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________________ श्रेष्ठ चरित्र और घटिया चरित्र जो व्यक्ति भी अपने चरित्र को बचाने की कोशिश में लगा रहता है वह घटिया है, मीडियाकर है। उसे चरित्र के अदभुत आकाश का कोई पता ही नहीं। उसे चरित्र की स्वतंत्रता का कोई पता नहीं। चरित्र उसके लिए एक बंधन और कारागृह है। आप देखते हैं साधुओं को! स्त्री न दिख जाए, आंख नीचे रखते हैं। यह साधुता कितने कीमत की है? स्त्री छू न जाए, अपने वस्त्रों को सम्हाल कर चलते हैं। . अभी एक साधु मुझे मिलने आए। तो जहां मैं बैठा था, जिस फर्श पर, उस पर दो स्त्रियां भी बैठी थीं। तो वह फर्श के नीचे ही रुक गए। तो मैंने कहा, आप आ जाएं पास; उतनी दूर से तो बात करना बहुत मुश्किल होगा। तो उन्होंने कहा, जरा अड़चन है; एक ही फर्श पर, जिस पर स्त्रियां बैठी हैं, मैं नहीं बैठ सकता। कोई उनसे स्त्रियों की गोद में बैठने को नहीं कह रहा है। फर्श पर नहीं बैठ सकते, क्योंकि फर्श पर स्त्रियां बैठी हुई हैं। वह फर्श स्त्रियों को छू रहा है, स्त्रैण हो गया। उसमें स्त्रियों की ध्वनि-तरंगें व्याप्त हो गईं। उससे साधु को कष्ट है; उससे साधु भयभीत है। यह साधुता कितने मूल्य की है? इसका कोई भी तो मूल्य नहीं है। इतनी कमजोर साधुता का मूल्य क्या हो सकता है? लेकिन हम भी कहेंगे कि हां, यह साधु है। क्योंकि हम भी क्षुद्र चरित्र को ही पहचान पाते हैं। क्षुद्र बुद्धि क्षुद्र चरित्र को ही पहचान भी सकती है। इस साधु को हम भी साधु कह पाएंगे, क्योंकि हमारी बुद्धि से भी इसका तालमेल बैठता है। मगर हम नहीं समझ पा रहे हैं कि जो इतना ज्यादा अपने चरित्र को बचाने पर तुला है, उसके पास कितना चरित्र होगा? है भी चरित्र या नहीं है? क्योंकि जो हमारे पास होता है उसे बचाने की कोई चिंता नहीं होती; जो हमारे पास नहीं होता उसे बचाने की बड़ी चिंता होती है। हम बचाते ही उसको फिरते हैं जिसका हमें खुद ही भय है कि उघड़ न जाए और पता न चल जाए कि वह हमारे पास नहीं है। अगर आप अपने चरित्र को बचाए रखने की कोशिश में लगे रहते हैं तो समझना कि वह चरित्र किसी काम का है नहीं। किसी और चरित्र को खोजें जिसे बचाना नहीं पड़ता। चरित्र आपको बचाएगा या आप चरित्र को बचाएंगे? सत्य आपको बचाएगा या आप सत्य को बचाएंगे? परमात्मा आपको बचाएगा या आप परमात्मा को बचाएंगे? जिस परमात्मा को आपके लिए बचाना पड़ता है, वह कचरे की टोकरी में डाल देने जैसा है। उसका क्या 'मूल्य? और जिस चरित्र को आप बचाते हैं, वह आपकी ही कृति है; वह आपसे बड़ी नहीं हो सकती। उस चरित्र को खोजें जो आकाश की तरह आपको घेर लेता है। फिर आप कहीं भी जाएं वह आपको घेरे ही रहता है। आप नरक में उतर जाएं तो भी घेरे रहता है। आप कहां हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। और उस चरित्र के प्रति आपको होश भी नहीं रखना पड़ता; वह है ही। वह आपकी श्वास बन गया। ऐसा चरित्र भी खोजा जा सकता है। ऐसे चरित्र की खोज ही.साधना है। मगर कठिन है यात्रा ऐसे चरित्र को खोजना जो आपको बचाए। आसान है ऐसे चरित्र को चिपका लेना अपने चारों तरफ जिसको आपको बचाना पड़े। वह वस्त्रों की भांति है जो आपने ओढ़ लिए हैं। घाव भीतर होता है; आपने मलहम-पट्टी ऊपर से कर ली। इलाज नहीं हुआ। और तब आपको बचाना पड़ता है। मैंने सुना है, एक छोटे बच्चे को हाथ में चोट आ गई थी। और डाक्टर उसके हाथ पर पट्टी बांध रहा था। उसके बाएं हाथ में चोट थी। तो उसने कहा कि मेरे दाएं हाथ में पट्टी बांध दें। तो उस डाक्टर ने कहा कि बेटे, तू पागल तो नहीं है? चोट तेरे बाएं हाथ में लगी है, पट्टी बांधना जरूरी है, ताकि बच्चे स्कूल के कोई धक्का न मार दें। उसने कहा, आप बच्चों को जानते नहीं हैं। इसीलिए तो मैं कह रहा हूं कि आप दाएं हाथ में बांधे। क्योंकि जहां पट्टी होगी वहीं वे लोग धक्का मारेंगे। अगर बायां बचाना है तो दाएं में पट्टी बांधनी जरूरी है। 153
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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