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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ मिनिस्टर, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति बन जाने का मौका मिलेगा। वे आपको पात्र बना देंगे। योग्य पात्र बना देंगे, जो किसी काम आ सके। लेकिन लाओत्से कहता है, 'किंतु महान शासक खंडन नहीं करता। बट दि ग्रेट रूलर डज नाट कट अप।' लेकिन महान शास्ता, महावीर, बुद्ध, कृष्ण जैसा महान शास्ता, वस्तुतः जो शासक है-राजा से मतलब नहीं है, शास्ता से मतलब है-वस्तुतः जिसकी छाया में शासन फलित हो जाता है, जो कुछ करता नहीं। जिसकी मौजूदगी शासन बन जाती है। जो आदेश नहीं देता, लेकिन जिसका होना, जिसका ढंग आदेश बन जाता है; जिसकी मुद्रा, जिसका हिलना-डुलना आदेश बन जाता है। ऐसा महान शास्ता किसी को काटता-पीटता नहीं, खंडित नहीं करता, तराशता नहीं। वस्तुतः ऐसा महान शास्ता आपके तराशेपन को छीन लेता है। आपके खंडन को अलग कर देता है और आपको अखंड में गिरने की सुविधा जुटा देता है। अखंड का मतलब है गैर-तराशा हुआ, अनरिफाइंड। बड़ी उलटी बातें लगेंगी। लाओत्से रिफाइंड के खिलाफ, अनरिफाइंड के पक्ष में। तराशने के खिलाफ, अनगढ़ के पक्ष में। संस्कार के खिलाफ, संस्कार-शून्यता के पक्ष में। लेकिन संस्कार-शून्यता तभी आती है, जब संस्कार घटित हो जाता है। इसलिए इस दुनिया में दो तरह के शिक्षक हैं। हमने उनके लिए अलग-अलग नाम दिए हैं। एक को हम शिक्षक कहते हैं, दूसरे को हम गुरु कहते हैं। शिक्षक तराशता है, गुरु फिर अन-तराशे में भेज देता है। पश्चिम के पास दो शब्द नहीं हैं। क्योंकि पश्चिम के पास टीचर, शिक्षक, एक ही शब्द है। तराशना, सुसंस्कार करना, पात्र बनाना, बस यही शिक्षा है। हमने पूरब में एक और शिक्षा भी जानी है, जो परम शिक्षा है। जो जब सब शिक्षकों का काम पूरा हो जाता है, तो परम शिक्षक का काम, गुरु का काम शुरू होता है। वह फिर अन-तराशता है। फिर जोड़ता है; टूटे को फिर इकट्ठा करता है। बनाए को फिर मिटाता है। पात्र को फिर अनगढ़ लकड़ी में ढाल देता है। और सारे संस्कार, सारे समाज को छीन कर वापस फिर निसर्ग में डुबा देता है। उस निसर्ग में डूब जाना ही निर्वाण है। आज इतना ही। पांच मिनट रुकें, कीर्तन करें। 306
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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