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________________ वेदपूर्ण आवश्यकता से अधिक हिंसा का विषेध सुरक्षा ही करते हैं। तो फिर आक्रमण कौन करता है? कोई आक्रमण करता ही नहीं, सभी सुरक्षा करते हैं। युद्ध कैसे होता है? हालत उलटी मालूम पड़ती है। मालूम पड़ता है कि दोनों आक्रमण करते हैं। और कहीं दुनिया में किसी राज्य के पास सुरक्षा का मंत्रालय नहीं है, सभी के पास आक्रमण के मंत्रालय हैं। लेकिन बेईमानी है। और बेईमानी अपने को छिपाती है। . लाओत्से के हिसाब से, अगर राज्य हिंसा को मजबूरी समझता हो, गौरव न लेता हो; निंदा मानता हो, ग्लानि अनुभव करता हो, पश्चात्ताप करता हो; करना पड़े, मजबूरी हो जाए, कोई रास्ता न निकले, तो जाता हो, लेकिन वहीं रुक जाता हो जहां प्रयोजन पूरा हो जाए; और प्रयोजन भी पूरा हो जाए तो भी अनुभव करता हो कि एक बुरा काम करना पड़ा, ऐसी प्रतीति होती हो, तो वह राज्य धार्मिक है। अन्यथा सभी राज्य अधार्मिक हैं। 'और जो ताओ के विपरीत है, वह शीघ्र नष्ट हो जाता है।' विनाश का अर्थ ही, असल में, धर्म के विपरीत होना है। जो धर्म के विपरीत है, वह विनष्ट हो जाता है। लेकिन कैसे? आपको खयाल में भी नहीं आएगा। हालतें तो उलटी दिखती हैं। जो धर्म के विपरीत हैं, वे काफी विकसित होते मालूम पड़ते हैं। जो धर्म के विपरीत है, वह काफी फलता-फूलता मालूम पड़ता है। और धार्मिक को देखें तो दीन-हीन, पिटा-कुटा मालूम पड़ता है। लाओत्से और सारे शास्त्र कहते हैं दुनिया के कि जो धर्म के विपरीत है वह नष्ट हो जाता है, और जो धर्म के अनुकूल है वह बढ़ता चला जाता है। पर दिखाई तो उलटा पड़ता है। लोग रोज मुझे कभी न कभी आकर कह जाते हैं कि फलां आदमी बेईमान, झूठ, सब तरह से भ्रष्ट, और सफल हो रहा है। और वे यह भी कह जाते हैं कि मैं ईमानदारी से चल रहा है, सचाई से चल रहा हूं, और असफल हो रहा हूं। कहां है न्याय? समझाने वाले भी हैं उनको। वे कहते हैं कि परमात्मा के राज्य में देर है, अंधेर नहीं है; जरा रुको। कब तक रुकें वे? और पक्का अंधेर दिखाई पड़ता है। और देर है अगर तो इतनी लंबी है कि इस जन्म में तो कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ता। अगले जन्म का कोई पक्का नहीं है। और जब अभी जो चल रहा है, वह पहले भी चल रहा था, और भी पहले चल रहा था। क्योंकि यह शिकायत पुरानी है। हजारों-हजारों साल से यह शिकायत है आदमी की कि जो बुरा आदमी है वह सफल हो रहा है, नष्ट हो रहा है भला आदमी। और ये सब लाओत्से और कृष्ण और महावीर और बुद्ध कहते हैं कि वह जो धार्मिक है वह नष्ट नहीं होता, वह जो अधार्मिक है वह नष्ट होता है। तब जरा सोचना पड़े। या तो ये गलत कहते हैं, या हमारे विश्लेषण में कहीं भूल है। . हम जिसको धार्मिक कहते हैं, वह भी धार्मिक नहीं है-एक बात। और वह जो कहता है कि मैं सच बोल रहा हूं, ईमानदार हूं, वह भी ईमानदार नहीं है और सच नहीं बोल रहा है। हो सकता है, बोल रहा हो। जहां तक तथ्य की बात है, हो सकता है आप सच बोल रहे हों। लेकिन सच बोलने के कारण और अभिप्राय पर सब निर्भर करता है। इसलिए आप सच बोल रहे हों कि आप इतने भयभीत आदमी हैं कि झूठ बोले तो फंसने का डर है। अगर डर न हो तो आप झूठ बोलें। अगर आपको पक्का आश्वासन दिला दिया जाए कि कोई अदालत आपको पकड़ेगी नहीं, कोई कानून आपको सजा नहीं देगा, परमात्मा की अदालत में भी आपका बड़ा स्वागत-सत्कार होगा, आप झूठ बोल सकते हैं। फिर आप सच बोलेंगे? फिर भी जो आदमी सच बोलेगा, वही सच बोल रहा है। और अगर यह भी कहा जाए कि सच बोलने वाला नरक में सड़ेगा और आग में जलाया जाएगा, और जहां भी सच बोलोगे, कष्ट पाओगे, फिर भी जो आदमी सच बोल रहा है, वही सच बोल रहा है। जो प्रयोजन से बोल रहा है, ये जो आदमी आते हैं जो कहते हैं कि मैं सच बोल रहा हूं और अभी तक सफलता नहीं मिली, इनको रस सफलता में है, सत्य में बिलकुल नहीं है। इसीलिए ये परेशान 347
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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