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________________ संत की वक्रोक्तियां: संत की विलक्षणताएं 33 बड़ा सागर परपजलेस है— निष्प्रयोजन। पूछो इस सागर से, कहां पहुंचना है तुझे ? कहीं पहुंचना नहीं है। तब क्षुद्र नाला भी कह सकता है, क्या व्यर्थ पड़े हो निष्क्रिय ? हमारी तरफ देखो ! भागते हैं, दौड़ते हैं, व्यवस्था से चलते हैं। पहुंचना है कहीं, कोई मंजिल है, कोई भविष्य है । सागर का है केवल वर्तमान; नाले का भविष्य भी है। लाओत्से कहता है, जो गंवार हैं, वे चालाक और आश्वस्त हैं। बड़े गणित में कुशल हैं, बड़ा हिसाब रखते हैं। एक-एक इंच, एक-एक पाई की व्यवस्था है और आश्वस्त हैं कि पहुंच कर रहेंगे, बिना इसकी फिक्र किए कि पहुंचने को कहीं कोई जगह है, कोई मंजिल है ! उसकी बिना फिक्र किए आश्वस्त हैं कि पहुंच कर रहेंगे। उनका आश्वासन ही उनके लिए पर्याप्त भरोसा है कि मंजिल होगी। हमारे मन में लक्ष्य है तो लक्ष्य जरूर होगा। क्योंकि हम ही तो निर्धारक हैं जगत के नियंता हम ही हैं । और लाओत्से कहता है, 'अकेला मैं उदास ।' क्योंकि लक्ष्य न हो... हममें जो तेजी आती है, वह लक्ष्य से आती है। ध्यान रखना, ये सारे शब्द व्यंग्य के हैं। लाओत्से कहता है ऐसा समझें कि हम सबको बुखार चढ़ा हो और एक आदमी गैर-बुखार का हो तो बिलकुल ठंडा मालूम पड़े – कोल्ड | हम कहें कि क्या तुम्हारी जिंदगी है! जरा गर्मी भी नहीं है । थोड़ा गरमाओ, थोड़ी तेजी लाओ, कुछ जीवन का लक्षण दो! थर्मामीटर लगाते हैं, कोई खबर ही नहीं देता कि तुम में कोई गर्मी है। तो लाओत्से कहता है, और सब भरे हैं बड़ी तेजी से, त्वरा से, ज्वर से; कहीं पहुंचना है, कुछ पाना है, कुछ होना है। एक मैं ही उदास, अवनमित, डिप्रेस्ड – इन सब के मुकाबले, फीवरिश, जो ज्वर से भरे दौड़ रहे हैं। कभी सन्निपात में किसी को देखा? जैसी तेजी सन्निपात में आती है, वैसी कभी नहीं आती। चार आदमी पकड़ें तो भी आदमी को पकड़ना मुश्किल है। खाट पर सोया हुआ आदमी भी कहता है कि मेरी खाट आकाश में उड़ रही है। सन्निपात में जो गति आ जाती है, वह गति जो ज्वर की तेजी आ जाती है, वैसी तेजी में हम सब हैं । एक राजनीतिज्ञ को देखें, एक आध्यात्मिक ज्वर चढ़ा हुआ है। उस ज्वर में वह ऐसे काम कर लेता है, जैसा कि सामान्य स्वस्थ आदमी कभी नहीं कर सकता। एक राजनीतिज्ञ को देखें, जब वह किसी देश की रक्षा के लिए लगा हुआ है, किसी देश के निर्माण के लिए या किसी देश के ध्वंस के लिए लगा हुआ है, तब उसकी ज्वर की अवस्था देखें। अगर हमारे पास कभी आध्यात्मिक ज्वर नापने का कोई उपाय हो तो राजनीति एक आध्यात्मिक ज्वर सिद्ध होगी। लेकिन देखें राजनीतिज्ञ को, उसके पैरों की गति को, सुबह से शाम तक उसकी व्यस्तता को ! सारे जगत का भार उसके ऊपर है। वह नहीं है तो सारा जगत नहीं है। वह है तो सब कुछ है। यह जो ज्वर है, लाओत्से कहता है, इन ज्वरग्रस्त लोगों को देख कर यही कहने को रह जाता है कि एक मैं ही उदास, ठंडा, निष्क्रिय हूं। सभी कहीं पहुंच रहे हैं, एक मैं ही सागर की तरह लक्ष्यहीन अपनी जगह ही पड़ा हूं। 'सप्रयोजन हैं दुनिया के सब लोग; अकेला मैं दिखता हूं हठीला और अभद्र ।' जब सारे ही लोग दौड़ रहे हों, तो आपका आहिस्ता चलना हठीला दिखाई पड़ेगा। और जब सारे लोग ही पागल हो रहे हों, तब आपका शांत और सौम्य बना रहना अभद्र मालूम पड़ेगा। जब हिंदू-मुस्लिम दंगे में उतर रहे हों तब आप दूर खड़े देखते रहें, तो लगेगा कि आप आदमी हैं! जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान लड़ते हों, हिंदुस्तान और चीन लड़ते हों, या बंगला देश और पाकिस्तान लड़ता हो, या वियतनाम में युद्ध चलता हो, तब आप दूर खड़े चुपचाप देखते रहें, कोई पक्ष में न हों, बंटे हुए न हों, ज्वर के भीतर न हों, तो लोग कहेंगे: क्या हुआ आपको ? जीवित हैं या मर गए? कभी आपने खयाल किया, जब युद्ध चलता है तब लोग ज्यादा जीवित हो जाते हैं। जो आदमी सुबह आठ बजे भी बिस्तर से उठने में मुश्किल पाता था, वह पांच बजे उठ कर रेडियो खोल कर सुनने लगता है— क्या खबर
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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