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ताओ हैं झुकने, खाली होने व मिटने की कला
लेकिन हम हर जगह हर आदमी अकड़ा हुआ है और अपने को बचा रहा है कि कहीं झुकना न पड़े, कहीं झुकना न पड़े। सभी इस कोशिश में लगे हैं, सभी अकड़ गए हैं, फ्रोजन हो गए हैं। अब उनमें खून नहीं बहता। सब अकड़े खड़े हुए हैं। इसलिए एक-दूसरे से मिल भी नहीं सकते, मैत्री भी संभव नहीं है। प्रेम असंभव हो गया है। निकट आना मुश्किल है। यह जो हमारे अकड़े होने की दुर्दशा है आज, उसका कारण वह सूत्र हमारे खयाल में बैठा हुआ है : झुकना ही मत, टूट जाना। मिट जाना, लेकिन झुकना मत।
लेकिन ध्यान रहे, हमारा मिटना भी मुर्दा होगा और हमारा टूटना भी सिर्फ विध्वंस होगा। इस सूत्र में आगे लाओत्से कहता है, 'खाली होना है भरे जाना। टु बी हालो इज़ टु बी फिल्ड।'
वर्षा होती है। पहाड़ों पर भी होती है, खड्डों में भी होती है। पहाड़ खाली के खाली रह जाते हैं, खड्डे झील बन जाते हैं। खड्डे भर जाते हैं, खाली थे इसलिए। और पहाड़ खाली रह जाते हैं, क्योंकि पहले से ही भरे हुए थे। पहाड़ पर भी उतनी ही वर्षा होती है। कोई गड्ढों पर वर्षा विशेष कृपा नहीं करती। सच तो यह है कि गड्ढे पहाड़ पर गिरे पानी को भी खींच लेते हैं, अपने में भर लेते हैं। क्या है उनकी ताकत? खाली होना उनकी ताकत है।
लाओत्से कहता है, जो जितने खाली हैं, इस जगत में जो परमात्मा का प्रसाद है, उतना ही ज्यादा उनमें भर जाएगा। जो अहंकारी हैं, अकड़े खड़े हैं पहाड़ों की तरह, वे खड़े रह जाएंगे। जो खाली हैं, वे भर जाएंगे।
इसका मतलब यह हुआ कि हमें खाली करने की कला आनी चाहिए। भरने की हम फिक्र न करें। हम सब भरने की फिक्र करते हैं। खाली करना, हमें डर लगता है। भरे चले जाते हैं; कूड़ा, कबाड़, कचरा, सब भरे चले जाते हैं। इकट्ठा करे चले जाते हैं, जो मिल जाए। बर्नार्ड शॉ ने कहीं कहा है कि कई चीजें मैं फेंक सकता हूं अपने घर की; लेकिन इसीलिए नहीं फेंकता कि कहीं दूसरे न उठा लें। वह भी फिक्र है। ऐसे बेकार हो गई हैं, कोई मतलब नहीं है; लेकिन दूसरे इकट्ठा कर लें तो उनका ढेर बड़ा हो जाए। तो इकट्ठा करता चला जाता है आदमी।
कभी आपने सोचा है, आप क्या-क्या इकट्ठा करते रहते हैं? क्यों करते रहते हैं? कुछ लोगों को और कुछ नहीं तो वे डाक टिकट इकट्ठी कर रहे हैं, पोस्टल स्टैम्प इकट्ठे कर रहे हैं। पूछे उनको, क्या हो गया है?
लेकिन कोई फर्क नहीं है। एक आदमी रुपए इकट्ठा कर रहा है; उसको हम पागल नहीं कहेंगे। एक आदमी डाक टिकट इकट्ठी कर रहा है। एक आदमी कुछ और इकट्ठा कर रहा है। इकट्ठा करना विचारणीय है; क्या इकट्ठा कर रहे हैं, यह बड़ा सवाल नहीं है। इकट्ठा करना! हम अपने को भर रहे हैं। खाली न रह जाएं; कहीं ऐसा न हो कि मौत आए और पाए कि बिलकुल खाली हैं, कोई फर्नीचर ही नहीं पास में। तो हम सब कूड़ा-कबाड़ इकट्ठा करके मौत के वक्त कहेंगे कि देखो, इतना सब सामान इकट्ठा कर लिया।
लेकिन आप खाली ही रह जाएंगे। यह सब सामान आपको खाली रखने का कारण बनेगा। जिस आदमी को भरना है, उसे अपने को खाली करना आना चाहिए। खाली करने का मतलब यह है कि आदमी के भीतर स्पेस चाहिए, जगह चाहिए। जो भी विराट उतर सकता है, उसको जगह चाहिए। हमारे भीतर अगर परमात्मा आना भी चाहे तो जगह कहां है? है कोई जगह थोड़ी-बहुत जहां उससे कहें कि कृपा करके आप यहां बैठ जाइए? खुद के बैठने की जगह नहीं है, खुद अपने बाहर खड़े हैं, कि भीतर तो कोई जगह है नहीं। अपने बाहर-बाहर घूमते हैं, कि भीतर तो कोई जगह है नहीं। परमात्मा मिल भी जाए और कहे कि आते हैं आपके घर में, तो वहां स्थान कहां है? .
जीवन का जो भी परम रहस्य है, वह खुद को खाली करने की कला में निहित है।।
इसे हम ऐसा समझें। अगर आप पूछे शरीर-शास्त्री से...और अगर आप लाओत्से से पूछे, तो शरीर-शास्त्री की जो अब की समझ है, वह वही कहती है जो लाओत्से कहता है। आपने कभी खयाल किया है कि आप श्वास जब लेते हैं तो आप लेती श्वास पर जोर देते हैं कि जाती श्वास पर?
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