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ताओ है झुकने, खाली छोने व मिटने की कला
लाओत्से कहता है, अगर जीतना चाहते हो तो जीतने की कोशिश मत करना। वह हार की शुरुआत है। अगर जीतना चाहते हो तो जीतने की वासना ही तुम्हारी सबसे बड़ी शत्रु है। वही सिद्ध कर रही है कि तुम जीतने योग्य भी नहीं हो। वही सिद्ध कर रही है कि तुम गहरी हीनता के गड्डे से भरे हो। वही सिद्ध कर रही है कि तुम रुग्ण हो, पंगु हो; कहीं कोई पक्षाघात है तुम्हारी आत्मा में।
यह किसी और आयाम से भी हम समझें तो खयाल में आ जाए।
अभी कुछ वैज्ञानिक प्रस्तावित कर रहे हैं कि डार्विन का खयाल था कि आदमी इसीलिए विकसित हो सका दूसरे पशुओं से, क्योंकि वह ज्यादा बुद्धिमान है, ज्यादा रैशनल है; इसलिए जो संघर्ष है प्रकृति का, उसमें आदमी जीत गया और पशु हार गए। अब तक यह बात ठीक मालूम पड़ती रही है। लेकिन अब नवीनतम शोधे इस पर संदेह पैदा करती हैं। और वे कहती हैं कि आदमी का यह जो विकसित, तथाकथित विकसित, सो-काल्ड विकसित रूप दिखाई पड़ता है, यह आदमी के ज्यादा शक्तिशाली, ज्यादा बुद्धिमान, ज्यादा श्रेष्ठ होने के कारण नहीं है। बल्कि इसका बुनियादी कारण है कि इस पृथ्वी पर आदमी का बच्चा सब से असहाय पैदा होता है, सब से हेल्पलेस। अगर आदमी के बच्चे को मां और बाप पालें और पोसें नहीं और समाज चिंता न करे तो आदमियत बच ही नहीं सकती। सभी जानवरों के बच्चे आदमी के बच्चे से ज्यादा शक्तिशाली पैदा होते हैं।
वैज्ञानिक कहते हैं कि आदमी का बच्चा अगर जानवर की तरह शक्तिशाली पैदा करना हो तो कम से कम मां के गर्भ में उसे इक्कीस महीने रहना चाहिए। लेकिन तब वह पैदा नहीं हो सकेगा, मां मर जाएगी। क्योंकि वह इतना बड़ा हो जाएगा कि उसके जन्म का उपाय नहीं है। इसलिए अगर ठीक से समझें तो सारे पशुओं को देखते हुए मनुष्य के सब जन्म गर्भपात हैं, एबार्शन हैं। क्योंकि बच्चा अधूरा पैदा होता है, एबार्शन का मतलब यह है। नौ महीने में बच्चा अधूरा पैदा होता है। अभी बहुत सी चीजें, जो उसमें होनी चाहिए, नहीं हैं। अभी वे विकसित होंगी।
और फिर भी अगर हम गौर से देखें तो घोड़े का बच्चा है-पैदा हुआ, और चलने लगा, दौड़ने लगा। आदमी के बच्चे को चलने में अभी वर्षों लगेंगे। पशुओं के बच्चे हैं, उठे और अपने जीवन की तलाश में चल पड़े, आजीविका खोजने लगे। आदमी के बच्चे को आजीविका खोजने में पच्चीस वर्ष लगेंगे।
आदमी का बच्चा जगत में सबसे ज्यादा कमजोर प्राणी है। और चूंकि आदमी कमजोर है, इसलिए उसने ओवर-कंपेनसेट कर डाला, उसने सब जानवरों को पिछड़ा दिया। उसने सब चीजों की परिपूर्ति कर ली। आदमी के नाखून जानवरों के नाखून से तौलें तो पता चलेगा। अगर आप जानवर से सीधा लड़ें तो आदमी से ज्यादा कमजोर जानवर जमीन पर खोजना मुश्किल है। उसके दांत, उसके नाखून आपको क्षण भर में चीर-फाड़ कर रख देंगे। वैज्ञानिक कहते हैं कि नाखून की पूर्ति आदमी ने इतनी दूर तक की-छुरी, तलवार, एटमबम तक चली गई। वह नाखून की पूर्ति है। वह बढ़ाए चला गया अपने नाखूनों को। वह अपने दांतों को बढ़ाए चला गया। कभी आपने देखा
है, जब एक टैंक युद्ध की तरफ जाता है तो आपने टैंक के दांत देखे हैं? वे आदमी के दांत हैं, जो जानवरों से कमजोर · हैं। ओवर-कंपेनसेशन हो गया। हमने और बड़े दांत मशीन में पैदा करके जानवरों को मिट्टी में मिला दिया।
नवीनतम शोधे यह कहती हैं कि आदमी का जिसको हम विकास कहते हैं, वह शायद उसकी हीनता, कमजोरी, असहाय अवस्था का परिणाम है।
जो हो, एक बात तय है कि ऊपर उठने की आकांक्षा नीचे गिरे होने का सबूत है। जो नीचे गिरा हुआ है ही नहीं, वह ऊपर उठना न चाहेगा। जो अपने में आश्वस्त है, वह किसी दूसरे को आश्वासन दिलाने न जाएगा। जिसका अपने पर भरोसा है, वह अपने भरोसे को पाने के लिए दूसरे को हराने के उपद्रव में न पड़ेगा। हम संघर्ष करते हैं कुछ सिद्ध करने को; लड़ते हैं कुछ सिद्ध करने को कि मैं कुछ हूं। यह इस बात की सूचना है कि मुझे
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