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सनातन शक्ति, जो कभी भूल नहीं करती
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कभी आपको खयाल हो न हो, शरीर का आपको पता ही तब चलता है, जब आप बीमार होते हैं । नहीं तो पता नहीं चलता। अगर बच्चा स्वस्थ है तो बिलकुल पता नहीं चलता कि शरीर है। स्वस्थ बच्चे को शरीर का कोई पता नहीं होता। जब बीमारी आती है, भूख लगती है, ठंड लगती है, तब बच्चे को पता चलता है कि शरीर है। आप भी अगर पूरे स्वस्थ हों - जो कि बहुत कठिन है - तो आपको भी शरीर का पता नहीं चलेगा। बीमारी का पता चलता है। पैर में कांटा चुभता है तो पैर का पता चलता है। सिर में दर्द होता है तो सिर का पता चलता है। और अगर आपको सिर का पता चलता ही रहता है तो समझना कि दर्द है। विचार बहुत चलते रहें, वे भी दर्द पैदा करते हैं । उनकी वजह से भी खोपड़ी का पता चलता है।
बच्चे को कोई पता नहीं शरीर का । बच्चे को किसी भेद का पता नहीं। बच्चे को किसी से मिलने की कोई आकांक्षा नहीं। बच्चा अपने में लीन है। फ्रायड ने जो शब्द उपयोग किया है, वह बहुत बढ़िया है। फ्रायड कहता है, बच्चा आटो - एरोटिक है, आत्म-कामी है। खुद काफी है; उसे कोई और जरूरत नहीं है । देखा, बच्चा अपना ही हाथ चूसता रहता है। आपको अगर हाथ चूसने में मजा लेना हो तो किसी और का चूसना पड़े। अपना हाथ बिलकुल मजा नहीं देगा। या कि आपको दे सकता है ? अगर दे तो आपके घरवाले आपका इलाज करवाने चिकित्सक के पास ले जाएंगे। बच्चा आटो - एरोटिक है।
तीन तरह की संभावनाएं हैं, मनसविद कहते हैं। हेट्रोसेक्सुअल, विपरीत लिंगी काम - पुरुष और स्त्री के बीच | होमो सेक्सुअल, समलिंगी काम - पुरुष और पुरुष के बीच, स्त्री और स्त्री के बीच। आटो सेक्सुअल, आत्म- लिंगी काम - खुद ही, किसी के प्रति नहीं । बच्चा आटो सेक्सुअल है। उसे अभी दुनिया में किसी की जरूरत नहीं है। अभी वह अपने को ही प्रेम करता है।
नार्सीसस की कथा अगर आपने पढ़ी हो। यूनानी कथा है कि नार्सीसस इतना सुंदर था कि जब उसने पहली दफा पानी में अपनी छाया देखी, तो उसके प्रेम में पड़ गया। फिर वह अपने को ही प्रेम करता रहा। फिर वह किसी को प्रेम नहीं कर सका। बच्चे नार्सीसस हैं; वे खुद ही को प्रेम करते हैं। अभी दूसरा है ही नहीं ।
लेकिन अभी दूसरा आएगा। जल्दी ही; शरीर तैयारी कर रहा है। प्रतीक्षा है, जल्दी ही दूसरा आ जाएगा। जल्दी ही बच्चे दूसरे में रस लेना शुरू कर देंगे। छिपे में अभी भी रस होता है-छिपे में, अभी बच्चे को साफ भी नहीं होता - अनकांशस, अचेतन में।
इसलिए लड़कियां पिता को ज्यादा प्रेम करती हैं; लड़के मां को ज्यादा प्रेम करते हैं। मां लड़कों को ज्यादा प्रेम करती है; बाप लड़कियों को ज्यादा प्रेम करता है। वह विपरीत अभी भी आकर्षक है। इसलिए बाप और बेटे में थोड़ी सी कलह रहती है। लड़की और मां में थोड़ी सी कलह रहती है। और अगर बाप लड़की को ज्यादा प्रेम करता है तो कलह और बढ़ जाती है। या अगर मां लड़के को ज्यादा प्रेम करती है तो कलह और बढ़ जाती है। वह विपरीत का आकर्षण अभी भी छिपा है। लेकिन अभी प्रकट नहीं है। प्रकट हो जाएगा।
लेकिन जब भीतर यह मिलन घटित हो जाता है, तो पुनः व्यक्ति बच्चे की तरह निर्दोष होता है। बच्चे की तरह! यह बात ठीक बच्चे की तरह नहीं है । और ही आयाम खुल जाता है। अब दूसरा कभी भी महत्वपूर्ण नहीं होगा। अब दूसरे का आकर्षण सदा के लिए खो गया। अब यह सारी बात ही समाप्त हो गई। अब यह भीतर आत्म- कामी है। यह अब अपने ही भीतर पूरे रस में लीन है। अब यह उस अद्वैत को उपलब्ध हो गया, जहां अब कहीं बाहर जाने की, प्रेमी को खोजने की अब कोई जरूरत न रही। अब प्रेमी भीतर मिल गया है। और तब स्वभावतः, सब तनाव खो जाए, सब अशांति खो जाए, सब दुख खो जाए, तो आश्चर्य नहीं है। क्योंकि ऐसा व्यक्ति सदा ही भीतर अमृत के झरने को अनुभव करता है।