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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ 338 सेनापति भी कहते हैं कि सात दिन से ज्यादा युद्ध आगे जा नहीं सकता था; बात खतम हो गई थी। हां, इससे उलटी हालत हो सकती थी कि जापान जीत रहा होता और न्यूयार्क में अमरीकी फौजें घुटने टेक रही होतीं और उन्हें एटम बम फेंकना पड़ता। वह मजबूरी होती, शस्त्र का भरोसा न होता। लेकिन अमरीका जरा भी खतरे में न था । अमरीकी फौजें जापान की छाती में प्रवेश कर गई थीं। जापान टूट चुका था, उजड़ चुका था। लेकिन इतनी बड़ी ताकत उजड़ने में भी एक सप्ताह का वक्त लेती है। इतनी जल्दी कोई भी आवश्यक नहीं थी। एटम बिलकुल अनावश्यक था। और इसीलिए जो बुद्धिमान आदमी हैं, वे इस पाप को गहन पाप मानते हैं। क्योंकि यह उस शत्रु की छाती में छुरा भोंकने जैसा था, जो जमीन पर गिर चुका था और जो हाथ जोड़े पड़ा था और माफी मांग रहा था। उसकी छ में छुरा 'भोंकने जैसा था। यह क्षम्य नहीं है। लेकिन यह हुआ क्यों ? यह हो जाने का कारण है। कारण अमरीका की कोई सभ्यता, कोई संस्कृति पुरानी नहीं है, केवल तीन सौ वर्ष ! नए से नया, कोई समाज अगर बचकाना हो सकता है, तो वह अमरीका है। तीन सौ वर्ष कोई उम्र होती है जातियों के लिए? जिनका इतिहास तीन सौ वर्ष का हो, उनकी समझ बहुत गहरी नहीं हो सकती। जानकारी बहुत हो सकती है, समझ बहुत नहीं हो सकती । विज़डम की कमी होगी। तो आज अमरीका के पास जानकारी तो बहुत है, इसीलिए तो एटम भी बन सका। लेकिन समझ नहीं है। समझ न होने के कारण उसका उपयोग हो गया । लाओत्से कहता है, सेनापति, जो ताओ का भरोसा करता है, जो धार्मिक है, जो राज्य धार्मिक है, वह शस्त्र बल का भरोसा कदापि नहीं करता । अपना कर्तव्य भर निभाता है, उस पर गर्व नहीं करता। अपना कर्तव्य भर निभाता है, उसकी शेखी नहीं बघारता । अपना कर्तव्य भर निभाता है, उसके लिए घमंड नहीं करता। वह एक खेदपूर्ण आवश्यकता के रूप में युद्ध करता है। इफेक्ट्स हिज परपज एज ए रिग्रेटेबल नेसेसिटी । एक खेदपूर्ण आवश्यकता की भांति - एक मजबूरी, एक बुराई, जो करनी पड़ेगी, जिससे बचना मुश्किल है। लेकिन हिंसा से प्रेम नहीं करता । 'चीजें अपना शिखर छूकर फिर गिरावट को उपलब्ध हो जाती हैं।' हिंसा से प्रेम एक बात है, और हिंसा मजबूरी में, बिलकुल दूसरी बात है । और इस भेद को जो नहीं जानते, वे बड़ी मुश्किलों में समाजों को उलझा देते हैं। इस पर हम थोड़ा ध्यान दे लें। एक तरफ वे लोग हैं, जो हिंसा के लिए दीवाने हैं, मौके की तलाश में हैं। मौका मिल जाए, वे हिंसा करेंगे। फिर वे यह न देखेंगे कि कहां तक जाना जरूरी था। फिर वे वहां तक जाएंगे, जहां तक जा सकते थे । जरूरत का कोई सवाल नहीं है। हिंसा उन्हें खेल हो जाएगी, हिंसा उनके लिए शिकार हो जाएगी। दूसरे वे लोग हैं, जो दूसरी अति पर चले जाएंगे, जो अहिंसा के लिए पागल हो जाएंगे, और जो हिंसा खेदपूर्ण आवश्यकता है, उसको भी करने में शिथिल हो जाएंगे। ऐसा हमने इस मुल्क में किया। हमने दूसरी अति छुई। हमने जो खेदपूर्ण हिंसा थी, उसको भी नहीं करेंगे, ऐसा दूसरी अति पर चले गए। लेकिन जब आप खेदपूर्ण हिंसा नहीं करेंगे, तो दूसरा भी नहीं करेगा, इसको मानने का कोई भी कारण नहीं है। सच तो यह है कि आपका न करना दूसरे के लिए निमंत्रण बन जाएगा करने का । इसलिए जैनों और बौद्धों के प्रभाव के बाद भारत का पतन शुरू हो गया। क्योंकि अहिंसा की अति — कि किसी भी स्थिति में हिंसा नहीं करेंगे – स्वभावतः चारों तरफ से निमंत्रण बन गई हमलावरों के लिए। कि जो लोग भी हमला करना चाहें, उनके लिए भारत से ज्यादा सुविधापूर्ण कोई जगह न रही। इसलिए बहुत क्षुद्र शक्तियों ने भारत को पराजित किया। भारत की कहानी बड़ी अनूठी है। असल में, अध्यात्म के अतिशयपूर्ण प्रयोग की कहानी है। भारत की कहानी अनूठी है। अनूठी कई लिहाज से है। पहला तो यह कि इतना बड़ा देश – गौरव-सभ्यता के शिखर पर ! विज्ञान के संबंध में उस समय पृथ्वी पर कोई भी इतना विकसित नहीं, जितना भारत ! आज जो विज्ञान के संबंध में बहुत विकसित हैं, वे उस समय बिलकुल
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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