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ताओ उपनिषद भाग ४
इस पूरे सिक्के के फेंक देने पर जो बच रहती है निर्दोष अवस्था, न जहां पता चलता कि मैं मूढ़ हूं, न जहां पता चलता कि मैं पंडित हूं, वहां ज्ञान है। वह ज्ञान एक है। उस ज्ञान तक पहुंचने के लिए ये दोनों छोर या तो एक साथ स्वीकार कर लेने जरूरी हैं; तो कट जाते हैं, शून्य निर्मित हो जाता है; या एक साथ फेंक देने जरूरी हैं; तो भी छुटकारा हो जाता है, अतिक्रमण हो जाता है।
आप अपने जीवन की तकलीफों को सोचना-आपका संताप, आपकी चिंता, आपके मन की पीड़ा-तो आप इसी द्वंद्व में कहीं बंटे हुए पाएंगे, इसी में आप फंसे हुए पाएंगे। कोई पंडित आपको कष्ट दे रहा है, क्योंकि उसको देख कर मूढ़ता का पता चलता है। कोई सुंदर आदमी कष्ट दे रहा है, क्योंकि उसको देख कर कुरूपता का पता चलता है। कोई शक्तिशाली आदमी कष्ट दे रहा है, क्योंकि उसको देख कर दुर्बलता का पता चलता है। तुलना, कंपेरिजन पीड़ा है। और जो आदमी तुलना कर रहा है उसके लिए सुख का कोई भी उपाय नहीं किसी भी स्थिति में। क्योंकि ऐसी कोई भी स्थिति नहीं हो सकती जहां आपको तुलना करने की संभावना न रहे। कोई स्थिति नहीं हो सकती।
नेपोलियन जैसा सम्राट भी अपने साधारण सैनिकों को देख कर मन में पीड़ा और ग्लानि से भर जाता था। . उसकी ऊंचाई कम थी। साधारण सैनिक भी उसके सामने ऊंचे मालूम पड़ते थे। वह उसके जीवन भर की पीड़ा थी। वह कितना ही बड़ा सम्राट हो गया, लेकिन वह अपनी कद की कम लंबाई से बहुत ही पीड़ित और परेशान था। एडलर जैसे मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि कद की कमी की वजह से ही वह सम्राट होने की दौड़ में पड़ गया था कि किसी तरह किसी दूसरी दिशा में कद को बड़ा करके बता दे।
कोई उपाय नहीं है। जगत के हजार आयाम हैं। आप किसी एक आयाम में थोड़े आगे भी जा सकते हैं तो भी आप कभी बिलकुल आगे नहीं पहुंच जाएंगे। और कभी-कभी ऐसा होता है, जब आप एक आयाम में आगे जाते हैं तो दूसरी तरफ से ऊर्जा सिकुड़ आती है।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक संस्मरण लिखा है कि उसे नोबल प्राइज मिल चुकी थी; जगत विख्यात हो गया था। उसके गणित की जो प्रतिभा थी, शायद मनुष्य-जाति के इतिहास में कभी वैसी प्रतिभा पैदा नहीं हुई। और लोग कहते हैं, शक है कि फिर कभी वैसी प्रतिभा पैदा हो। लेकिन एक सुबह एक बस में सवार हुआ। कंडक्टर ने टिकट दी, उसने रुपए दिए; फुटकर उसने वापस किया। उसने गिना, दुबारा गिना, और जब वह तीसरी बार गिनने लगा तो कंडक्टर ने कहा, रुकें! मालूम होता है आपको पैसे गिनना नहीं आता। पढ़े-लिखे हैं या नहीं?
यह दुनिया का सबसे बड़ा गणितज्ञ है, लेकिन इतने बड़े गणित में उलझ गया है कि छोटे गणित से संबंध छुट गया। वे जो पैसे हैं वे गिनने में नहीं आते। जो तारों को गिन रहा हो उसको पैसों को गिनना बहुत मुश्किल हो जाएगा। ऊर्जा एक दिशा में चली जाती है। तो एक बस का कंडक्टर भी अकड़ कर उससे कह रहा है कि मालूम होता है, पढ़े-लिखे नहीं! आइंस्टीन ने बड़े विचारपूर्वक इसका स्मरण किया है।
उसने एक संस्मरण और लिखा है। अक्सर वह अपनी पत्नी के साथ ही कहीं भोजन के लिए जाता था, रेस्तरां में या कहीं भोजनालय में। इसलिए मेनू हमेशा पत्नी ही पढ़ती थी। और वह तो किसी और दुनिया में खोया रहता था। एक दिन पत्नी मौजूद नहीं थी और वह अकेला ही खाना खाने एक जगह गया। वेटर ने लाकर मेन रखा तो उसने देखा, लेकिन उसकी अक्ल में कुछ नहीं आया कि क्या, किस चीज का क्या अर्थ है, और क्या लेने योग्य है और क्या लेने योग्य नहीं। वह उसने कभी इसके पहले सोचा भी नहीं था। वह काम पत्नी ही करती थी। जब बहुत देर हो गई उसे देखते हुए तो उसने बैरा से कहा कि तुम्हीं जो ठीक समझो वह ले आओ। तो उस बैरा ने कहा कि मैं भी आप ही जैसा गैर-पढ़ा-लिखा हूं; मैं भी पढ़ नहीं सकता।
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