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धार्मिक व्यक्ति अजनबी व्यक्ति हैं
हो जाता है। अनैतिक आदमी को समाज के साथ तकलीफ होती है, बेचैनी होती है; क्योंकि पूरा समाज उसके खिलाफ पड़ता है। वह क्या कर रहा है, ठीक है या गलत है, इसका बहुत मूल्य नहीं है। लेकिन असमायोजन होता है, मैल-एडजस्टमेंट हो जाता है; असुविधा होती है, कष्ट होता है। समाज उसको दंड भी देगा; क्योंकि जो आदमी समाज की व्यवस्था के प्रतिकूल चलेगा, वह आदमी खतरनाक है समाज के लिए। अगर ऐसे लोगों को चलने दिया जाए तो समाज की सारी व्यवस्था जीर्ण-शीर्ण हो जाएगी। तो उसे दंड देना जरूरी है। जो समाज की मान कर चलेगा, समाज उसको आदर देगा; स्वभावतः उसको पुरस्कार देगा। लेकिन इससे धर्म का कोई संबंध नहीं है।
लाओत्से कहता है, 'लोग जिससे डरते हैं, उससे डरना ही चाहिए।' नैतिक होना ठीक है। 'लेकिन अफसोस कि जागरण की सुबह अभी भी कितनी दूर है!'
और अगर तुम पूरे नैतिक भी हो गए तो भी जागरण की सुबह बहुत दूर है। जागरण की सुबह किसे मिलती है?
लाओत्से दूसरे हिस्से में कहता है, 'दुनिया के लोग मजे कर रहे हैं, मानो वे यज्ञ के भोज में शरीक हों। मानो वे वसंत ऋतु में खुली छत पर खड़े हों। मैं अकेला ही शांत और सौम्य हूं, जैसे मुझे कोई काम ही न हो। मैं उस नवजात शिशु जैसा हूं जो अभी मुस्कुरा भी नहीं सकता। या वह बंजारा हूं, जिसका कोई घर न हो।'
धार्मिक आदमी को ऐसा प्रतीत होगा। दुनिया के लोग मजे कर रहे हैं, यह व्यंग्य है गहरा। और लाओत्से तीखे व्यंग्य कर सकता है। वह कह रहा है, दुनिया के लोग मजे कर रहे हैं; दुनिया के लोग जिसे मजा समझते हैं, वह कर रहे हैं। एक अकेला मैं ही अभागा हूं कि मजे के बाहर पड़ गया हूं। वे सब ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे किसी उत्सव के भोज में सम्मिलित हुए हैं। प्रतिपल भोज चल रहा है, उत्सव चल रहा है। ऐसा लगता है कि वसंत की ऋतु है और वे सब खुली छत पर आनंदित हैं, उन पर वसंत बरस रहा है। मैं अकेला ही शांत और सौम्य हूं, जैसे मुझे कोई काम ही न हो। इस बड़े व्यापार में, इस बड़े उत्सव में, इस बड़े जगत में, जहां सब तरफ मौज और मजा चल रहा है, एक मैं बेकाम मालूम पड़ता हूं।
अंग्रेजी के शब्द बहुत कीमती हैं : आई अलोन एम माइल्ड लाइक वन अनएंप्लायड, लाइक ए न्यू बॉर्न बेब दैट कैन नॉट यट स्माइल, अनअटैच्ड लाइक वन विदाउट ए होम। मैं अकेला ही शांत और सौम्य हूं। न तो इस मजे में मुझे कुछ मजा मालूम होता है, न इस उत्सव में मुझे कोई उत्सव दिखाई पड़ता है। और अगर यही लोगों का एकमात्र व्यवसाय है तो मैं अनएंप्लायड हूं। अगर यह मजा करना, यह मौज, यह उत्सव ही अगर एकमात्र धंधा है तो मैं बिलकुल बिना धंधे के हूं। मेरे पास कोई धंधा नहीं है।
जिसे लोग मजा कह रहे हैं, मौज कह रहे हैं, वह लाओत्से को उनकी समस्त पीड़ाओं का, उनके दुखों का आधार है। लाओत्से देखेगा तो आपके सब सुख और आपके सब दुख उसे जुड़े हुए दिखाई पड़ते हैं। आपको दिखाई नहीं पड़ते हैं। आप समझते हैं, सुख अलग बात है, दुख अलग बात है। आप समझते हैं, सुख इकट्ठा कर लो और दुख को फेंक दो काट कर। लाओत्से जब देखता है तो वह देखता है, तुम जब सुख को इकट्ठा करते हो, तब तुम्हें पता नहीं कि तुम अपने दुख इकट्ठे कर रहे हो। और जब तुम मजा कर रहे हो, तभी तुम्हारी उदासी सघन होती जा रही है। और यह भी संभव है कि तुम मजा सिर्फ इसीलिए कर रहे हो, ताकि तुम अपनी उदासी को भूल सको।
और अक्सर ऐसा है। जो लोग हंसते हुए दिखाई पड़ते हैं, वे वे ही लोग हैं, जिनके भीतर सिवाय रुदन के और कुछ भी नहीं है, आंसुओं के सिवाय कुछ भी नहीं है। मगर वे हंसते हैं खिलखिला कर। हंसते हैं खिलखिला कर, किसी और को धोखा देने के लिए नहीं; अपनी ही खिलखिलाहट की आवाज अपने को ही धोखा दे देती है।
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