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क अनूठी घटना दिखाई पड़ती है संसार में। सभी सफल होना चाहते हैं;
और सभी असफल हो जाते हैं। नहीं है कोई जो सुख न चाहता हो; और ऐसा भी कोई नहीं है जो चाह-चाह कर भी सिवाय दुख के कुछ और पाता हो। जीना चाहते हैं सभी; और सभी मर जाते हैं। जरूर कहीं कोई जीवन का गहरा नियम अपरिचित रह जाता है; उसका यह दुष्परिणाम है। एक व्यक्ति असफल होता हो तो जिम्मेवारी उसकी हो सकती है। लेकिन जब जगत में सभी सफलता चाहने वाले असफल हो जाते हों तो जिम्मेवारी व्यक्तियों की नहीं रह जाती। कहीं जीवन का कोई बुनियादी नियम ही चूक रहा है। एक व्यक्ति सुख चाहता हो और दुख में पड़ जाता हो, समझ ले सकते हैं कि उसकी भूल होगी। लेकिन जहां सभी सुख चाहने वाले दुख में
पड़ जाते हों, वहां व्यक्तियों पर जिम्मा नहीं थोपा जा सकता। जीवन के नियम को ही समझने में सभी की समान भूल हो रही है। लाओत्से का यह सूत्र इस बुनियादी भूल से संबंधित है।
लाओत्से कहता है, जो जीतने की कोशिश करेगा, वह हारेगा।
हम इसलिए नहीं हारते हैं कि कमजोर हैं; हम इसलिए हारते हैं कि हम जीतने की कोशिश करते हैं। इसे थोड़ा हम समझ लें। क्योंकि मनुष्य-जाति का जो बुनियादी भ्रांत तर्क है, वह इस पर ही निर्भर है। हारता हूं मैं तो सोचता हूं, कमजोर था। तो शक्ति और बढ़ा लूं तो जीत जाऊंगा। तो शक्ति को हम बढ़ाने में लगे रहते हैं। लेकिन कितनी ही शक्ति आ जाए आदमी के हाथ, अंततः हार ही हाथ लगती है; जीत उपलब्ध नहीं हो पाती। सिकंदर हारा हुआ मरता है, नेपोलियन हारा हुआ मरता है; सभी हारे हुए मरते हैं। कमजोर तो हारते ही हैं, शक्तिशाली भी हारे हुए मरते हैं। तो तर्क, कि शक्ति ज्यादा होगी तो हम जीत जाएंगे, गलत है।
लाओत्से कहता है, जीतना चाहोगे तो हारोगे। हार का कारण जीतने की इच्छा में छिपा है, शक्ति की कमी में नहीं। असल में, जो जीतना चाहता है, उसके मन को हम समझें। जो जीतना चाहता है, पहली तो बात एक उसने स्वीकार कर ली कि हारने की भी संभावना है। जो जीतना चाहता है, उसने यह भी स्वीकार कर लिया कि जीतना बहुत मुश्किल है। जो जीतना चाहता है, उसने यह भी स्वीकार कर लिया कि मेरी जीत दूसरों पर निर्भर करेगी। क्योंकि जीत अपने पर निर्भर नहीं करती; कोई हारेगा तो मैं जीतूंगा। तो जीत में दूसरे की गुलामी छिपी है। सब जीतने वाले हारने वालों के अनुग्रहीत होना चाहिए, क्योंकि उनके बिना वे न जीत सकेंगे। और जो जीत दूसरे पर निर्भर है, उसे हम जीत कह सकते हैं? अगर मेरी जीत भी आप पर निर्भर है तो आप मेरी जीत के भी मालिक हो गए। आपकी मुट्ठी में बंद है फिर मेरी चाबी। आप हारेंगे तो मैं जीतूंगा। और यह जगत है विराट और बड़ा। और कितनी ही बड़ी शक्ति हो हमारे पास, सदा क्षुद्र है-इस जगत की शक्तियों को देख कर। और कितने ही हम हाथ-पैर तड़पाएं, हम इस जगत की शक्ति से ज्यादा न हो सकेंगे। हम इसके हिस्से हैं, छोटे से हिस्से हैं। हम हारेंगे ही।
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