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ताओ उपनिषद भाग ३
अब हम इस सूत्र में प्रवेश करें।
'जो पुरुष को तो जानता है, लेकिन स्त्रैण में करता है वास, वह संसार के लिए घाटी बन जाता है। और संसार की घाटी होकर वह उस मूल स्वरूप में स्थित रहता है, जो अखंड है।'
___ ही हू इज़ अवेयर ऑफ दि मेल, बट कीप्स टु दि फीमेल, बिकम्स दि रैवाइन ऑफ दि वर्ल्ड। बीइंग दि रैवाइन ऑफ दि वर्ल्ड ही हैज दि ओरिजनल कैरेक्टर व्हिच इज़ नाट कट अप, एंड रिटर्न्स अगेन टु दि इनोसेंस ऑफ दि वे।'
जो पुरुष को जानता है, लेकिन स्त्रैण में वास करता है। जो क्रिया में जीता है, लेकिन निष्क्रियता जिसके भीतर बनी रहती है।
ऐसा करें: दौड़ रहे हैं रास्ते पर, तब बाहर तो दौड़ है, लेकिन भीतर कोई है, जो दौड़ नहीं रहा। जरा भीतर झांकें। उसे पकड़ लेना कठिन नहीं होगा, जो भीतर बैठा हुआ है, जो दौड़ नहीं रहा। शरीर दौड़ता है, चेतना तो दौड़ती नहीं। चेतना तो वहीं बैठी रहती है। चेतना तो कभी चली ही नहीं है। आप कितने ही चले हों, चेतना नहीं चली है।
चेतना करीब-करीब वैसी है, जैसे आप हवाई जहाज में बैठे हैं। हवाई जहाज दौड़ रहा है हजारों मील की रफ्तार से और आप बैठे हैं। शरीर भी आपका वाहन है। शरीर दौड़ रहा है, आप बैठे हैं। और हवाई जहाज में तो यह . भी संभव है-अगर आपका दिमाग खराब हो कि हवाई जहाज भी भाग रहा हो, आप उसमें भाग रहे हों अंदर, जल्दी पहुंच जाने के खयाल से। ठीक वैसा पागलपन आप भीतर भी कर सकते हैं। शरीर भाग रहा हो और आप भी भीतर भागने की कोशिश कर रहे हों। जल्दी नहीं पहुंच जाएंगे आप; क्योंकि भीतर कोई गति हो नहीं सकती। भीतर अगति है। भीतर कोई मूवमेंट, कोई हलन-चलन संभव नहीं है। शरीर हलन-चलन कर सकता है।
तो जो व्यक्ति दौड़ते हुए भीतर ध्यान रख सके उस पर जो दौड़ता नहीं है, तो वह पुरुष होकर स्त्रैण में वास कर रहा है। जो विचार करते समय भी गहरे तल पर निर्विचार में रह सके, तो वह पुरुष होते हुए स्त्रैण में वास कर रहा है। जो इस संसार में चलते हुए, जीते हुए भी, संन्यासी रह सके, तो वह पुरुष के साथ स्त्रैण में ठहरा हुआ है। संन्यास स्त्रैण है। सैनिक होना पुरुष, संन्यासी होना स्त्रैण है। लेकिन जो सैनिक रह कर संन्यासी रह सके, उसकी स्थिति परम है। या जो संन्यासी रह कर सैनिक रह सके, उसकी स्थिति भी परम है। क्योंकि दो विरोध जब मिल जाते हैं, तो एक-दूसरे को काट देते हैं। ऋण और धन जब मिलते हैं, तो एक-दूसरे को विलीन कर देते हैं। और उनके नीचे शून्य रह जाता है।
'जो पुरुष को जानता है, लेकिन स्त्रैण में वास करता है...।'
स्त्रैण से समझें निष्क्रियता, स्त्रैण से समझें त्याग, स्त्रैण से समझें समर्पण, स्त्रैण से समझें स्वीकार-स्त्रैण से इस तरह की बातें समझें। पुरुष से समझें आक्रमण, परिग्रह, संग्रह, दौड़, महत्वाकांक्षा, प्रतिस्पर्धा। ये शब्द प्रतीक हैं। अगर आपका मन दौड़ में जी रहा है सिर्फ और आपने उसको बिलकुल नहीं जाना जहां दौड़ नहीं है, तो आप आधे जी रहे हैं। इस संबंध में एक बात और नवीन खोज की खयाल में लेनी चाहिए।
कार्ल गुस्ताव जुंग ने इस सदी की महानतम खोजों में एक अनुदान किया है। और वह यह कि कोई पुरुष न तो पूरा पुरुष है और न कोई स्त्री पूरी स्त्री। प्रत्येक व्यक्ति द्विलिंगी है, बाई-सेक्सुअल है। मात्रा का फर्क है। आप साठ परसेंट पुरुष होंगे, चालीस परसेंट स्त्री होंगे। आपकी पत्नी साठ परसेंट स्त्री होगी, चालीस परसेंट पुरुष होगी। बंस ऐसा फर्क है। सौ परसेंट पुरुष आप नहीं हैं। न सौ परसेंट कोई स्त्री है। हो नहीं सकता ऐसा। इसलिए नहीं हो सकता कि आपका जन्म स्त्री और पुरुष दोनों के मिलन से होता है। स्त्री में होता है; स्त्री से आप बाहर आते हैं। लेकिन पुरुष इसमें सहयोगी होता है। वह पुरुष आपके भीतर प्रवेश कर जाता है। क्योंकि जन्म सेक्सुअल है, पुरुष और स्त्री के मिलन से है, इसलिए दोनों ही मात्रा में मौजूद रहेंगे। यह हो सकता है कि एक व्यक्ति नब्बे परसेंट पुरुष हो और
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