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ताओ उपनिषद भाग ३
लाओत्से कहता है, खाली करने वाली श्वास पर जोर देना। लेने की फिक्र ही मत करना, वह अपने से आ जाएगी। उसकी आपको क्या चिंता करनी है? आप सिर्फ श्वास को उलीच कर बाहर कर देना। आप श्वास लेना मत अपनी तरफ से। वह काम परमात्मा कर लेगा, वह प्रकृति कर लेगी। आप सिर्फ खाली कर दो।
जीवन में जो परम रहस्य है स्वास्थ्य का, वह इतने से फर्क से भी हल हो जाता है। अगर कोई व्यक्ति सिर्फ श्वास को खाली करे और लेने का काम न करे, आने दे अपने से, तो उसे अपूर्व स्वास्थ्य उपलब्ध हो जाएगा। आप सीढ़ियां चढ़ते हैं; थक जाते हैं। अब की दफे ऐसा करना कि सीढ़ियां चढ़ते वक्त सिर्फ श्वास छोड़ना, लेना मत।
और आप नहीं थकेंगे। सीढ़ियां चढ़ते वक्त सिर्फ श्वास छोड़ना, खाली कर देना बाहर; और लेते वक्त आप फिक्र मत करना, शरीर को लेने देना। और आप पाएंगे, आप कितनी ही सीढ़ियां चढ़ सकते हैं, और नहीं थकेंगे। क्या हो गया? जब आप श्वास लेते हैं तो भीतर की जो गंदी श्वास है वह तो भीतर ही भरी रह जाती है, आप ऊपर से श्वास ले लेते हैं। वह ऊपर से ही वापस चली जाती है। भीतर की गंदी तो भीतर भरी ही रहती है। वह भीतर की गंदी श्वास, वह कार्बन डायआक्साइड ही आपकी हजार बीमारी, कमजोरी और सब चीजों का कारण है।
लेकिन हमारा जोर लेने पर क्यों है? वह हमारी वृत्ति के कारण है। हम हर चीज को लेना चाहते हैं, छोड़ना किसी चीज को भी नहीं चाहते। एक आध्यात्मिक कांस्टीपेशन है। कोई चीज छोड़ना नहीं चाहते, मल-मूत्र भी छोड़ना नहीं चाहते; उसको भी सम्हाल कर रखे हुए हैं।
एक वैज्ञानिक विचारक है पश्चिम में, मेथियास अलेक्जेंडर। उसने सारी जिंदगी लोगों की कब्जियत पर काम किया है। और वह कहता है कि कब्जियत मानसिक कंजूसी का परिणाम है; शारीरिक उसका कारण नहीं है। जो लोग कुछ भी नहीं छोड़ना चाहते, आखिर में वे मल भी नहीं छोड़ना चाहते हैं।
फ्रायड ने तो बहुत अजीब प्रतीक खोजा है; एकदम से कठिन मालूम पड़ता है। वह कहता है, सोने को पकड़ना और मल को पकड़ना एक ही प्रक्रिया के हिस्से हैं। और पीला रंग सोने का और मल का पीला रंग, वह कहता है, महत्वपूर्ण है। फ्रायड ने तो बहुत मेहनत की है बच्चों पर। क्योंकि बच्चे...। मां और बाप सब छुड़वाने की कोशिश करते हैं बच्चे से कि जा, शरीर को साफ कर, मल को बाहर निकाल! लेकिन बच्चे को एक बात समझ में आ जाती है कि एक चीज ऐसी है जिसमें वह मां-बाप का भी विद्रोह शुरू से ही कर सकता है। तो वह नहीं जाता। वह कहता है कि नहीं, कोई खयाल ही नहीं है। वह रोकता है, वह मां-बाप को बताता है कि तुम क्या समझते हो, एक चीज तो कम से कम मेरे पास भी है जो मैं ही कर सकता हूं और तुम करवा नहीं सकते!
फ्रायड कहता है, ट्रॉमैटिक हो जाती है यह घटना। बच्चे की पहली ताकत उसके पास यही है। और तो कोई ताकत भी नहीं है गरीब पर। और मां-बाप पर सब कुछ है; वे हर कुछ कर सकते हैं। बच्चे के पास एक ताकत है; मां-बाप को प्रसन्न कर सकता है। अगर वह चला जाए पाखाना, मां-बाप को प्रसन्न कर देता है। न जाए, घर भर में चिंता खड़ी कर देता है। वह दो दिन सम्हाल ले, संयमी हो जाए, सब को बेचैन कर डाला उसने। उसके हाथ में एक ताकत आ गई। यह बच्चा सीख रहा है चीजों का रोकना। फिर जिंदगी भर इसका संबंध गहरा होता चला जाएगा; हर चीज को रोकने की वृत्ति होती चली जाएगी।
कंजूस आदमी अक्सर कब्जियत से भरे होंगे। जो आदमी सहज चीजें दे सकता है, बांट सकता है, वह कब्जियत का शिकार नहीं होगा। जुड़े हैं हमारे जीवन में एक आरगैनिक यूनिटी है; सब चीजें जुड़ी हैं, अलग अलग नहीं हैं। छोटी सी चीज भी जुड़ी है, बहुत छोटी सी चीज भी जुड़ी है।
आप खाना खा रहे हैं। लोग भरते चले जाते हैं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि चबाते क्यों नहीं लोग? भरते क्यों चले जाते हैं? चबाएंगे तो देरी लगेगी। भरने की इतनी जल्दी है, भर लेना है। अगर आप ठीक से चबाएं तो आपको
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