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शुद्र आचरण नीति है, परम आचरण धर्म
जगत की संपत्ति भी एक तरफ रखते तराजू पर, तो भी वह तराजू का पलड़ा इसको ऊंचा नहीं उठा पाता, फिर भी यह वजनी होता। यह मैंने क्या कर दिया? और इस आदमी ने मरते वक्त भी यही कहा कि माफ कर देना इन सब को!
हम भी जब बेईमानी करते हैं और दो पैसे के लिए बेईमानी करते हैं तो हमें पता नहीं कि हम दो पैसे में भीतर की आत्मा को बेच रहे हैं। यह कोई जीसस को बेचने से कम मामला नहीं है। तब आप जुदास हैं और जीसस को बेच रहे हैं। तब आपको पता चलेगा कि जुदास ने भी भूल नहीं की, तीस रुपए काफी होते हैं-चांदी के थे और असली चांदी थी। तीस रुपए आपको भी मिलें असली चांदी के, आप भी बेचने को तैयार हैं।
यह कोई जीसस का बिकना एक दिन घट गई घटना नहीं है; हर आदमी की जिंदगी में यह रोज घटती है। यह कोई ऐतिहासिक घटना नहीं है कि घट गई और समाप्त हो गई। हम रोज ही जीसस को बेचते हैं। वह जो हमारे भीतर निर्दोष आत्मा है, उसे हम कौड़ियों में रोज बेच देते हैं। लेकिन बेचते हैं तो उसका मतलब इतना ही है कि हमें पता ही नहीं है कि भीतर क्या है। उसका पता हो तो यह बेचना असंभव हो जाए।
इसलिए लाओत्से कहेगा कि जीवन के जो परम आचरण के सूत्र हैं, वे ताओ से ही उदभूत होते हैं। जब तक कोई स्वयं को न जान ले, निजता को न जान ले, स्वभाव को न जान ले, तब तक उसकी नैतिकता का कोई भी कोई भी-मूल्य नहीं है।
'परम आचार के जो सूत्र हैं, वे केवल ताओ से ही उदभूत होते हैं। और जिस तत्व को हम कहते हैं ताओ, वह है पकड़ के बाहर और दुर्ग्राह्य।'
और जिसे हम कहते हैं स्वभाव, अड़चन है बहुत उसे पाने में, कठिनाई है बहुत। पहली तो कठिनाई यह है कि हम उसे पकड़ नहीं पाते। कुछ चीजें हैं जैसा मैंने कहा, कुछ चीजें हैं, जो प्रयास से नहीं आतीं-कुछ चीजें हैं, जो पकड़ से छूट जाती हैं। कुछ चीजें हैं, जो पकड़ से हाथ में आती हैं, कुछ हैं, जो पकड़ से छूट जाती हैं।
यह मेरी मुट्ठी खुली है। तो इस मेरी खुली मुट्ठी में हवा भरी है। और इस मुट्ठी को मैं बंद करता हूं, हवा बाहर हो जाती है। मुट्ठी खुली होती है तो भरी होती है और बंद होती है तो खाली हो जाती है। बड़ी उलटी बात है। कोशिश तो मैं करता हूं कि मुट्ठी को बांध लूं तो हवा मेरे हाथ में बंद हो जाए; लेकिन जितने जोर से मैं बांधता हूं, उतनी ही हवा मेरे हाथ के बाहर हो जाती है। हवा दुर्ग्राह्य है, पकड़ के बाहर है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हवा है नहीं। हवा यहां और अभी है। जिसको हवा को पकड़ने का पागलपन आ गया, उसके लिए कठिन हो जाएगा। और जिसने यह राज समझ लिया कि मुट्ठी खुली हो तो हवा हाथ में होती है, जिसको यह समझ में आ गया कि पकड़ छोड़ दो तो पकड़ में आ जाती है, फिर उसके लिए दुह्य नहीं है।
लाओत्से कहता है, ताओ है दुर्ग्राह्य, पकड़ के बाहर। इसका यह मतलब नहीं समझना कि पकड़ नहीं सकेंगे हम उसे। उसके पकड़ने का सूत्र है यह। अगर उसे पकड़ना चाहते हैं तो पकड़ना मत, पकड़ने की कोशिश मत करना। और वह तुम्हारी पकड़ में होगा। और तुमने पकड़ने की कोशिश की, तुम उसके पीछे भागे, वह तुम्हारे हाथ के बाहर हो जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि नॉन-क्लिगिंग, पकड़ना नहीं, यही उसका सूत्र है।
___हम सभी चीजों को पकड़ते हैं। संसार में बिना पकड़े कोई उपाय भी नहीं है। संसार में जो भी पाना हो, पकड़ना पड़ेगा। धन पाना हो, धन पकड़ना पड़ेगा। यश पाना हो, यश पकड़ना पड़ेगा। और जोर से पकड़ना पड़ेगा। अगर आप एक कुर्सी पर बैठे हैं तो इतने जोर से पकड़ना पड़ेगा जिसका हिसाब नहीं। क्योंकि कई लोग आपकी टांग नीचे से खींच रहे होंगे; क्योंकि उन्हें भी कुर्सी पर होना है।
इसलिए कुर्सी पर जो होता है, उसका ज्यादा से ज्यादा समय कुर्सी पकड़ने में व्यतीत होता है। वह पकड़े रहे। और यह इकहरा काम नहीं है, यह दोहरा काम है कि अगर अपनी कुर्सी पकड़े रखना है तो ऊपर वाली कुर्सी के पैर
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