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रस्तू ने कहा है : संसार में केवल दो वस्तुएं अनंत हैं—एक आकाश और दूसरी मनुष्य की मूर्खता। ओनली टू थिंग्स आर इनफाइनाइट इन दि वर्ल्ड-वन, स्पेस; एंड सेकेंड, ह्यूमन स्टुपिडिटी।
आइंस्टीन ने अरस्तू को आधा गलत सिद्ध कर दिया है। आइंस्टीन ने सिद्ध किया है कि आकाश असीमित नहीं है। अनंत भी नहीं है; सांत है, फाइनाइट है और सीमित है। अगर आइंस्टीन सही है-और सही मालूम होता है तो फिर एक ही वस्तु अनंत रह जाती है जगत में: ह्यूमन स्टुपिडिटी, यानी मनुष्य की मूर्खता। और आकाश अनंत नहीं है, यह सिद्ध करना एक आइंस्टीन के लिए भी आसान हुआ। हजार आइंस्टीन भी दूसरी बात सिद्ध न कर सकेंगे कि
मनुष्य की मूर्खता अनंत नहीं है। मनुष्य का जो मूढ़ भाव है, वह अनंत भी है, असीम भी है और इतना व्यापक है और इतना सार्वजनीन, यूनिवर्सल है कि उसे पहचानना भी कठिन है।
मेक्सिको में एक छोटी सी पहाड़ी पर एक बहुत अदभुत कबीले का वास है। छोटी सी जाति है। ज्यादा उसकी संख्या नहीं है, कोई तीन सौ, साढ़े तीन सौ के बीच है। ज्यादा संख्या उसकी हो भी नहीं सकती। पहाड़ निर्जन है। यह तीन सौ, साढ़े तीन सौ लोगों की जाति आदिवासियों की, पांच-सात छोटे-छोटे गांवों में आस-पास बसी है। विशिष्टता है इस जाति की कि साढ़े तीन सौ लोग सभी अंधे हैं। बच्चे पैदा तो होते हैं आंख वाले; लेकिन एक मक्खी है उस पहाड़ पर, जैसे मच्छर से मलेरिया होता है, ऐसे ही उस मक्खी के काटने से आंखें चली जाती हैं। अब तक उसका कोई इलाज भी नहीं खोजा जा सका है। तो बच्चे आंख वाले पैदा होते हैं, लेकिन महीने, दो महीने के भीतर अंधे हो जाते हैं। तीन सौ, साढ़े तीन सौ लोग अंधे हैं।
इन अंधे लोगों का जब पहली दफे पता चला सभ्य आदमियों को और आंख वाले आदमी पहले इन अंधों के पास पहुंचे, तो अंधों ने मानने से इनकार कर दिया कि कोई भी हो सकता है जिसके पास आंख हो। न केवल मानने से इनकार किया, बल्कि आंख वाले आदमियों के प्रति अच्छा भाव भी नहीं लिया। सच तो यह है कि उन्होंने समझा कि तुम किसी और ही जाति के प्राणी हो, मनुष्य नहीं। क्योंकि मनुष्य तो अंधे ही होते हैं।
ईसाइयों के एक संप्रदाय ने अपने एक मिशनरी को अंधों के बीच ईसाइयत का प्रचार करने के लिए भेजा। लेकिन अंधे आंख वाले से सुनने और समझने को राजी न हुए। आखिर में किसी ने सुझाया और बात काम कर गई। फिर उन्होंने एक अंधे मिशनरी को भेजा। अंधे मिशनरी को सुनने को जरूर अंधे राजी हुए। अंधे और अंधों के बीच एक तादात्म्य, एक समरसता पैदा हुई। लेकिन आंख वाला आदमी पसंद नहीं किया जा सका-स्वभावतः।
लाओत्से जैसे लोग हम अंधों के बीच आंख वाले लोग हैं-आध्यात्मिक अर्थों में। शायद हम भी जब पैदा होते हैं, तो आंख वाले ही पैदा होते हैं। लेकिन सभ्यता, शिक्षा, संस्कृति के जीवाणु, इसके पहले कि हमें होश आए,
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