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ताओ उपनिषद भाग ४
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वह ठीक कह रहा है। पट्टी बांधने से कोई घाव तो मिट नहीं जाता, सिर्फ ढंक जाता है। हमारा सारा चरित्र पट्टी बांधने जैसा है। इसलिए आपके चरित्र पर कोई जरा सी बात करे तो कैसी चोट लगती है, खयाल किया आपने? जरा सा कोई इशारा कर दे आपके चरित्र पर तो कैसी चोट लगती है तीर की तरह। वह चोट कहां लगती है? वह उसकी बात से नहीं लग रही है, वह आपके घाव से लग रही है जो पट्टी के भीतर छिपा है । जब कोई आपके चरित्र की आपसे चर्चा करने लगे और आपको कोई चोट न लगे तो समझना कि घाव भर गया, चरित्र उपलब्ध हुआ है। लेकिन चोट लगती है। चोट लगती ही इसलिए है कि बात सच होती है। नहीं तो चोट नहीं लगेगी। जो आदमी चोर नहीं है उसे कोई चोर भी कह दे तो चोट नहीं लगेगी। वह हंसेगा। वह समझेगा कि यह आदमी पागल है। लेकिन कोई चोट नहीं लगेगी। चोर से चोर कह दें तो चोट लगती है, क्योंकि पट्टी के नीचे घाव है। आपकी चोट से पहचान आ जाती है कि घाव कहां है। किस बात पर आप क्रोधित होते हैं, उससे आपके घाव की खबर मिलती है। किस बात से आप बेचैन, परेशान होते हैं, उससे घाव की खबर मिलती है । और लोगों को भी पता है कि जहां-जहां पट्टियां हैं वहां-वहां घाव हैं। बच्चों को ही पता नहीं है, बड़ों को भी पता है । और वे भी जहां-जहां पट्टियां हैं वहां-वहां चोट करते रहते हैं।
लाओत्से कहता है कि चरित्र घटिया है, अगर उसे बचाए रखने की चेष्टा करनी पड़ती है। जिस चरित्र को बचाने की चेष्टा करनी पड़ती है वह चेष्टा से पैदा हुआ चरित्र है।
इसे थोड़ा समझ लें । चरित्र दो प्रकार का है। एक तो आविर्भाव है। एक तो सहज, अपके भीतर की खिलावट है । और एक आरोपण है; आविर्भाव नहीं । आप भीतर कुछ और होते हैं, बाहर से आप कुछ और थोप लेते हैं। एक तो चरित्र है धर्म, और एक चरित्र है नीति । वह नीति घाव वाला चरित्र है । नीति उपयोगिता का दृष्टिकोण है; जो उपयोगी है, जिससे समाज में चलने में सुविधा होगी, जिससे सफल होने में आसानी होगी, जिससे महत्वाकांक्षा सुगमता से तृप्त होगी, जिससे लोगों से टकराहट कम होगी, वह चालाकी है। नीति चालाकी है। वे जो होशियार लोग हैं वे सब तरह की नीति अपने चारों तरफ खड़ी कर लेते हैं। उससे उनको अनैतिक होने की सुविधा मिल जाती है।
इसे थोड़ा समझ लें। अगर आपको चोरी ही करनी है तो आपको मंदिर जरूर जाना चाहिए। उससे लोग कम शक कर सकेंगे कि यह आदमी, और चोर हो सकता है ! अगर आपको बेईमानी ही करनी है तो आपको ईमानदारी का खूब गुणगान करना चाहिए; उसमें कंजूसी नहीं करनी चाहिए। और जब भी कभी ऐसा मौका मिले, लोक-प्रदर्शन का, तो ईमानदारी का प्रदर्शन भी करना चाहिए; बात ही नहीं। छोटे-मोटे मौके जो भी मिल जाएं ईमानदारी प्रदर्शित करने के, वह जरूर उनका उपयोग कर लेना चाहिए। तो आप बड़ी बेईमानी करने के लिए मुक्त हो जाते हैं। कोई शक भी नहीं कर सकेगा कि यह आदमी और बेईमान ! इस आदमी ने इतना दान दिया है अस्पताल के लिए, इतना स्कूल के लिए, इतना आदिवासी बच्चों की शिक्षा के लिए, यह आदमी और बेईमान ! अगर लाख, दो लाख दान में खर्च करने पड़ें तो करने चाहिए, अगर आपको करोड़, दो करोड़ का शोषण करना हो। तो आप सुरक्षित हैं।
नीति आपकी रक्षा है। तो अंग्रेजी में जो वे कहते हैं कि आनेस्टी इज़ दि बेस्ट पालिसी, वे ठीक कहते हैं। वह पालिसी ही है; आनेस्टी नहीं है। आनेस्टी का पालिसी से क्या लेना-देना! होशियारी है, कुशलता है, चालाकी है, गणित है, हिसाब है।
और निश्चित ही, जो होशियार हैं वे ईमानदारी के द्वारा बेईमानी करते हैं। जो नासमझ हैं वे सीधी बेईमानी करते हैं और फंस जाते हैं। बेईमान फंसते हैं, ऐसा मत समझना; सिर्फ नासमझ बेईमान फंसते हैं। समझदार बेईमान नहीं फंसते, क्योंकि वे जो करते हैं उससे बचने का पूरा उपाय कर लेते हैं। उन्हें पकड़ना अति कठिन है। उन पर ध्यान भी जाना अति कठिन है कि वे ऐसा कर रहे होंगे।