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________________ संस्कृति से गुजर कर निसर्ग में वापसी लेकिन इसकी निष्क्रियता में बड़ी क्रांतियां घटित होती हैं। इसके पास आकर न मालूम कितने चिराग जल जाते हैं। और यह उन्हें जलाता नहीं है। पर इसकी आग काफी है। चिराग पास भी आ जाएं तो लपट पकड़ जाती है। इसके पास आकर न मालूम कितने लोग अनंत सौंदर्य को उपलब्ध हो जाते हैं। लेकिन यह उन्हें तराशता नहीं है। यह उन्हें सुंदर बनाता नहीं है। इसकी सन्निधि, इसका संपर्क, इसकी हवा, बस इसका होना, इसका होना उन्हें बहुत कुछ दे जाता है। लाओत्से गुजर रहा है एक पहाड़ से। और सारा जंगल काटा जा रहा है। यह बड़ी प्रीतिकर कथा है और बहुत बार मैंने कही है। सिर्फ एक वृक्ष नहीं काटा जा रहा है। तो लाओत्से अपने शिष्यों को कहता है कि जाओ, जरा पूछो इन काटने वालों से, इस वृक्ष को क्यों नहीं काटते हो? तो वे गए, उन्होंने पूछा। उन्होंने कहा, यह वृक्ष बिलकुल बेकार है। इसकी सब शाखाएं टेढ़ी-मेढ़ी हैं। तो कुछ बन नहीं सकता। दरवाजे नहीं बन सकते, मेज नहीं बन सकती, कुर्सी नहीं बन सकती। और यह वृक्ष ऐसा है कि अगर इसे जलाओ तो धुआं ही धुआं होता है; आग जलती नहीं। इसके पत्ते किसी काम के नहीं; कोई जानवर खाने को राजी नहीं। इसलिए इसे कैसे काटें? तो सारा जंगल कट रहा है, यह भर बच रहा है। लाओत्से के पास जब शिष्य आए तो लाओत्से ने कहा, इस वृक्ष की भांति हो जाता है ताओ को उपलब्ध व्यक्ति। देखो, यह वृक्ष कट नहीं सकता, क्योंकि वस्तुतः यह सम्मान पाने को उत्सुक नहीं है। एक लकड़ी सीधी नहीं है; सम्मान की आकांक्षा होती तो कुछ तो सीधा रखता। सब इरछा-तिरछा है। इस वृक्ष को दूसरों को प्रभावित करने की उत्सुकता नहीं है; नहीं तो धुआं ही धुआं छोड़ता? इस वृक्ष को जानवरों तक को अनुयायी बनाने का रस नहीं है; नहीं तो कम से कम पत्तों में कुछ तो स्वाद भरता। लेकिन देखो, यही भर नहीं कट रहा है; बाकी सब कट रहे हैं। सीधा होने की कोशिश करोगे, काटे जाओगे, लाओत्से ने कहा। तुम्हारा फर्नीचर बनेगा। सिंहासन में लगते हो कि साधारण क्लर्क की कुर्सी में लगते हो, यह और बात है; लेकिन फर्नीचर तुम्हारा बनेगा। और जो तुम्हें फर्नीचर बनाने को उत्सुक हैं, वे तुमको समझाएंगे कि सीधे रहो, नहीं तो बेकार साबित हो जाओगे। अगर तुमने उनकी मानी, तो तुम कहीं ईंधन बन कर जलोगे। सब ईंधन बन कर जल रहे हैं। लोगों से पूछो, क्या कर रहे हो? वे कह रहे हैं, हम बच्चों के लिए जी रहे हैं। उनके बाप उनके लिए जी रहे थे। उनके बच्चे उनके बच्चों के लिए जीएंगे। तुम ईंधन हो? तुम किसी और के लिए जल रहे हो? लाओत्से ने कहा, छोड़ो फिकर। ईंधन मत बनना। और लाओत्से ने कहा कि देखो, इस वृक्ष के नीचे एक हजार बैलगाड़ियां ठहर सकती हैं। यह वृक्ष किसी को बुलाता नहीं, लेकिन इसकी घनी छाया, हजारों लोग इसके नीचे रुकते हैं। बिलकुल बेकार है; पर हजारों थके हुए विश्राम पा लेते हैं। यह वृक्ष कोई उन्हें छाया देना चाहता है, ऐसा भी नहीं। इस वृक्ष ने तो एक ही नियम बना रखा है मालूम होता है कि जो नैसर्गिक है, उसमें ही रहूंगा, कुछ गड़बड़ नहीं करूंगा। ताओ को उपलब्ध व्यक्ति ऐसा ही हो जाता है। हजारों लोग उसके नीचे छाया पाते हैं। वह छाया देता नहीं, छाया उसके नीचे होती है। लकड़ी को काट-छांटें तो पात्र बन जाती है। ज्ञानी के हाथों में पड़ कर लोग भी पात्र बन जाते हैं, आभिजात्य को उपलब्ध होते हैं, शासन करने वाले बन जाते हैं। 'इन दि हैंड्स ऑफ दि सेज, दे बिकम दि आफिशियल्स एंड दि मैजिस्ट्रेट्स।' अगर आप ज्ञानियों के हाथ में पड़ जाएं, शिक्षकों के हाथ में पड़ जाएं, तो आपको डाक्टर, इंजीनियर, 305
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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