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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ लाओत्से कहता है, 'जो ताओ के अनुसार राजा को मंत्रणा देता है, वह शस्त्र-बल से विजय का विरोध करेगा।' ताओ के अनुसार जो राजा को मंत्रणा देता है, वह शस्त्र-बल का विरोध करेगा। वस्तुतः वह बल का ही विरोध करेगा। वह चाहेगा कि काम बिना बल के हो जाए। और जितना कुशल होगा व्यक्ति, उतने बिना बल के काम करा लेता है। अकुशल अपनी अकुशलता की पूर्ति बल से करता है। कभी आप किसी कुशल व्यक्ति को देखें-किसी भी काम में-आप पाएंगे, वह बल-प्रयोग न के बराबर करता है। एक कुशल व्यक्ति को कार चलाते देखें, तो आप पाएंगे, वह बल का बिलकुल प्रयोग नहीं कर रहा, वह ताकत लगा ही नहीं रहा। एक सिक्खड़ को कार चलाते देखें; उसकी सारी शक्ति व्यय हुई जा रही है, पसीना-पसीना हुआ जा रहा है। क्या फर्क है दोनों में? कार कोई बल से नहीं चलती, कुशलता से चलती है। लेकिन कुशलता की कमी हो तो आदमी बल से उसे पूरी करना चाहता है। बल हम लगाते ही हैं वहां, जहां हमारी कुशलता क्षीण पड़ती है, कम पड़ती है। आप खयाल करना, इसलिए नया काम करने में आप थक जाते हैं और पुराना काम करने में आप नहीं थकते। पुराना काम कुशल हो गया है। नया काम, आप ताकत लगाते हैं। छोटे बच्चों को लिखते देखें, तो उनका . पूरा शरीर अकड़ा हुआ है कलम पकड़ने में। अभी वे कुशल नहीं हैं, अभी सारी ताकत लगा कर वे कुशलता पूरी कर रहे हैं। बच्चे कागज को फाड़ देते हैं, इतना ताकत लगा कर लिखते हैं। ताकत लगाने की कोई जरूरत नहीं है। कई तो बूढ़े भी ऐसे लिखते हैं, पूरी ताकत लगा देते हैं। ताकत का लिखने से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन भीतर कुशलता की कमी है। एक झेन फकीर हुआ, लिंची। वह अपने शिष्यों को चित्रकला सिखाता था। वह कहता था कि अगर तुम्हें जरा भी श्रम मालूम पड़े, तो समझना कि अभी तुम कलाकार नहीं हुए। अगर तुम्हें जरा भी श्रम मालूम पड़े कुछ बनाते वक्त, तो समझना अभी कमी है। और जब श्रम बिलकुल ही न पड़े, जब तुम्हें लगे ही नहीं, कि जैसे तुमने कुछ भी नहीं किया, ऐसे ही तुमने कैनवस पर पेंटिंग बना दी, तो ही जानना कि तुम कुशल हुए हो। कुशलता बल नहीं मांगती, जीवन का कोई आयाम हो। अकुशलता बल मांगती है। ताओ के अनुसार सलाह देने वाला शस्त्र-बल का विरोध करेगा। क्योंकि वह बताता है कुशलता की कमी है। 'क्योंकि ऐसी विजय, विजयी के लिए भी दुष्परिणाम लाती है।' और फिर विजय, जो हारता है, उसके लिए तो दुष्परिणाम लाती ही है; जो जीतता है, उसके लिए भी दुष्परिणाम लाती है। नेपोलियन ने अनेक युद्धों के अनुभव के बाद एक पत्र में लिखा है कि जो हारता है वह तो रोता ही है, लेकिन जो जीतता है वह भी रोता है। क्योंकि चारों तरफ विध्वंस फैल जाता है और हाथ कुछ भी नहीं लगता। सब टूट जाता है, विकृत हो जाता है, और हाथ कुछ भी नहीं लगता। और जिसे हरा कर हम जीत जाते हैं, ध्यान रहे, जिंदगी बड़ी जटिलता है। आप जब तक उसे हराए नहीं थे, तब तक आपका दुश्मन भी आपको बल देता था। यह थोड़ा कठिन है, लेकिन समझने की कोशिश करें। जिस दिन आप दुश्मन को हरा देते हैं, उस दिन दुश्मन आपको बल नहीं देता, आप भी टूट गए होते हैं। खयाल करें, आपका एक दुश्मन आज मर जाए, तो आपकी जिंदगी में उतनी ही कमी हो जाएगी, जितनी किसी मित्र के मरने से होती। इसलिए समझदारों ने तो कहा है कि अच्छा दुश्मन चुन लेना, अच्छा दुश्मन पा जाना बड़ा सौभाग्य है। क्योंकि अच्छे दुश्मन से जो आपका तनाव बना रहता है, सेतु बना रहता है, जो खिंचाव बना रहता है। वह सृजनात्मक हो सकता है। दुश्मन के टूटते ही...। 336
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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