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ताओ हुँ झुकने, खाली होने व मिढने की कला
तो जो व्यक्ति प्रशंसा चाहेगा, वह सारे जगत से निंदा को आमंत्रित कर लेगा। अपनी ही तरफ से निमंत्रण बुला रहा है। फिर जितना वह सिद्ध करने की कोशिश करेगा, उतने ही दूसरे लोग भी कोशिश करेंगे कि तुम गलत हो। इस सूत्र का शीर्षक है : फ्यूटिलिटी ऑफ कनटेंशन, दावे की व्यर्थता। जब आप दावा करोगे तो सारी दुनिया दावा करेगी कि गलत हो। और बड़ा कठिन है दावे को बचा लेना। कोई उपाय नहीं है। वे सिद्ध कर ही देंगे कि आप गलत हो। और एक और बड़े मजे की बात है कि एक बार दावा गलत हो जाए, सही या गलत, फिर उसे कभी भी झुठलाया नहीं जा सकता।
हमारे हृदय में इच्छा यह है कि मेरे सिवाय कोई भी ठीक नहीं है, यह हम जानते हैं। अरब में वे कहते हैं, ईश्वर हर आदमी को बना कर एक मजाक कर देता है, उसके कान में कह देता है—तुमसे बेहतर आदमी मैंने बनाया ही नहीं। सभी से कह देता है, यही खराबी है। और प्राइवेट में कह देता है, इसलिए कोई दूसरे को पता नहीं है कि दूसरे को भी यही कहा हुआ है। वे सभी यह खयाल लेकर जिंदगी भर चलते हैं कि मुझसे बेहतर आदमी जगत में दूसरा नहीं है। और सभी यह खयाल लेकर चलते हैं।
तो लाओत्से का सूत्र हमारे खयाल में आ सकता है, 'झुकना है सुरक्षा। झुकना ही है सीधा होने का मार्ग।'
अगर किसी व्यक्ति को सीधा, सादा, सरल, ऋजु व्यक्तित्व चाहिए हो तो उसे झकने की कला सीख लेनी चाहिए। हम सब अकड़ने की कला सीखते हैं। हम कहते हैं कि अगर हमें सीधा रहना है, रीढ़ के बल खड़े रहना है, तो झुकना मत, चाहे टूट जाना। सब शिक्षाएं समझाती हैं कि झकना मत, चाहे टूट जाना। हम बड़ा आदमी उसको कहते हैं कि वह झुका नहीं, भला टूट गया। अहंकार का सूत्र यही है, झुकना मत, टूट जाना।
लेकिन जीवन का यह सूत्र नहीं है। ध्यान है आपको, बच्चों के सब अंग कोमल होते हैं, झकने वाले होते हैं। बूढ़े के सब अंग सख्त हो जाते हैं, झकते नहीं हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि बूढ़े के मरने का जो बुनियादी कारण है, वह उम्र नहीं है, अंगों का सख्त हो जाना है। अगर बूढ़े के अंग भी इतने ही कोमल बनाए रखे जा सकें, जैसे बच्चे के, तो मृत्यु का कोई बायोलाजिकल कारण नहीं है।
यह जान कर आपको हैरानी होगी कि अभी तक वैज्ञानिक यह नहीं समझ पाए कि आदमी क्यों मरता है। क्योंकि जहां तक शरीर का संबंध है, ऐसा कोई कारण नहीं दिखाई पड़ता कि आदमी बहुत-बहुत समय तक क्यों न जी सके। सिर्फ एक बात दिखाई पड़ती है कि धीरे-धीरे अंग सख्त होते चले जाते हैं। वह जो नमनीयता है, फ्लेक्सिबिलिटी है, वह खो जाती है। वह नमनीयता का खो जाना ही मृत्यु का कारण बनता है। जितना सख्त हो जाता है सब भीतर, उतनी ही मौत करीब आ जाती है। जितना भीतर सब होता है नमनीय, तरल, उतनी मृत्यु दूर है।
यह जो शरीर के संबंध में सही है, मनुष्य की अंतरात्मा के संबंध में और भी ज्यादा सही है। जो झुकने के लिए जितना राजी है, उतने अमृत को उपलब्ध हो जाता है। और जो झुकने से बिलकुल इनकार कर देता है, वह तत्क्षण मृत्यु को उपलब्ध हो जाता है। यह दूसरी बात है कि हम मरे हुए भी जी सकते हैं; और आत्मा मरी-मरी रहे, शरीर ढो सकता है। अकड़ मौत है आध्यात्मिक अर्थों में। नमनीयता जीवन है।
लाओत्से कहता है, और झुकना है सीधा होने का मार्ग। टु बी बेंट इज़ टु बिकम स्ट्रेट।'
उलटी बातें हैं न। झुकोगे तो लोग कहेंगे, ऐसे बार-बार झुकोगे, आदत हो जाएगी झुकने की, फिर सीधे कैसे हो सकोगे? इसलिए सीधे रहो, झुको मत। लेकिन खयाल है आपको, इसको कोशिश करके देखें, झुकें मत, सीधे रहें। एक चौबीस घंटे बिलकुल न झुकाएं शरीर को, सीधा रखें; और तब आपको पता लगेगा कि बस, अब मौत आती है। नहीं, झुकने से कोई झुकता नहीं है; हर बार झुक कर सीधे होने की ताकत पुनरुज्जीवित होती है।
इसको समझ लें। दिन भर आप जागते हैं। वह तो अच्छा है कि कोई समझाने आपको नहीं आता कि सोएं
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