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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ लाओत्से के मन में, वे जो अनैतिक रूप से सफल हो रहे हैं, दया के पात्र होंगे, तुलना के पात्र नहीं। ईर्ष्या लाओत्से के मन में पैदा नहीं होगी। सिकंदर भारत आता है, डायोजनीज से मिलता है। वह नंगा पड़ा है। सिकंदर डायोजनीज को कहता है कि मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहता हूं। डायोजनीज खिलखिला कर हंसता है और वह कहता है, तुम अपने लिए ही कुछ कर लो तो काफी है। और तुम मेरे लिए क्या करोगे; क्योंकि मेरी कोई जरूरत न रही। मेरी कोई जरूरत न रही; तुम मेरे लिए क्या करोगे! उस दिन सिकंदर को लगा पहली दफा कि वह अपने से बड़े सम्राट से मिल रहा है। सिकंदर सम्राटों से मिलने सआदी था। यह नंगा फकीर था डायोजनीज, रेत पर नंगा पड़ा था। पहली दफा सिकंदर को लगा कि वह एकदम फीका हो गया किसी आदमी के सामने, जिससे उसने कहा था कि मैं तुम्हारे लिए क्या करूं, बोलो! और वह सब कुछ कर सकता था-हमारी भाषा में। डायोजनीज कहता कि एक महल, तो एक महल बन जाता। डायोजनीज जो भी कहता, वह हो जाता। सब कुछ सिकंदर कर सकता था। ऐसी कोई इच्छा डायोजनीज जाहिर नहीं कर सकता था, जो सिकंदर न कर पाता। लेकिन डायोजनीज का यह कहना उसे बड़ी मुश्किल में डाल गया कि तुम मेरे लिए क्या कर सकोगे, अपने लिए ही कर लो तो बहुत है। और फिर मेरी कोई जरूरत भी नहीं है; इसलिए कोई करने का सवाल नहीं है। सिकंदर थोड़ी देर चुपचाप खड़ा रहा। और सिकंदर ने कहा, अगर मुझे दुबारा जन्म लेने का अवसर मिले तो परमात्मा से कहूंगा, पहली च्वाइस, पहला चुनाव मेरा है कि मुझे डायोजनीज बना। डायोजनीज ने कहा कि और अगर मुझे मौका मिले तो मैं कहूंगा, मुझे कुछ भी बना देना, सिकंदर मत बनाना। ___ यह आदमी परम आचरण का आदमी है। सिकंदर से तुलना का तो सवाल ही नहीं उठता; दया का सवाल है। लाओत्से के इस भेद को ठीक से समझ लें तो यह सूत्र समझना आसान होगा। क्षुद्र आचरण का अर्थ है, किसी प्रयोजन से किया गया आचरण। परम आचरण का अर्थ है, निष्प्रयोजन । आचरण। यह निष्प्रयोजन आचरण ताओ से उत्पन्न होता है, स्वभाव के अनुभव से उपलब्ध होता है। ___ यह दूसरी बात खयाल में लेनी पड़ेगी। जो क्षुद्र आचरण है, वह सामाजिक मान्यताओं से उत्पन्न होता है। सिखावन से, शिक्षा से, संस्कार से उपलब्ध होता है। आप जो भी आचरण कर रहे हैं, वह आपको संस्कार से उपलब्ध हुआ है। जो अनाचरण भी आप कर रहे हैं, वह भी संस्कार से उपलब्ध हुआ है। सीखा है आपने। और हमारी अड़चन यही है कि हमें दोहरे तरह के मापदंड सीखने पड़ते हैं। डबल बाइंड हमारी पूरी शिक्षा है। बाप बेटे से कह रहा है-सच बोलना! और बेटा हजार बार जानता है कि बाप झूठ बोलता है। यही बाप, थोड़ी देर बाद घर के द्वार पर कोई दस्तक देता है, तो बेटे से कहता है-जाकर कह दो कि पिता घर पर नहीं हैं। इस बेटे की समझ के बाहर है कि यह क्या हो रहा है। लेकिन धीरे-धीरे उसकी समझ में आ जाएगा कि जिंदगी में दोहरे चेहरे जरूरी हैं। एक चेहरा, जो सिर्फ चर्चा के लिए है, विचार के लिए है, आदर्शों के लिए है, डींग हांकने के लिए है; आदर्शों का है, सुंदर है, कल्पना का है, सपने का है; उसे पूरा नहीं करना होता। और एक चेहरा है, जिसे पूरा करना होता है। वही वास्तविक है। यह जो आदर्श का चेहरा है, यह वास्तविक को छिपाने का मुखौटा है। क्योंकि वास्तविक कुरूप है, उसको सुंदर से ढांक लेना और अपने मन में माने चले जाना कि मैं सुंदर हूं। लेकिन सुंदर के साथ जीना मुश्किल है। जीने के लिए कुरूप चेहरा चाहिए। इसलिए हर आदमी बहुत तरह के चेहरों का इंतजाम करके रखता है। और चौबीस घंटे हम अपने चेहरे बदलते रहते हैं। जब जैसी जरूरत होती है, वैसा चेहरा लगा लेते हैं। यही कुशल और सफल आदमी का लक्षण है। 46
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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