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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ कभी आपने देखा है, गली में, अकेले में, अंधेरे में जाते हों तो आदमी खुद ही सीटी बजाने लगता है। अपनी ही सीटी की आवाज अंधेरे में सुनाई पड़ती है, लगता है अकेले नहीं हैं। गाना गाने लगता है। अपनी ही आवाज सुनाई पड़ती है, हिम्मत आ जाती हैलगता है अकेले नहीं हैं। आदमी धोखा देने में बहुत कुशल है। जब आप हंसते हैं, जरूरी नहीं कि किसी और को धोखा दे रहे हों। और को भी दे रहे हों, दूसरी बात है; लेकिन अपने को भी दे रहे हो सकते हैं। हंसते हैं, हंसी की आवाज सुनाई पड़ती है; लगता है बड़े खुश हैं। लोगों के भीतर झांकें और दुख के ढेर हैं। और उन दुखों के ढेर पर भी बैठ कर लोग हंसते रहते हैं। यह चमत्कार है। इसलिए आदमी अकेला होने में डरता है। क्योंकि अकेले में हंसिएगा भी कैसे? दुख दिखाई पड़ने शुरू हो जाते हैं। दूसरा हो तो आदमी भुला लेता है; दूसरे के साथ बातचीत में डुबा लेता है अपने को। हंस लेता है। अकेला होता है तो दुख दिखाई पड़ने लगते हैं। सब भीतर की पीड़ाएं उभर कर सामने आ जाती हैं। सब आंसू साफ हो जाते हैं। इसलिए कोई आदमी अकेला नहीं रहना चाहता। अकेले में कोई आदमी अपने साथ रहने को राजी नहीं दिखाई पड़ता है। क्यों? क्योंकि अपने को कैसे हंसिए? कितनी देर हंसिए? जो भीतर है, वह दिखाई पड़ेगा। दूसरे में उलझ जाते हैं, व्यस्त हो जाते हैं, तो खुद को भूलने में आसानी हो जाती है। हम सब एक-दूसरे को भुलाने के लिए सहयोगी हैं; एक-दूसरे की पारस्परिक सहयोग देते रहते हैं। हम आपका दुख भुलाते हैं, आप हमारा दुख भुलाते हैं। मित्रों का यही लक्षण है। कहते हैं न, मित्र वही जो दुख में काम आए। पता नहीं, और तरह काम आते हैं मित्र कि नहीं, लेकिन एक-दूसरे का दुख भुलाने में काम जरूर आते हैं। लाओत्से कहता है, दुनिया के लोग मजा कर रहे हैं, मानो किसी यज्ञ के भोज में शरीक हुए हों, या समझो कि वसंत उनके ऊपर ही बरस रहा हो। एक अकेला मैं चुपचाप खड़ा हूं। एक अकेला मैं ही सौम्य मालूम पड़ता हूं। न कोई मजा मुझे दिखाई पड़ता है, न कोई उत्सव मेरी समझ में आता है। एक अकेला मैं ही दूर पड़ गया हूं, भीड़ के बाहर पड़ गया हूं, अजनबी हूं। लगता है जैसे बेकार हूँ। और ऐसा लाओत्से को ही लगता हो, ऐसा नहीं। दूसरे लोग भी ऐसे लोगों से आकर कहते हैं कि क्या जीवन । बेकार गंवा रहे हैं। अगर आप चुपचाप बैठे हैं तो लोग पूछते हैं कि क्यों समय गंवा रहे हैं। अगर आप शांत हैं तो लोग समझते हैं दुखी हैं। अगर आप सौम्य हैं तो लोग समझते हैं कि क्या हुआ? कोई कडुवा अनुभव? कोई फ्रस्ट्रेशन? कोई विषाद? अगर आप ध्यान के लिए बैठे हैं तो लोग समझते हैं कि शायद जीवन में सफलता हाथ नहीं लगी, अब ध्यान करने लगे हैं। अगर आप संन्यस्त हो रहे हैं तो लोग समझते हैं कि बेचारा, संसार में कुछ न मिल सका तो अब संन्यास की तरफ जा रहा है। तो लाओत्से को खुद ही लगा हो, ऐसा नहीं। हजारों लोगों ने लाओत्से से कहा होगा कि क्या निठल्ले, व्यर्थ। कुछ करो! तो लाओत्से ठीक कह रहा है, अनुभव की बात कह रहा है कि एक अकेला मैं ही बेकाम मालूम पड़ता हूं। सारा जगत काम में संलग्न है। सारे लोग कहीं पहुंच रहे हैं, कोई परपज, कोई लक्ष्य उनके सामने है। एक मैं ही बेकार हूं। कहीं मुझे पहुंचना नहीं, कोई मेरी जल्दी नहीं, कोई लक्ष्य नहीं जिसे पूरा करना हो। मेरी हालत ऐसी है, उस नवजात शिशु जैसी, जो अभी मुस्कुरा भी नहीं सकता। यह बड़ी समझने की बात है। बच्चा तभी मुस्कुराना सीखता है-मनसविद इस पर काफी काम करते हैं-जब बच्चा मां को धोखा देना शुरू करता है। उसी दिन से बच्चे में पोलिटीशियन पैदा हो गया, जब बच्चा मुस्कुराता है। बच्चे के पास कुछ देने को नहीं है। कुछ देने को नहीं है; सब कुछ उसे लेना ही लेना है। मां का दूध भी लेना है, मां का प्रेम भी लेना है, मां की गर्मी भी लेनी है। सब कुछ लेना ही लेना है। उसके पास देने को कुछ भी नहीं है। उसके पास कोई सिक्का नहीं है जो वह मां को दे सके। 18 |
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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