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ताओ उपनिषद भाग ३
लेकिन उनतीस को हरा आया। वे उनतीस घर दुख में लौटे हैं। उनके बाप दुखी हो रहे होंगे, वे नाराज हो रहे होंगे; वे उनको अपमानित कर रहे होंगे; वे कह रहे होंगे कि लानत है तुम पर, तुम्हारे होने से न होना अच्छा था; बरबाद कर दिया, कुल का नाश हो गया। वे जो उनतीस हार कर घर चले गए हैं, वहां शोक होगा। यह जो एक जीत कर घर आया है, यहां सम्मान होगा। आपने युद्ध के बीज बो दिए। जिंदगी अब इसी पटरी पर सदा चलेगी। जो जीतेगा, वह सम्मानित; जो हारेगा, वह अपमानित। फिर छोटे युद्ध हैं और बड़े युद्ध हैं। और सारी जिंदगी रक्तपात से भर जाती है।
ध्यान रहे लेकिन, हिंसा में कोई भी सौंदर्य नहीं है और विजय में कोई गौरव नहीं है। विजय की आकांक्षा क्षुद्र मन का फैलाव है। और हिंसा में, विजय में, हत्या में गौरव देखना आदमी के रुग्ण मन की खबर है, बीमार चित्त की खबर है।
स्वस्थ आदमी जीतने में रोग देखेगा, हिंसा में पाप देखेगा, दूसरे को नीचा करने में, हीन करने में अधर्म देखेगा। और एक ही सौंदर्य को जानता है जो व्यक्ति सच में विचारशील है, वह एक ही सौंदर्य को जानता है और वह सौंदर्य है परम अहिंसा का, प्रेम का। .
और उस प्रेम से भी एक विजय फलित होती है। वही वास्तविक विजय है। और उस प्रेम से जीवन में एक संगीत का जन्म होता है, जो संगीत बिना किसी को हराए जीतता चला जाता है।
आज इतना ही। कीर्तन करें, और फिर जाएं।
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