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ताओ उपनिषद भाग ४
आप नहीं चाहते कि क्रोध करें, और क्रोध होता है। और क्रोध से आपकी घृणा है। तो जब भी आप किसी व्यक्ति में क्रोध की झलक देखेंगे, घृणा पैदा हो जाएगी। आप नहीं चाहते चोरी करें, और चोरी आप करते हैं। तो जब भी आपको कहीं चोर दिखाई पड़ेगा, तत्क्षण घृणा पैदा हो जाएगी। इसका मतलब यह होता है कि जब भी आप कहीं घृणा करते हैं, तब निश्चित रूप से आप अपने से कोई संबंध पाते हैं। उस संबंध को थोड़ा खोजना।
इसलिए जो व्यक्ति अपने को बिलकुल घृणा नहीं करता वह किसी को भी घृणा नहीं करेगा। यह जरा समझ लेने जैसा है। इसलिए हम कहते हैं कि साधु के मन में किसी के प्रति घृणा नहीं होगी। क्योंकि अब उसके भीतर ही कुछ ऐसा हिस्सा नहीं है जिससे उसकी नफरत, संघर्ष, विरोध है। उसने सब स्वीकार कर लिया। वह सबको आत्मसात कर गया। उसने सब पी लिया; जहर, अमृत सब। और अब उसके भीतर घृणा का कोई बिंदु नहीं है।
इसलिए एक बहुत अनूठी घटना घटती है। समझ लें कि यहां कोई व्यक्ति एक ऐसा कृत्य कर दे जो आपको पसंद नहीं है; समझ लें कि एक चोर यहां पकड़ जाए, तो आप में जो सबसे ज्यादा चोर हैं वे उसकी पिटाई शुरू कर देंगे। जो चोर नहीं हैं वे उसको क्षमा कर सकते हैं, लेकिन जो चोर हैं वे क्षमा नहीं कर सकते। जिसको वे अपने में क्षमा नहीं कर पाए हैं, वे दूसरे में क्षमा नहीं कर सकते। और जिसका अपराध-भाव उनके ऊपर भारी है वे दूसरे पर उसे निकाल लेंगे। खुद को तो पीटना बहुत मुश्किल है, लेकिन दूसरे को पीटा जा सकता है। और एक राहत मिलेगी।
फिर और भी कारण हैं। जब कोई एक चोर पकड़ जाए तो सबसे पहले जो चोर हैं वे चिल्लाने लगेंगे उसके विरोध में। क्योंकि इससे वे घोषणा कर रहे हैं कि हम चोर नहीं हैं, हम तो चोर के इतने खिलाफ हैं। वे बता रहे हैं कि वे चोर नहीं हैं। क्योंकि अगर वे चुपचाप खड़े रहें तो उन्हें खुद भी डर है कि कोई यह न समझे कि ये भी चोर के समर्थन में हैं।
इसलिए एक बहुत अनूठी घटना समाज में घटती रहती है : जब भी बुराई के विपरीत कुछ लोग खड़े होकर लड़ने लगते हैं तो उनमें अक्सर वे ही लोग होते हैं जो बुराई को करने वाले हैं। भले आदमी को न तो अपराध का भाव होता है, न यह डर होता है कि मैं पकड़ा जाऊंगा, कि कोई क्या कहेगा कि तुम चुप खड़े हो! जब कि चोर पीटा जा रहा है, तब तुम चुप क्यों खड़े हो? क्या मतलब है? क्या तुम चोर के समर्थन में हो? क्या तुम चाहते हो कि चोरी हो?
आप अपने में जांच करना इसकी कि जब आप किसी चीज के विरोध में बहुत जोर से लड़ने को खड़े हो जाते हैं, तब आप भीतर खोज-बीन करना कि वह दुर्गुण कहीं आपका हिस्सा तो नहीं है! अगर वह आपका हिस्सा नहीं है तो इतना जोश आ ही नहीं सकता आपको। इतने जोश का कोई कारण ही नहीं है। जो बुराई आपकी नहीं है, जो दुर्गुण आपका नहीं है, उसमें इतना जोश-खरोश का कोई कारण नहीं है। वह आपके भीतर दबा हुआ पड़ा है।
तो जब आप दूसरे व्यक्ति में कभी देखते हैं अचानक कि आप में घृणा का भाव पैदा हो रहा है तो उसकी तो फिक्र छोड़ देना, आप थोड़ी अपनी फिक्र करना, आत्म-विश्लेषण करना कि ऐसा क्यों हो रहा है?
एक आदमी एक स्त्री को यहां धक्का मार दे, आप बस उसके ऊपर टूट पड़ेंगे। जो-जो लोग टूटेंगे वे वे ही लोग हैं जो स्त्रियों को धक्का मारते हैं। क्योंकि यह मौका वे नहीं चूक सकते, यह अवसर वे नहीं चूक सकते। स्त्रियों के प्रति सदभाव दिखाने का इससे अच्छा अवसर उनको कभी नहीं मिलेगा। वह जिस आदमी ने धक्का मारा है वह तो गुंडा है ही; जो उसको मार रहे हैं वे भी गुंडे हैं। लेकिन एक गुंडा पकड़ गया है और दूसरे गुंडे इस समय साधु-चरित्र होने का प्रमाण लिए ले रहे हैं।
अपने भीतर आप देखना कि जिस चीज पर आप बहुत जोश से भर जाते हैं वह कहीं न कहीं रोग का हिस्सा है, बुखार है उसमें; अन्यथा इतने जोश का कोई भी कारण नहीं है।
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