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________________ धार्मिक व्यक्ति अजनबी व्यक्ति है थोड़े ही दिन में बच्चा खोज लेता है कि उसके चेहरे का खिंच जाना, मुस्कुरा जाना मां के लिए आह्लाद से भर देता है। एक चीज उसके पास मिल गई; वह दे सकता है। अब वह मां को दे सकता है। अब लेन-देन शुरू हुआ। अब वह मां को देख कर मुस्कुरा देगा, और मां आनंदित है। पोलिटीशियन पैदा हुआ; बच्चे ने राजनीति शुरू की। बच्चे को मुस्कुराने का अभी और कोई अर्थ नहीं है, सिर्फ मां को परसुएड करता है। समझ गया है कि जब मुस्कुराता है तो मां प्रसन्न होती है, मां प्रसन्न होती है तो देती है। इसलिए बच्चा जब नाराज हो, तो मां लाख उपाय करे, मुस्कुराएगा नहीं। अपनी मुस्कान को रोकेगा, बदला लेगा। अगर वह नाराज है तो मुस्कुराएगा नहीं। उसकी मुस्कान का मतलब है, वह राजी है, प्रसन्न है, वह मां के प्रति खुश है। लाओत्से कहता है, मेरी हालत वैसी है, उस नवजात शिशु जैसी, जो अभी मुस्कुरा भी नहीं सकता, जिसे जीवन की राजनीति का कोई भी अनुभव नहीं है, जो अभी पहला सिक्का भी जगत-व्यवहार का नहीं सीखा है। मुस्कुराना बच्चे का पहला सांसारिक कदम है। वहां से उसने कदम रखना शुरू कर दिया। अब वह और बातें सीखेगा। लेकिन उसने एक बात सीख ली। उसने एक बात सीख ली कि वह दूसरे को सुख दे सकता है। और दूसरे का सुख रोक भी सकता है। अगर वह न मुस्कुराए तो मां को दुखी भी कर सकता है। और अगर मुस्कुराए तो सुखी भी कर सकता है। दूसरे व्यक्ति को संचालित करने की क्षमता उसे आ गई। अब वह बहुत कुछ सीखेगा जिंदगी में। और सारी जिंदगी हम यही सीखते हैं कि दूसरे को कैसे संचालित करें। और जो आदमी जितने ज्यादा लोगों को संचालित कर सकता है, उतना बड़ा आदमी हो जाता है। अगर आप करोड़ों लोगों को संचालित करते हैं तो आप महानेता हैं। इसलिए मैंने कहा, बच्चे ने राजनीति का पहला पाठ-दूसरे को कैसे संचालित करना, कैसे प्रभावित करना। बच्चा जानता है, घर में अगर मेहमान भी आए हुए हों तो वह घर भर को खुश कर सकता है जरा सा मुस्कुरा कर। वह दुखी कर सकता है। उस पर बहुत कुछ निर्भर है। वह भी कुछ कर सकता है। _ लाओत्से कहता है, मेरी दशा वैसी है, उस बच्चे जैसी, जो अभी मुस्कुरा भी नहीं सकता। मुझे इस जगत का कोई सिक्का, इस जगत को प्रभावित करने की कोई वृत्ति, इस जगत को संचालित करने की कोई शक्ति-नहीं, यह सब मेरे पास नहीं है। मैं बिलकुल बाहर पड़ गया हूं। मैं बिलकुल अजनबी हूं। _ 'या एक ऐसा बंजारा हूं, जिसका कोई घर न हो।' . चलता हूं, उठता हूं, बैठता हूं; लेकिन न तो कहीं पहुंचना है, न कोई मंजिल है, न कोई घर है। बेघर हूं। ठीक संन्यास का यही अर्थ है : बेघर! जिसका कोई घर नहीं है। - इसका यह मतलब नहीं है कि जो घर छोड़ कर भाग गया। जिसका घर हो, वह छोड़ कर भाग भी सकता है। जिसका घर न हो, वह छोड़ कर भी कहां भाग जाएगा? बेघर एक आंतरिक दशा है, होमलेसनेस एक आंतरिक दशा है। लेकिन हम हर दशा को धोखा करने के लिए इंतजाम कर लेते हैं। एक घर है, उसे मैं मानता हूं मेरा घर है; वह मान्यता ही गलत है। फिर मैं दूसरी मान्यता खड़ी करता हूं कि अब मैं इस घर का त्याग करता हूं। फिर मैं जाकर प्रचार करता हूं कि मैंने घर का त्याग कर दिया। वह घर, पहली बात, कभी मेरा था ही नहीं। लाओत्से कहता है, मैं एक बंजारा हूं, जिसका कोई घर नहीं है। यह थोड़ा समझने जैसा है। क्योंकि लाओत्से संन्यासी भी नहीं है। लाओत्से ने कभी कोई संन्यास नहीं लिया। लाओत्से ने कभी कोई संन्यास की घोषणा नहीं की। लाओत्से ने कभी कुछ त्यागा नहीं, छोड़ा नहीं। क्योंकि लाओत्से कहता है, मेरा कुछ हो तो मैं छोड़ भी सकू, मेरा कुछ हो तो मैं त्याग भी सकू; मैं तो वैसा हूं, घुमक्कड़, आवारा, खानाबदोश, जिसका न कोई घर है, न कोई ठिकाना है। इसको अगर हम भीतरी अर्थों में समझें तो इसका अर्थ हुआ कि ऐसा व्यक्ति कहीं पहुंचने के लिए उत्सुक नहीं है; कहीं जाने की कोई त्वरा, कोई आकांक्षा, कोई अभीप्सा, कोई इच्छा नहीं है। कहीं कोई मंजिल नहीं है, जहां 19
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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