________________
ताओ उपनिषद भाग३
हमें अंधा कर जाते हैं। फिर हमारा, अंधों का, बड़ा समाज है। संख्या बड़ी बात नहीं है। तीन, साढ़े तीन सौ की संख्या है उनकी; हमारी संख्या कोई साढ़े तीन सौ करोड़ की है। सारी पृथ्वी हम अंधों से भरी हुई है। उसमें जब भी लाओत्से जैसा आँख वाला आदमी पैदा होगा तो हम पसंद नहीं करते। दुखद है उसका होना, उसकी मौजूदगी हमें पीड़ा देती है। क्योंकि उसके कारण हमें पता चलना शुरू होता है कि हम अंधे हैं। और यह पता चलना अच्छा नहीं मालूम होता; वह हमारे अंधेपन के लिए--धाव के लिए....चोट बन जाता है।
लाओत्से के ये सूत्र बहुत व्यंग्य से भरे हैं और बहुत महत्वपूर्ण हैं। यह एक ऐसे आदमी का वक्तव्य है, जो हमारे बीच अजनबी है। जो पाता है कि हम जो भाषा बोलते हैं, वह नहीं बोल सकता। और जो पाता है कि हम जिस ढंग से जीते हैं, उस ढंग से वह नहीं जी सकता। और वह यह भी देखता है कि हमारे जीने का ढंग, जीने का कम, मरने का ज्यादा है। और हम जो भाषा बोलते हैं, उसमें बोलते कम हैं, छिपाते ज्यादा हैं। हम रुग्ण और बीमार हैं, स्वस्थ नहीं हैं। लेकिन फिर भी हमारी बड़ी संख्या है और हमारा बड़ा बल है। उस बल के कारण ही यह सूत्र लिखा गया है।
लाओत्से कहता है, 'दुनियाषी लोग काफी संपन्न हैं।'
हम विपन्न लोगों को कहता है संपन्न। जिनके पास कुछ भी नहीं है, उनको लाओत्से कहता है, ये दुनिया के लोग बड़े संपन्न हैं। _ 'दि पीपुल ऑफ दि वर्ल्ड हैव इनफ एंड द स्पेयर।'
न केवल उनके पास काफी है, बल्कि वे दूसरों को भी देने के लिए तत्पर हैं। अपने लिए तो काफी है ही, दूसरों को भी बांटने के लायक हमारे पास है। और हम हैं बिलकुल दीन-दरिद्र, दूसरों को देने की तो बात ही अलग, हमारे पास कुछ है ही नहीं।
लेकिन यह खयाल में आना बड़ा मुश्किल है। हम थोड़ा समझे, एक-दो दिशाओं से पहचानें।
हम सब प्रेम देते हैं, बिना इसकी फिक्र किए कि हमारे पास प्रेम है? मी प्रेम देती है; बाप प्रेम देता है। पति, पत्नी, भाई, मित्र प्रेम दे रहे हैं। सारी दुनिया में सभी लोग प्रेम दे रहे हैं। और दुनिया में प्रेम की कहीं एक बूद दिखाई । नहीं पड़ती। सारे लोग प्रेम बरसा रहे हैं। लेकिन किस मरुस्थल में खो जाता है प्रेम सागर बह जाने चाहिए प्रेम के, इतना प्रेम बह रहा है। एक-एक आदमी हजार-हजार दरवाजों से प्रेम बरसा रहा है। किसी के लिए यह मा है, किसी के लिए पत्नी है, किसी के लिए पिता है, भाई है, मित्र है। कितना-कितना हम प्रेम बहा रहे हैं चारों तरफ! हमारा जगत तो प्रेम का सागर हो जाना चाहिए। लेकिन जगत दिखता है धूणा का सागर। प्रेम उसमें कहीं दिखाई नहीं पड़ता। इतना प्रेम दिया और लिया जा रहा हो, षही प्रेम की कहीं एक बूंद नहीं दिखाई पड़ती। जरूर कुछ भूल हो रही है। जो हमारे पास नहीं है, वह हम दे रहे हैं। इसलिए हम देने का मजा भी ले लेते हैं और किसी के पास पहुंचता भी नहीं।
मुल्ला नसरुद्दीन अपने गांव के एक अमीर आदमी के पास गया। सुबह-सुबह ही उसने द्वार खटखटाया। अमीर मुल्ला को देख कर ही समझ गया कि वह कुछ दान मांगने आया होगा--मस्जिद के लिए, मदरसे के लिए। मुल्ला ने कहा, भयभीत न हो, न तो मदरसे के लिए आया है, न मस्जिद के लिए। काम ही दूसरा आ गया। अमीर आश्वस्त हुआ। उसने कहा, क्या काम आया है? मुल्ला ने कहा कि थोड़े पैसे की जरूरत है, एक हाथी खरीद रहा हूँ। अमीर ने कहा, पागल हो गए हो। हाथी खरीदने के लिए पैसा नहीं है तो हाथी को रखने के लिए कहा से ईतजाम जुटाओगे? मुल्ला ने कहा, माफ करिए, मैं आपसे पैसा मांगने आया है, सलाह मांगने नहीं। आई हैव कम ८ आस्क फॉर मनी, नाट एडवाइस। और मुल्ला ने कहा, ठीक से आप समझ लें, आपसे वही मांगा जा सकता है, जो आपके पास है। जो आपके पास है ही नहीं, वह आपसे मांगा नहीं जा सकता। जो नहीं है, कृपा करके किसी को देने की कोशिश न करें।