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शुद्ध आचरण नीति है, परम आचरण धर्म
सत्य
वेट हैं, अपने मुझ
यह जरा कठिन मालूम पड़ेगा समझने में। सारी की सारी संभावनाएं बदल गई। आदमी अनैतिक नहीं हो गया; जो आदमी अनैतिक था, वह अनैतिक ही है। क्षुद्र नैतिक था वह कल तक। क्षुद्रता की नीति टिक नहीं सकती, वह बह गई। उसका सारा ढांचा गिर गया। जिस आधार पर खड़ी थी, वह बिखर गया। नीचे की जमीन खिसक गई। अब वही क्षुद्र नैतिक जो आदमी था, आज भरपूर अनैतिक है। उसके भीतर कोई फर्क नहीं पड़ा। कल नीति से लाभ मिलता था; आज अनीति से लाभ मिलता है। कल सच बोलने से स्वर्ग मिलता था; आज बिना झूठ बोले स्वर्ग के मिलने का कोई उपाय नहीं दिखाई पड़ता है। कल ईमानदार होने से प्रतिष्ठा मिलती थी; आज जो ईमानदार है, वह अप्रतिष्ठित है; जो बेईमान है, वह प्रतिष्ठित है। कल धोखा देना अपमानजनक था, ग्लानि पैदा होती थी; आज जो धोखा देने में जितना कुशल है, उतना ही सम्मानपूर्ण पद पर है। तो जो कल ईमानदारी से मिलता था, आज बेईमानी से मिलता हो, लाभ जिनकी दृष्टि में है, वे नीति से अनीति पर सरक जाएंगे।
लाओत्से इस नीति को क्षुद्र आचरण कहता है। हम दो शब्द जानते हैं : आचरण, अनाचरण; नीति, अनीति। लाओत्से एक नया शब्द प्रवेश करवाता है। वह कहता है, आचरण जिसे तुम कहते हो, अनाचरण तुम जिसे कहते हो, उनमें कोई गुणात्मक भेद नहीं है। वह एक दो नए शब्द निर्मित करता है। वह कहता है, परम आचरण और क्षुद्र आचरण। अनाचरण की तो लाओत्से बात ही नहीं करता; क्योंकि क्षुद्र आचरण अनाचरण का ही एक रूप है। आचरण के दो विभाग करता है: परम आचरण और क्षुद्र आचरण। क्षुद्र आचरण को आचरण कहना नाम मात्र के लिए है। जहां नैतिकता स्वयं ही लक्ष्य है, जहां सत्य अपने में ही आनंद है, और ईमानदारी स्वयं ही मूल्यवान है। उससे कुछ मिलेगा, नहीं मिलेगा, खो जाएगा, ये बातें इररेलेवेंट हैं, असंगत हैं।
मैं सैकड़ों लोगों को जानता हूं। न मालूम कितनी बार कितने लोगों ने मुझे आकर कहा है कि हम नीति से जीवन चला रहे हैं, लेकिन फल क्या है? और जो अनीति से चला रहे हैं, वे सब कुछ पा रहे हैं, सब कुछ उनका है।
यह व्यक्ति क्षुद्र आचरण वाला व्यक्ति होगा। नहीं तो यह सवाल ही नहीं उठना चाहिए कि हम नैतिक जीवन चला रहे हैं तो हमें मिल क्या रहा है। इस आदमी के मन में भी पाना तो वही है जो अनैतिक आचरण से मिल रहा है, लेकिन यह नैतिक आचरण से पाने की कोशिश में पड़ा है। यह सिर्फ समय के बाहर है। इसको पता नहीं है कि वक्त बदल गया। जो पहले नीति से मिलता था, अब अनीति से मिल रहा है। इसको जरा वक्त लगेगा, इसकी बुद्धि थोड़ी कमजोर है। यह नैतिक नहीं है, सिर्फ पिछड़ा हुआ है, बैकवर्ड है। सारी दुनिया समझ गई कि अब स्वर्ग ईमानदारी से नहीं मिलता; इसको अभी इसकी खबर नहीं मिली है। यह सोचता है...। - इसके सोचने का ढंग, इसकी भाषा, इसके मापदंड वही हैं, जो अनैतिक आदमी के हैं। अनैतिक आदमी ने बड़ा मकान बना लिया, यह भी बड़ा मकान बनाना चाहता है नीति के द्वारा। इसलिए पीड़ित हो रहा है कि मैं झोपड़े में पड़ा हूं और बेईमान बड़े मकान बना रहा है। और मैं गांव में पड़ा हूं और बेईमान राजधानी में निवास कर रहा है। इसको जो पीड़ा हो रही है, वह पीड़ा इसके क्षुद्र आचरण का सबूत है। वह यह कह रही है कि चाहते तो हम भी यही थे; लेकिन इतना हममें साहस नहीं कि हम बेईमानी कर सकें, इतना हममें साहस नहीं कि हम झूठ बोल सकें, तो हम पुरानी नीति से चिपके हुए हैं। लेकिन अनैतिक को जो मिल रहा है, वह हमें भी मिलना चाहिए। तो ऐसा नैतिक आदमी निरंतर भगवान को दोष देता रहता है। वह कहता है, कैसी है तेरी दुनिया, कोई न्याय दिखाई नहीं पड़ता! इससे भगवान का कोई संबंध नहीं है; न्याय का कोई संबंध नहीं है। क्षुद्र आचरण है।
परम आचरण का अर्थ है कि लाओत्से भूखा भी मर रहा हो और बेईमान सारी दुनिया को भी जीत ले तो भी लाओत्से के मन में यह सवाल न उठेगा, यह तुलना न उठेगी कि तेरे पास सारी दुनिया और मेरे पास कुछ भी नहीं। नहीं, लाओत्से तो फिर भी कहेगा कि तू दया का पात्र है। मेरे पास सब कुछ है और तेरे पास कुछ भी नहीं।
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