SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षुद्र आचरण नीति हैं, परम आचरण धर्म 49 कठोर लगेगी यह बात, लेकिन हमारे साधु और हमारे अपराधी में क्षुद्रता समान होती है । साधु ईमानदारी से वही पाने की कोशिश कर रहा है, जो अपराधी ने बेईमानी से पाने की कोशिश की थी। लेकिन क्षुद्रता बराबर होगी । लेकिन साधु की क्षुद्रता को हम न पहचान पाएंगे। अपराधी की क्षुद्रता हमें दिखाई पड़ जाती है। लेकिन क्षुद्रता बड़ी गहरी बात है। आप क्या करते हैं, इससे संबंध नहीं है उसका। आप क्या हैं, इससे संबंध है उसका। आप क्या करते हैं, इससे कोई संबंध नहीं है क्षुद्रता का । क्षुद्रता का संबंध, आप क्या हैं, इससे है। आप अपराधी भी हो सकते हैं, साधु भी हो सकते हैं; यह आपके करने का जगत है। लेकिन इनके भीतर क्या छिपा है ? आपका बीइंग क्या है ? आपकी आत्मा क्या है ? सामान्य नीति का सूत्र साफ है कि जो गलत है, उसे छोड़ो प्रयास से ही; और जो सही है, उसे पकड़ो प्रयास से ही। लाओत्से क्या कहेगा ? लाओत्से कहता है, कर्म के जगत में कोई परिवर्तन कारगर नहीं है। सवाल यह नहीं है कि तुम क्या करते हो, सवाल यह है कि तुम क्या हो। इस बात की फिक्र छोड़ो कि बुरा तुमसे न हो और भला तुमसे हो; तुम इस बात की फिक्र करो, तुम इस चिंतना में पड़ो, तुम इस साधना में उतरो कि तुम क्या हो। इसे पहले, इसे पहले आ जाने दो। जीसस से कोई पूछता है कि मैं क्या करूं? कैसे मैं जीवन के परम आनंद को उपलब्ध करूं? कैसे आएगा सत्य? कैसे आएगा धर्म? क्या है उपाय ? और जीसस का वचन बहुत प्रसिद्ध है। जीसस ने कहा, तुम इन सब की फिक्र न करो, सीक यी फर्स्ट दि किंगडम ऑफ गॉड एंड आल एल्स शैल फालो। पहले तुम प्रभु का राज्य खोज लो और फिर सब अपने से चला आएगा, फिर सब पीछे-पीछे चला आएगा, छाया की भांति चला आएगा। जीसस के लिए प्रभु के राज्य का वही अर्थ है, जो लाओत्से के लिए ताओ का है। बुद्ध के पास मौलुकपुत्त गया, एक युवक और उसने पूछा कि मैं भी भला होना चाहता हूं, मैं भी अच्छा करना चाहता हूं, क्या करूं? तो बुद्ध ने कहा, करने की तुम चिंता मत करो, पहले तुम यही खोज लो कि मौलुंकपुत्त, तुम्हारे भीतर कौन छिपा है ? जिस दिन तुम उसे जान लोगे, तुम से बुरा होना बंद हो जाएगा। तुमसे बुरा होता है, यह सिर्फ लक्षण है, सिंपटम है, बीमारी नहीं है । इसको हम ठीक से समझ लें। आप से बेईमानी होती है, चोरी होती है, हिंसा होती है, कठोरता होती है। यह बीमारी नहीं है, यह सिर्फ लक्षण है। यह इस बात की खबर है कि अभी तक आपका अपने से संबंध नहीं हो पाया। एक आदमी को बुखार चढ़ गया। बुखार कोई बीमारी नहीं है। शरीर उत्तप्त हो गया । उत्तप्त हो जाना कोई बीमारी नहीं है; केवल लक्षण है। शरीर में कुछ हो रहा है, कोई गहन बीमारी, शरीर के भीतर कोई संघर्ष, कोई उत्पात खड़ा हो गया है। उस उत्पात के कारण सारा शरीर उत्तप्त हो गया है। यह जो उत्तप्त हो जाना है, यह केवल बीमारी की खबर है। इसलिए आप भूल कर ऐसा मत करना कि किसी का शरीर गर्म है तो ठंडा पानी डाल कर उसका शरीर ठंडा कर दें, तो ठीक हो जाए। बीमारी तो शायद ही मिटे, बीमार मिट भी सकता है। क्योंकि आप लक्षण को सिंपटम को बीमारी समझ रहे हैं। और यह अच्छी बात है कि शरीर पर बुखार आता है। यह स्वस्थ शरीर का लक्षण है। जब मैं कहता हूं कि यह स्वस्थ शरीर का लक्षण है तो मेरा मतलब समझ लें । भीतर कुछ उपद्रव हो रहा है, स्वस्थ शरीर तत्काल उसकी खबर देगा। बीमार शरीर देर से खबर देगा। क्योंकि खबर देने के लिए स्वस्थ होना जरूरी है। शरीर में जरा सी गड़बड़ होगी तो जितना स्वस्थ शरीर होगा, उतने तत्काल लक्षण प्रकट हो जाएंगे। जितना अस्वस्थ शरीर होगा, उतना संचार में बाधा पड़ेगी । जितना स्वस्थ शरीर होगा, उतना पारदर्शी होगा। कुछ भी, जरा सी गड़बड़ भीतर होगी, शरीर का रोआं-रोआं उसकी खबर देने लगेगा। यह खबर देना बहुत आवश्यक है। यह
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy