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विजयोत्सव ऐसे मना जैसे कि वह अंत्येष्टि हो
के पहले था, उस काम-काज की दुनिया में संलग्न हो जाता है। इस उत्सव को मना लेने में, पश्चात्ताप के क्षण से बचाव है, पलायन है।
लेकिन लाओत्से कहता है, इसे तो ऐसे मनाना, विजय का उत्सव अंत्येष्टि क्रिया की भांति मनाना; जैसे कि कोई मर गया हो, ऐसा दुख और शोक में डूब जाना। . लेकिन बड़ी कठिनाई है। अगर हम विजय के क्षणों में शोक में डूबने लगें, तो फिर हम लोगों को हिंसा करने के लिए राजी न कर पाएंगे। जैसा मैंने परसों कहा कि अगर हम अपने सेनापतियों को युद्ध के बाद पश्चात्ताप के लिए तीर्थयात्रा पर भेज दें, या उनको कहें कि अब तुम महीने भर का उपवास करो, प्रभु-कीर्तन करो, या उनको कहें कि. तुमने बहुत पाप किया, इतने लोग मार डाले, अब तुम सब त्याग करके संन्यासी हो जाओ, तो फिर हम किसी आदमी को राजी न कर पाएंगे इतना पाप करने के लिए! वह कहेगा, फिर पहले ही, इतना जब हमें आखिर में पश्चात्ताप करना हो, तो फिर युद्ध पर जाने की जरूरत क्या है? तो फिर हम नहीं जाते।
सैनिक को अगर हमें युद्ध पर भेजना है तो हमें विजय की यात्रा मनानी ही पड़ेगी। क्योंकि सैनिक उसी विजय की आकांक्षा में, उसी शोभा की आकांक्षा में तो मरने और मारने जा रहा है। तो कल जब वह जीत कर आएगा, हत्या करके आएगा, तो उस हत्यारे का हमें स्वागत करना पड़ेगा। इस स्वागत के नशे में ही तो वह भूल पाएगा कि उसने पाप किया है। तो हमें उसे पद्म-विभूषण और भारत-रत्न और महावीर-चक्र देने पड़ेंगे, ताकि इस शोरगुल में उसे लगे कि वह कोई महान कार्य करके लौटा है, और हम उसे दुबारा फिर इस मूढ़ता पर भेज सकें। नहीं तो फिर दुबारा वह जाएगा नहीं। सैनिक को हमें सम्मान देना पड़ेगा; क्योंकि हमने उससे एक पाप करवाया है। और उस पाप के बदले में हमें उसे गौरव देना पड़ेगा, ताकि उसको पाप का खयाल न रहे। इसलिए विजय की यात्रा और विजय का उत्सव और विजय का पीछे का शोरगुल, सब हमारी आत्मा को अंधा करने और बहरा करने का उपाय है।
अगर लाओत्से की बात मान ली जाए, तो दुनिया में युद्ध बंद हो जाएंगे। अगर विजय जिसने की है, वह अगर शोक में डूब जाए, तो दुनिया में फिर विजय की आकांक्षा भी न रह जाएगी। अभी तो हारा हुआ शोक में डूबता है; जो जीतता है, वह खुशी मानता है। अगर लाओत्से की बात मान ली जाए और जीतने वाला भी दुख में डूब जाए, तो इसके दोहरे परिणाम होंगे। इसका एक परिणाम तो यह होगा कि जो हार गया है, वह दुख में नहीं डूबेगा। अगर जीतने वाला दुख में डूब जाए, तो हार जो गया है, वह दुख में नहीं डूबेगा। और अगर जीतने वाला दुख में डूबने लगे, तो जीत की आकांक्षा क्षीण हो जाएगी, और हम लोगों को राजी न कर सकेंगे हिंसा के लिए। और किसी दिन ऐसा वक्त आ सकता है कि विजय एक पाप हो जाए, और विजय एक अपराध हो जाए। हम ऐसा मनुष्य भी निर्मित कर सकते हैं जिसके हृदय में विजय की आकांक्षा ही अपराध हो। शायद उसी दिन हम दुनिया को युद्ध से मुक्त कर पाएं। उसके पहले दुनिया युद्ध से मुक्त नहीं होगी।
हम कितना ही कहें कि युद्ध नहीं होने चाहिए, लेकिन युद्ध के जो मूल कारण हैं उनमें तो हम सम्मिलित ही होते हैं; उनमें हम कभी भी दूर खड़े नहीं होते। हम कितना ही कहें कि युद्ध बुरा है, लेकिन जीतने वाला अच्छा है यह तो हम भी मानते हैं। वह जीतने वाला चाहे स्कूल से कक्षा में प्रथम होने की प्राइज लेकर घर आया हो, वह भी उनतीस लड़कों को हरा कर चला आ रहा है। एक बच्चा जब घर में प्रथम होकर आता है अपनी क्लास में, तो हम उसका स्वागत करते हैं; हम युद्ध को निमंत्रण दे रहे हैं। वह उनतीस को हरा कर आ रहा है, उनको नीचे गिरा कर आ रहा है, तो हम कहते हैं कि तू प्रथम आया। बाप बड़ा आनंदित होता है; वह नहीं आ पाया था, कम से कम उसका लड़का आया। लड़के के द्वारा उनकी महत्वाकांक्षा पूरी हो रही है। वह अकड़ कर चलेंगे आज, क्योंकि उनका लड़का प्रथम आ गया।
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