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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ सोची भी न थी। दूसरे साल दुगने बच्चे पैदा हुए उस गांव में। क्योंकि लोग टेलीविजन देख लेते थे, सो जाते थे चुपचाप देख-दाख कर। साल भर टेलीविजन बंद रहा, अमीर और गरीब बराबर हो गए। एक ही मनोरंजन बच गया। दुगने बच्चे! एक मनोवैज्ञानिक ने सुझाव दिया है कि टेलीविजन बर्थ-कंट्रोल की सबसे अच्छी व्यवस्था है। घर-घर में टेलीविजन पहुंचे, तो लोग...बर्थ-कंट्रोल की कम जरूरत पड़ेगी-अगर उस गांव का अनुभव सभी जगह काम आया तो। आना चाहिए, क्योंकि आदमी एक जैसा है। इसलिए गरीब ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं। उनके पास कुछ और स्वयं को खोने का उपाय नहीं है। इसलिए अमीर आदमियों को अक्सर बच्चे गोद लेना पड़ते हैं। अगर बाहर का मिलन है, शरीर के तल पर, तो क्षण भर को होगा। और मन के तल पर तो क्षण भर को भी नहीं हो पाता। इसे थोड़ा समझ लें। शरीर के तल पर तो क्षण भर को भी हो पाता है; मन के तल पर क्षण भरं को भी नहीं हो पाता। इसलिए काम, यौन तो आसान है। प्रेम बहुत कठिन है। प्रेम का मतलब है मन के तल पर मिलन-किसी स्त्री-पुरुष का मन के तल पर ऐसा मिल जाना जैसे संभोग में शरीर के तल पर घटित होता है। कोई विरोध नहीं रह गया; कोई भेद नहीं रह गया; कोई अस्मिता, अहंकार नहीं रह गया; जब मन के तल पर ऐसा मिलन होता है तो प्रेम घटित होता है; जब शरीर के तल पर ऐसा मिलन होता है तो यौन घटित होता है। प्रेम बड़ा कठिन है। क्योंकि दो मन का ऐसे क्षण में आ जाना जहां कोई विरोध न हो, कोई अहंकार न हो, अति कठिन है। शरीर के तल पर क्षण भर को, मन के तल पर क्षण भर को भी नहीं, इसलिए दुख मिलेगा। अपने भीतर एक मिलन घटित हो सकता है स्वयं की स्त्री और स्वयं के पुरुष का-वह आत्मा के तल पर है। और वह जो मिलन है, उसमें कोई शक्ति व्यय नहीं होती। क्यों? आप अपने बाहर जाते ही नहीं। अगर विज्ञान की भाषा में कहें तो अमीबा जैसे शरीर के तल पर स्त्री और पुरुष एक है, ऐसे ही जो व्यक्ति अपने भीतर स्त्री और पुरुष को मिला लेता है, आत्मा के तल पर अमीबा की तरह एक हो जाता है। इस मिलन का नाम आनंद है। इसकी प्रक्रिया योग है। और ऐसी स्थिति में आया हुआ व्यक्ति बिलकुल बच्चे की तरह निर्दोष हो जाता है। बच्चे की तरह कहने का कारण है। बच्चे से मतलब है, जब यौन की धारणा विकसित नहीं हुई। छोटा बच्चा न स्त्री है, न पुरुष। शरीर की दृष्टि से तो स्त्री-पुरुष है, पर अभी उसे अपने शरीर का पता ही नहीं है। आपको पता है। तो आपके लिए एक बच्चा स्त्री है, एक बच्चा पुरुष है। बच्चा पैदा हुआ। मां-बाप पता लगाना चाहते हैं लड़का है, लड़की है। यह लड़का-लड़की मां-बाप के लिए है। अपने लिए? अपने लिए अभी कुछ भी नहीं है। अभी इसे शरीर का बोध ही नहीं है। अपने लिए तो अभी यह सिर्फ है। वक्त लगेगा। जब आप इसको सिखाएंगे, बड़ा होगा, तब यह समझेगा कि लड़का है या लड़की। फिर भी समझ कर भी इसकी समझ में न आएगा कि ऐसा बहुत फर्क क्या है लड़का और लड़की में। चौदह साल का होगा, तब इसकी ग्रंथियां शक्ति पैदा करना शुरू करेंगी, हारमोन विभाजित होंगे। तब इसे पहली दफा भीतर से अनुभव आएगा कि लड़का होने का क्या अर्थ है और लड़की होने का क्या अर्थ है। तब लड़के शिखर बनने लगेंगे, लड़कियां घाटियां बनने लगेंगी। तब उनकी मिलन की आकांक्षा पैदा होगी। तब वे एक-दूसरे से मिल कर पूरा होना चाहेंगे। लाओत्से कहता है, जो व्यक्ति पुरुष होकर स्त्री में वास कर लेता है, वह भीतर एक निर्दोष बच्चे की भांति हो जाता है। फिर न वह स्त्री है, न पुरुष। मैंने कहा आपको कि बुद्ध स्त्रैण मालूम होते हैं। अगर हम बाहर चंगीजखां को, हिटलर को, नेपोलियन को, सिकंदर को पुरुष मानते हैं, तो निश्चित ही बुद्ध स्त्रैण मालूम होते हैं। लेकिन बुद्ध के भीतर का अनुभव क्या है? भीतर का अनुभव यह है कि बुद्ध अब न स्त्री हैं, न पुरुष। बुद्ध अब केवल हैं। अब वे उस बच्चे की भांति हो गए जिसको पता ही नहीं कि शरीर में कोई भेद-जिसे यह भी पता नहीं कि शरीर है। 286
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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