________________
ताओ उपनिषद भाग ३
और जैसे ही किसी व्यक्ति ने जीतना चाहने की वासना पैदा की, एक बात उसने और स्वीकार कर ली कि अभी वह हारा हुआ है। मनसविद कहते हैं कि जो हीन-ग्रंथि से पीड़ित होते हैं, इनफीरियारिटी कांप्लेक्स से पीड़ित होते हैं, वे ही केवल जीत में उत्सुक होते हैं, महत्वाकांक्षी हो जाते हैं। महत्वाकांक्षा हीन व्यक्ति का लक्षण है। जैसे दवाई की तरफ बीमार आदमी जाता है, ऐसे ही महत्वाकांक्षा की तरफ हीन आदमी जाता है।
इसलिए एक अजीब घटना घटती है। एडलर ने पश्चिम में, इस सदी में, इस संबंध में गहरे से गहरा काम किया है। एडलर का कहना है कि जो लोग भी जीवन में किसी बड़ी कमी से पीड़ित होते हैं, वे लोग उस कमी की परिपूर्ति के लिए कोई कांप्लीमेंटरी रास्ता खोज लेते हैं। जैसे लेनिन कुर्सी पर बैठता था तो उसके पैर जमीन को नहीं छूते थे। पैर बहुत छोटे थे, ऊपर का हिस्सा बड़ा था। और एडलर का कहना है कि यह घटना ही लेनिन को बड़े से बड़े पद की तलाश में ले गई। बड़ी से बड़ी कुर्सी पर बैठ कर उसने दिखा दिया कि पैर चाहे जमीन न छूते हों, लेकिन ऐसी कोई कुर्सी नहीं है जिस पर मैं न बैठ सकूँ। कठिनाई उसकी यह थी कि वह किसी भी कुर्सी पर नहीं बैठ सकता था। किसी छोटी सी कुर्सी पर भी बैठता सामान्य किसी के घर में तो उसे बेचैनी शुरू हो जाती। उसके पैर छोटे थे
और लटक जाते थे। एडलर कहता है कि लेनिन के लिए यही कमी उसकी महत्वाकांक्षा बन गई। उसने कहा, कोई फिक्र नहीं, तुम्हारी कुर्सियां बड़ी हैं और मेरे पैर छोटे पड़ते हैं, लेकिन मैं तुम्हें बता दूंगा, जगत को, कि ऐसी कोई भी कुर्सी नहीं है जिस पर मैं न बैठ सकू। किसी भी कुर्सी पर वह ठीक से बैठ नहीं सकता था, यही अभाव दौड़ बन गई।
एडलर ने, दुनिया के जिनको हम बड़े-बड़े लोग कहते हैं, उनका गहरा अध्ययन किया है। और हर बड़े आदमी में, जिसको हम बड़ा आदमी कहते हैं, उसने वह कमी खोज निकाली है जो उसकी महत्वाकांक्षा का कारण है।
यह स्वाभाविक है। इसलिए अक्सर ऐसा हो जाता है कि अंधा आदमी अपने कानों की शक्ति को बढ़ा लेता है। बढ़ा ही लेगा। आंख का काम भी उसे कान से ही लेना है। इसलिए अंधों के पास कान अच्छे हो जाते हैं। और अगर अंधे संगीतज्ञ होते हैं तो कोई और कारण नहीं है; कान अच्छे हो जाते हैं।
यह कभी आपने खयाल किया कि कुरूप व्यक्ति अपनी कुरूपता को छिपाने के लिए न मालूम कितनी सुंदर चीजों का निर्माण कर लेता है। अगर आप दुनिया के चित्रकारों को देखें, जिन्होंने सुंदरतम रचनाएं रची हैं, तो आप हैरान हो जाएंगे, उनके खुद के चेहरे सुंदर नहीं हैं।
ऐसा हुआ, एक गांव में मैं घर में मेहमान था किसी के और अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन वहां हो रहा था। तो जिन मित्र के घर मैं ठहरा था, उन्होंने कहा, आप भी चलेंगे? भारत भर से कोई बीस महिला कवि इकट्ठी हुई हैं। मैंने कहा, मैं तो नहीं जाऊंगा, एक बात आप खयाल करके लौटना-बीस महिलाएं जो वहां हैं, उनमें कोई एकाध सुंदर है या नहीं? वे थोड़े हैरान हुए कि मैं उनसे ऐसा पूर्वीगा। लेकिन लौट कर वे और हैरान हुए। उन्होंने कहा, आश्चर्य, आपने पूछा तब मैं थोड़ा हैरान हुआ था; वहां जाकर मैं और हैरान हुआ, वे बीस ही महिलाएं कुरूप थीं।
महिला जब सुंदर होती है तो कविता वगैरह करने में नहीं पड़ती। इसलिए दुनिया में सुंदर महिलाओं ने कुछ नहीं किया है। कंपेनसेशन नहीं है। सौंदर्य काफी है; किसी और चीज से पूरा करने का विचार नहीं उठता।
एडलर का कहना है कि इस दुनिया में जो ठीक-ठीक स्वस्थ व्यक्ति हैं, वे किसी महत्वाकांक्षा के पद पर नहीं पहुंच सकते। सिर्फ रुग्ण, बीमार, पंगु व्यक्ति ही महत्वाकांक्षा के पदों पर पहुंच सकते हैं।
इसमें सचाई है। इसमें दूर तक सचाई है। जो कम है हमारे भीतर, उसे हम पूरा करना चाहते हैं, ओवर कंपेनसेट करना चाहते हैं; ताकि सारी कमी ढंक जाए, परिपूर्ति हो जाए। जब कोई व्यक्ति जीतने की आकांक्षा से भरता है तो उसका मतलब है कि वह जानता है गहरे में कि मैं हारा हुआ आदमी हूं। यह उलटा दिखाई पड़ेगा। लेकिन एडलर ने तो अभी खोजा, लाओत्से इसे ढाई हजार साल पहले अपने सूत्र में लिखा है।
61