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________________ श्रेष्ठ चनिन ऑन घटिया चनिन तो मैं नहीं कहता आपसे कि सत्य सदा जीतेगा। जरूरी नहीं है। बहुत बार हारेगा। सच तो यह है कि ज्यादा हारेगा बजाय जीतने के। क्योंकि जिनके बीच आप रह रहे हैं वे सब झूठ हैं। मैं नहीं कहता कि सत्य सदा जीतेगा। लेकिन यह मैं जरूर कहता हूं कि सत्य सदा आनंदित होगा। जीत तो दूसरों से संबंधित है; आनंद भीतर की बात है। सफलता तो दूसरों की बात है। .. जीसस को सूली लगी; वह झूठ बोलने से बच सकती थी। इतना ही कहना काफी था...। जीसस कहते थे कि मैं ईश्वर का पुत्र हूं। यह उनकी प्रतीति थी, यह उनका सत्य था, यह उनका अनुभव था कि वह ईश्वर के साथ इतने एक हैं जैसे बाप और बेटे के साथ एक होता है। जैसे बेटा बाप का विस्तार है ऐसा ही जीसस को बोध था कि मैं उसी परमात्मा का विस्तार हूं। यह बोध इतना प्रगाढ़ था कि यह उनका सत्य था। यह इतनी सी बात कहने से जीसस बच सकते थे कि नहीं, यह तो सिर्फ एक प्रतीक है। यह कोई, मैं ईश्वर का पुत्र हूं, यह कोई ऐतिहासिक बात नहीं है। यह कोई सत्य नहीं है, यह तो सिर्फ एक पैरेबल, एक बोध-प्रसंग, एक समझाने का ढंग। इतना कहने से बच सकते थे। इतना ही उनके विरोधी सुनना चाहते थे कि वे साफ-साफ कह दें कि ईश्वर के बेटे नहीं हैं। पर जो उनका सत्य था, वे उससे जरा भी नहीं हटेंगे। सूली असफलता है जगत की दृष्टि में। जगत की ही दृष्टि में नहीं, जीसस के जो निकटतम अनुयायी थे, उनको भी लगा कि यह तो सब खत्म हो गया। आखिरी क्षण तक जीसस के अनुयायी भीड़ में खड़े यह देख रहे थे कि आखिरी क्षण में कोई न कोई चमत्कार होगा और सत्य जीतेगा। लेकिन जीसस सूली पर चढ़ गए, समाप्त हो गए। तो शिष्य भी घबड़ा गए। यह तो सत्य की मौत हो गई, सत्य सूली पर लटक गया। और सोचा था सत्य जीतेगा, अंततः जीत जाएगा। बीच में छोटी-मोटी हार हो सकती हैं, लेकिन अंततः जीत जाएगा। मैं नहीं कहता कि सत्य जीतेगा। सच तो यह है, ज्यादा संभावनाएं सत्य के हारने की हैं। क्योंकि हार और जीत बाहर से संबंध है। एक बात निश्चित है कि सत्य सदा आनंदित होगा। हारे तो भी, सूली लग जाए तो भी, असफल हो जाए तो भी, तिरस्कृत हो जाए तो भी। असत्य सदा दुख है। सफल हो जाए तो भी, सिंहासन पर पहुंच जाए तो भी। असत्य सदा दुख है। असत्य सफल होगा। होता है। मैक्यावेली ने राजाओं को सलाह दी है कि वे सत्य तो अपने निकटतम मित्र को भी न कहें। क्योंकि जो अभी मित्र है, क्षण भर बाद शत्रु हो सकता है। इसे ध्यान में रखना। मैक्यावेली राजाओं को सलाह दे रहा है कि इसे ध्यान में रखना कि जो मित्र है वह कल शत्रु हो सकता है, इसलिए सत्य तो उसे भी मत कहना। कल की शत्रुता को ध्यान में रख कर ही बोलना। अभी वह शत्रु है नहीं, मित्र है; लेकिन कल की शत्रुता संभावी है, उसे ध्यान में रखना। और वही बोलना जो कल वह शत्रु भी हो जाए तो भी नुकसान न पहुंचा सके। इसलिए सम्राटों का कोई मित्र नहीं हो सकता। मित्र होने का कोई उपाय नहीं। जिनके हाथ में शक्ति है वे किसी के भी मित्र नहीं हो सकते। उनकी मित्रता धोखा होगी। राजनीति में कोई दोस्ती नहीं है, सब दुश्मन हैं। कुछ दुश्मन हैं जो जाहिर हो गए; कुछ जो अभी जाहिर नहीं हुए। मगर वे कभी भी जाहिर हो सकते हैं। इसलिए उनके साथ भी सच नहीं हुआ जा सकता। जीवन झूठ का एक जाल है, जैसा हमने उसे बना लिया। उसमें झठ जीतता है; उसमें झूठ सफल होता है। उसमें झूठ सिंहासनों पर विराजमान होता है। लेकिन झूठ का लक्षण उसके भीतर गहन दुख की कालिमा है; अंधेरी रात की तरह वहां दुख है। इसलिए सिंहासनों पर भी दुख की गठरियां ही बैठती हैं।। सत्य आनंद है। अगर आपको आनंद की सुराग मिल गई, सुगंध मिल गई, और आप इसलिए सत्य बोलते हैं कि यही बोलने में आप निकटतम होते हैं निसर्ग के, तो आपको चरित्र-वास्तविक चरित्र से संबंध जुड़ना शुरू 157
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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