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सनातन शक्ति, जो कभी भूल नहीं करती
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दस परसेंट स्त्री हो; लेकिन स्त्रैण हिस्सा होगा। और कभी-कभी ऐसा होता है कि यह अनुपात इतना क्षीण होता है कभी-कभी कोई स्त्री बाद में पुरुष हो जाती है, कोई पुरुष बाद में स्त्री हो जाता है। लिंग परिवर्तन हो जाता है। अगर इक्यावन परसेंट आप पुरुष हैं, तो खतरा है। एक ही परसेंट, दो परसेंट का मामला है। जरा सा भी केमिकल फर्क, जरा से हारमोन का फर्क - किसी बीमारी के कारण, किसी दवा के कारण — और आप तत्काल स्त्री हो सकते हैं। अगर आप सिर्फ एक-दो परसेंट के फासले पर हैं, मारजिन बहुत कम है, तो परिवर्तन हो सकता है।
और अब तो वैज्ञानिक कहते हैं कि परिवर्तन — मारजिन कितना ही बड़ा हो— किया जा सकता है। क्योंकि हारमोन का फर्क है। अगर थोड़े स्त्रैण हारमोन आप में डाल दिए जाएं तो आपकी मात्रा, भीतर का अनुपात बदल जाएगा, आप स्त्री होना शुरू हो जाएंगे।
इसका अर्थ यह हुआ कि पुरुष के भीतर स्त्री छिपी है, स्त्री के भीतर पुरुष भी छिपा है। इन दोनों के बीच भी अगर संतुलन न बन पाए तो आप असंतुलित रहेंगे। इन दोनों में भी भीतर तालमेल हो जाना चाहिए।
खयाल करें तो आपको अनुभव में आना शुरू होगा। सुबह आप बड़े शांत हैं। जरा सा किसी ने कुछ कहा, आप क्रोधित हो गए, आग जलने लगी। आपको पता नहीं है, भीतर जब आप शांत थे, तो स्त्रैण तत्व प्रमुख था। स्त्रैण ऊपर था, पुरुष नीचे दबा था। अब किसी ने आप में एक अंगारा फेंक दिया, एक गाली दे दी, किसी ने धक्का मार दिया, किसी ने कुछ कह दिया, जो चोट कर गया । स्त्री तत्काल पीछे हट गई। क्योंकि स्त्री चोट का जवाब नहीं दे सकती, स्त्री आक्रामक नहीं हो सकती। स्त्री तत्काल पीछे हट गई, पर्दे की ओट हो गई । पुरुष बाहर आ गया। आपकी आंखें खून से भर गईं। हाथ-पैर में जहर दौड़ गया। आप गरदन किसी की दबाने को, किसी को मार डालने को उत्सुक हो गए।
आप दिन में चौबीस घंटे में कई बार स्त्री हो जाते हैं, कई बार पुरुष हो जाते हैं। जो स्त्री आपको प्रेम करती है, और कभी आप सोच नहीं सकते कि आपकी गरदन दबा सकती है, वह भी कभी आपकी गरदन दबा सकती है। उसके भीतर भी वह गरदन दबाने वाला छिपा है। अगर वह देख ले आपको कि आप किसी और के प्रेम में पड़े जा रहे हैं, तो वह गरदन भी दबा सकती है। न भी दबाए तो विचार तो करेगी ही गरदन दबाने का । यह भी हो सकता है, आपकी न दबाए तो अपनी दबा ले। मगर दबा सकती है।
अक्सर यह होगा कि पुरुष जब क्रोधित होता है तो दूसरे को नष्ट करना चाहता है; स्त्री जब क्रोधित होती है तो खुद को नष्ट करना चाहती है। उतना उन दोनों में भेद है। क्योंकि दूसरे को नष्ट करने में ज्यादा आक्रामक होना पड़ता है. खुद को नष्ट होने में कम आक्रामक होना पड़ता है। इसलिए स्त्रियां ज्यादा आत्मघात करती हैं। करने का कारण कुल इतना है, वह भी हत्या करना चाहती हैं आपकी, लेकिन स्त्रैण होने की वजह से उन्होंने अपनी हत्या कर ली। पुरुष कम आत्मघात करते हैं। क्योंकि जब भी वे आत्मघात करना चाहते हैं, तब उनका मन किसी दूसरे की हत्या करने के लिए दौड़ पड़ता है। दूसरे की हत्या करना पुरुष को आसान है; क्योंकि दूसरा दूर है। और अपनी हत्या करना आसान है; क्योंकि स्त्री अपने पास है। उसकी नजर पास पड़ती है, दूर नहीं पड़ती।
लेकिन दोनों एक-दूसरे के भीतर छिपे हैं। और इनमें से अगर एक को बिलकुल काट दिया जाए तो आप अपंग हो जाएंगे, जैसे बायां पैर किसी ने काट दिया। आप चल पाते हैं, क्योंकि दाएं और बाएं के बीच एक संतुलन बना रहता है; यद्यपि दोनों का काम विरोधी है। जब बायां पैर ऊपर उठता है, तो दायां जमीन को पकड़े रहता है। और जब बायां जमीन को पकड़ लेता है, तब दायां उठता है। दोनों एक-दूसरे के विरोध में होते हैं। एक जमीन पर होता है, एक जमीन को छोड़ देता है। लेकिन इन दोनों के बीच गति संभव हो पाती है। और इन दोनों के बीच जितना संतुलन हो, जितनी बराबर शक्ति हो दोनों में, उतनी ही गति व्यवस्थित हो पाती है।