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ताओ उपनिषद भाग ३
मत, नहीं तो सुबह जागेंगे कैसे? अगर सो ही गए! और कुछ हैं ऐसे लोग जो सोने से डरते हैं कि सुबह जागेंगे कैसे? मनोवैज्ञानिकों के पास बहुत से लोग पहुंच जाते हैं, जिनको यह भय रहता है। और बीमारी सख्त होती है कभी तब तो अनेक लोग डरते हैं सोने से। क्योंकि लगता है पता नहीं, फिर उठ पाए, न उठ पाए। कम से कम जागते-जागते तो मरें। कहीं सोते में ही मर गए तो पता भी नहीं चलेगा कि मर गए। जिंदा रहने का तो कभी पता चला ही नहीं; यह मरने का भी पता नहीं चलेगा। दोनों ही बातें चूक गईं।
लेकिन कोई आपसे कहता नहीं कि सोओ मत, नहीं तो जागोगे कैसे। हालांकि सोना उलटी प्रक्रिया है; सोना बिलकुल उलटा है जागने से। लेकिन कभी खयाल किया कि जो आदमी जितना गहरा सोता है, उतना गहरा जागता है, उतना चैतन्य जागता है। रात जितनी गहरी होती है नींद, सुबह उतना गहरा होता है जागरण।
आपको एक बीमारी का तो पता होगा, अनिद्रा का, कि रात अनेक लोग हैं जो सो नहीं पाते। लेकिन उनको भी यह खयाल नहीं है कि जब रात वे सो नहीं पाते तो दिन वे जाग भी नहीं पाते हैं। वह दूसरी बात उनके खयाल में नहीं है। अनिद्रा की जिसको बीमारी है, उसको अजागरण की बीमारी भी होगी। वह खयाल में नहीं आती उसे। क्योंकि नींद की गहराई पर जागने की गहराई निर्भर है। जितनी गहरी होगी नींद, जितनी तल-स्पर्शी होगी, उतना ही सुबह गहरा जागरण होगा। अगर रात नींद उथली, सुबह जागरण उथला। अगर रात नींद बिलकुल नहीं, तो सुबह सिर्फ आपकी आंखें खुल गई हैं, आप जागे नहीं हैं।
रात आदमी आंखें बंद कर लेता है; आंखें बंद कर लेने से कोई सोने का संबंध है? हम सब सोचते हैं कि आंख बंद कर ली तो सो गए। नहीं, नींद आती है तो आंख बंद होती है। आंख बंद करने से दुनिया में कोई नहीं सो सकता। आंखें बंद किए पड़े रहिए रात भर। नींद नहीं आती तो आंख बंद करने का नाम नींद नहीं है। तो ठीक दूसरी बात भी खयाल रख लें, सुबह आंख खोल ली, उसका नाम जागरण नहीं है। क्योंकि जागरण का अनुपात निर्भर करता है नींद की गहराई पर।
__ इसे और तरह से देखें। एक आदमी दिन भर मेहनत करता है। जितनी उसकी मेहनत होती है, उतना गहरा उसका विश्राम हो जाता है। कई लोग सोचते हैं कि दिन भर विश्राम करते रहें तो विश्राम का अच्छा अभ्यास रहेगा, तो रात काफी गहरा विश्राम हो जाएगा। वे गए, उनको विश्राम कभी नहीं होगा। बल्कि उनको रात बिस्तर पर व्यायाम करना पड़ेगा। क्योंकि जितना व्यायाम करने से बच गए हैं, वह कौन करेगा? और सुबह वे थके हुए उठेंगे; क्योंकि रात भर जब व्यायाम करेंगे, तो सुबह थके हुए उठेंगे ही। उनकी जिंदगी में दुष्टचक्र पैदा हो गया।
वे सोचते हैं कि विश्राम ज्यादा करेंगे तो ज्यादा विश्राम उपलब्ध हो जाएगा। जिंदगी उलटे, विपरीत के सूत्र से चलती है; वह जो अपोजिट पोलर है, जो ध्रुवीयता है विरोध की, उससे चलती है। अगर गहरा विश्राम चाहिए, गहरा श्रम चाहिए। गहरे श्रम में उतर जाएं, विश्राम अपने आप आ जाएगा। गहरी नींद में चले जाएं, जागरण अपने आप आ जाएगा। ठीक से जाग लें, नींद अपने आप आ जाएगी। अगर आपको रात नींद न आती हो तो मैं नहीं कहूंगा कि नींद लाने का उपाय करें। मैं आपसे कहूंगा दौड़ें और मकान के सौ-पचास चक्कर लगा आएं। नींद न आने का मतलब इतना है कि आपने कोई श्रम नहीं किया, आप जागे नहीं। दौड़ें, एक सौ चक्कर मकान के लगा आएं। फिर आपको नींद लाना न पड़ेगी, आ जाएगी।
लाओत्से कहता है, 'और झुकना ही है सीधा होने का मार्ग।'
इस भ्रांति में मत पड़ना कि अकड़ कर खड़े रहें तो सीधे हो जाएंगे। अकड़ जाएंगे, लकवा लग जाएगा, पैरालिसिस हो जाएगी। पैरालिसिस का नाम सीधा होना नहीं है। जो झुकने में जितना कुशल है, उसके खड़े होने में उतनी जीवंतता होती है, स्वास्थ्य होता है। जीवन के समस्त तलों पर झुकना सीखना तो आप खड़े हो जाएंगे।
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