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ताओ हुँ झुकने, खाली छोने व मिटने की कला
झुक जाओ। कभी इसका प्रयोग करके देखें। कोई आपको जोर से घूसा मारे, तब आप घूसे के खिलाफ बचाव मत करें; घुसे को आत्मसात करने के लिए तैयार हो जाएं, पी जाएं। और आप पाएंगे, जिसने चूंसा मारा, उसकी हड्डी टूट गई। जिसने घूसा मारा, उसकी हड्डी टूट गई।
जुजुत्सु की कला कहती है कि अगर तुम प्रतिरोध न करो तो तुम सदा जीते हुए हो। इसलिए अगर जुजुत्सु जानने वाले आदमी से आप पहलवानी करें तो आप हार जाएंगे। हारेंगे ही नहीं, हाथ-पैर तोड़ लेंगे। क्योंकि आप चोट करेंगे और वह सिर्फ चोट को पीएगा। उसकी शक्ति तो जरा भी नष्ट नहीं होगी; आप पांच-सात चोटें करके हीन हो जाएंगे। आपकी शक्ति नष्ट हो रही है। बल्कि जुजुत्सु की गहरी कला यह है कि जब कोई आपको घुसा मारता है, अगर आप शांति से स्वीकार कर लें तो उसके घूसे की सारी ऊर्जा आपको उपलब्ध हो जाती है। आप लड़ें न, तो उसके बूंसे में जितनी शक्ति व्यय हुई उतनी शक्ति आपके शरीर में रूपांतरित हो जाती है। आप उसे पी गए। दस-पांच घुसे उसे मार लेने दें, वह अपने आप थक जाएगा, अपने आप गिर जाएगा।
और यह जो मैं कह रहा हूं, जुजुत्सु कोई अध्यात्म नहीं है। यह तो सीधी-सीधी कला है लड़ने की। और जुजुत्सु की खूबी है कि छोटा बच्चा भी बड़े पहलवान से लड़ सकता है। क्योंकि शक्ति का कोई सवाल नहीं है; यील्ड करने का सवाल है, झुकने का सवाल है, आत्मसात करने का। दो शब्द समझ लेंः प्रतिरोध और अप्रतिरोध, रेसिस्टेंस और नॉन-रेसिस्टेंस। अगर आप प्रतिरोध करते हैं तो आप हार जाएंगे। अगर आप अप्रतिरोध में जीते हैं तो आप नहीं हार सकते। आंधियां निकल जाएंगी, आप वापस खड़े हो जाएंगे।
'झुकना है सुरक्षा।'
लाओत्से कहता है, मुझे कभी कोई हरा न सका, क्योंकि मैं हारा ही हुआ हूं। कैसा मजेदार हो मामला, आप लाओत्से से लड़ने चले जाएं, वह तत्काल चारों खाने चित्त लेट जाएगा। कहेगा, ऊपर बैठ जाएं। जीत गए, गांव में डंका पीट दें। आप बड़े मूढ़ मालूम पड़ेंगे। आप वैसे ही मालूम पड़ेंगे जैसे कभी छोटा बच्चा अपने बाप से कुश्ती लड़ता है और बाप नीचे लेट जाता है और छोटा बच्चा ऊपर छाती पर चढ़ जाता है। और छोटा बच्चा चिल्लाता है खुशी में कि जीत गए। और बाप जानता है कि कौन जीत रहा है, कि कौन जिता रहा है।
लाओत्से कहता है, मैं कभी हराया न जा सका, क्योंकि हम हारे ही हुए हैं। तुम आओ, हम तैयार हैं। लाओत्से कहता है, मेरा कभी अपमान नहीं हुआ; क्योंकि मैंने कभी उस जगह कदम भी न रखा, जहां सम्मान की अपेक्षा थी। मुझे कभी किसी सभा से बाहर नहीं निकाला गया; क्योंकि मैं बैठता ही वहां हूं, जहां से और बाहर निकालने का उपाय नहीं है।
एक सभा में लाओत्से गया है। तो जहां लोगों ने जूते उतार दिए हैं, वह वहीं बाहर बैठ गया है। बहुत लोग कहते हैं कि अंदर चलें, मंच पर चलें, भीतर बैठे। लाओत्से कहता है कि नहीं, वहां से मैंने कई को निकाले जाते देखा है। हम यहीं बैठे हैं; तुम हमारा कुछ भी न कर सकोगे।
घटना मुझे याद आती है; मुल्ला नसरुद्दीन एक सभा में गया। सदा उसकी आदत थी नंबर एक होने की। जरा देर से पहुंचा था, जैसा कि बड़े आदमियों को पहुंचना चाहिए। बड़े आदमी जान कर देर से पहुंचते हैं। क्योंकि छोटे आदमियों को अगर राह न दिखलाई जाए थोड़ी-बहुत तो बड़ा आदमी बड़ा ही क्या! थोड़ी देर से पहुंचा था। लेकिन उस दिन कुछ गड़बड़ हो गई। गांव के बाहर से एक विद्वान आ गया था; वह सभा पर बैठा हुआ था; व्याख्यान चल रहा था। मुल्ला नसरुद्दीन जब पहुंचा तो श्रोता मग्न थे, सुन रहे थे। वह पीछे बैठ गया। और तो कोई उपाय न था। बैठ कर उसने अपनी कहानियां लोगों से कहनी शुरू कर दी। थोड़ी ही देर में, उसकी कहानियां ऐसी थीं कि लोग मुड़ते गए। आखिर सभापति को चिल्ला कर कहना पड़ा कि नसरुद्दीन, यह शोभा नहीं देता। तुम्हें खयाल होना
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