे? तब आप सुंदर होंगे, कुरूप होंगे? तब आप लंबे होंगे, ठिगने होंगे? तब आप गोरे होंगे, काले होंगे? तब आप क्या होंगे? तब ये सारी की सारी चीजें खो जाएंगी, सिर्फ आप होंगे, और ये सारी बातें व्यर्थ हो जाएंगी। उस क्षण में जो शांति आपको मिलेगी वह शांति अभी मिल सकती है, अगर तुलना छूट जाए। क्योंकि जगत बाधा नहीं दे रहा है; तुलना बाधा दे रही है।
और तुलना मूढ़तापूर्ण है। क्योंकि तुलना हमेशा विपरीत पर निर्भर है। सौंदर्य कुरूप पर निर्भर है; धनी गरीब पर निर्भर है। गरीब हट जाएं जमीन से, धन की सारी गरिमा हट जाएगी। लेकिन गरीब कोशिश में लगा होता है अमीर को मिटाने की; अमीर कोशिश में लगा होता है गरीब को मिटाने की। दोनों एक-दूसरे पर परजीवी हैं, एक-दूसरे पर जी रहे हैं। दोनों ही मिट जाएंगे; या दोनों रहेंगे। इसलिए सोवियत रूस जैसे मुल्क में जहां कि अमीर को मिटाने की गरीब ने कोशिश की, अमीर मिट गया, नाम बदल गया; दूसरे अमीर आ गए। क्योंकि दोनों साथ ही हो सकते हैं। पहले जहां पूंजीपति था वहां अब मैनेजर आ गया।
बर्न हाइम ने ठीक शब्द का उपयोग किया है। वह कहता है, कम्युनिस्ट रिवोल्यूशन जैसी कोई चीज दुनिया में नहीं हुई है अभी तक; मैनेजरियल रिवोल्यूशन, सिर्फ व्यवस्थापकों की बदलाहट हो जाती है। मालिक की जगह दूसरे . मालिक आ जाते हैं। उनका नाम दूसरा होता है, तखती दूसरी होती है। लेकिन वह जो गुलाम था गुलाम होता है; मालिक मालिक होता है। वह दोनों का नाता-रिश्ता बना ही रहता है; वह कहीं समाप्त नहीं होता। या तो दोनों रहेंगे या दोनों जाएंगे।
द्वंद्व के इस जगत में एक से छुटकारा और एक का बचाव संभव नहीं है। हम सब तरह की कोशिश करते हैं छुटकारे की। हम चाहते हैं युद्ध न हो, शांति हो। कितने लोगों ने नहीं चाहा कि शांति हो, लेकिन कुछ हो नहीं पाता। दस साल नहीं बीत पाते और महायुद्ध उतर आता है। ऐसा लगता है कि कोई उपाय नहीं है। शांति और युद्ध परिपूरक हैं, विपरीत नहीं हैं। और अगर युद्ध न हो तो शांति भी व्यर्थ मालूम होने लगती है। जैसे ही युद्ध होता है, शांति में सार्थकता आ जाती है, अर्थ मालूम होता है। जैसे जन्म और मृत्यु हैं, ऐसे ही शांति और युद्ध हैं।
तो बर्टेड रसेल जैसे लोग-जो भले लोग हैं; और जो चाहते हैं, दुनिया में शांति हो, युद्ध न हो- उन्हें लाओत्से को ठीक से समझना चाहिए। क्योंकि लाओत्से कहेगा, यह नहीं हो सकता। दुनिया होगी, शांति होगी, तो युद्ध जारी रहेगा। एक ही उपाय है, जमीन शांत हो, यहां युद्ध न हो, वह उपाय यह है कि हम किसी और ग्रह पर अगर जीवन को पा लें, मंगल पर अगर कोई जीवन मिल जाए और प्लेनेटरी युद्ध छिड़ जाए कि मंगल से पृथ्वी का संघर्ष होने लगे, तो पृथ्वी पर युद्ध बंद हो जाएगा। फिर पाकिस्तान-हिंदुस्तान के लड़ने का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा, क्योंकि बड़े दुश्मन के मुकाबले हमें इकट्ठा हो जाना पड़ेगा।
ऐसा अभी भी होता है। हिंदुस्तान-पाकिस्तान लड़ते हैं तो गुजराती और मराठी का युद्ध समाप्त हो जाता है। वे इकट्ठे हो जाते हैं। पंजाबी, गैर-पंजाबी का युद्ध समाप्त हो जाता है। मद्रासी, गैर-मद्रासी का युद्ध समाप्त हो जाता है। वे इकट्ठे हो जाते हैं। बड़ा दुश्मन सामने आ गया, कामन एनीमी सामने आ गया; हम इकट्ठे हो जाते हैं।
इसलिए जब युद्ध चलता है तो देश में बड़ी एकता मालूम होती है। वह एकता नहीं है। वे छोटे युद्ध समाप्त हो जाते हैं, जब बड़ा युद्ध सामने होता है। वैसे ही जैसे आपको छोटी-मोटी बीमारी हो, और बड़ी बीमारी हो जाए। पैर में फुसी हुई थी, फिर कोई कह दे कैंसर हो गया; फुसी समाप्त हो गई। अब है ही नहीं। अब कौन उस फुसी को, उसका बोध भी नहीं रह जाएगा। छोटी बीमारियों को मिटाने का बड़ा सीधा तरीका है-बड़ी बीमारी। छोटी बीमारी तिरोहित हो जाती है। हिंदुस्तान-पाकिस्तान लड़ते हैं तो छोटी बीमारियां तिरोहित हो जाती हैं; मुल्क इकट्ठा मालूम होता है। अगर कोई ग्रह हमसे युद्ध में उतर जाए किसी दिन तो जमीन के सब छोटे-छोटे झगड़े समाप्त हो जाएंगे। तो
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