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ताओ उपनिषद भाग ३
गरीबी मिटानी बड़ी मुश्किल बात है। वे पांच प्रतिशत किसी न किसी अर्थ में अमीर होंगे ही। अर्थ बदल सकते हैं। कभी उनकी अमीरी मकान की होगी, कभी उनकी अमीरी ताकत की होगी, कभी उनकी अमीरी ज्ञान की होगी, कभी उनकी अमीरी काव्य की, कला की होगी; लेकिन एक हिस्सा अमीर होगा, एक हिस्सा गरीब होगा।
गरीबी और अमीरी का यह संदर्भ अगर खयाल में रहे तो समाजवाद या साम्यवाद से संस्कार और कर्म के सिद्धांत में कोई अंतर नहीं पड़ता है। हम बदल सकते हैं, परिस्थिति बदल सकते हैं, लेकिन व्यक्ति के भीतर की जो क्षमताएं हैं, उन्हें बदलना आसान नहीं है। उन्हें व्यक्ति ही जब बदलना चाहे, तब बदल सकता है।
पूछा है कि जब हम पुनर्जन्म लेते हैं, तो हिसाब-किताब कहां रहता है? क्या रहता हूँ?
आप हैं हिसाब-किताब। आपके अलावा कहीं हिसाब-किताब नहीं रहता। कोई जरूरत नहीं है। आप ही हैं करने वाले, आप ही हैं भोगने वाले, आप ही हैं हिसाब-किताब। आप खाता-बही हैं पूरा अपना। जो-जो आप कर रहे हैं, वह प्रतिपल आपको बदल रहा है। हर कृत्य आपकी बदलाहट है। और हर कृत्य आपका जन्म है। और हर . कृत्य के साथ आप नया आदमी अपने भीतर निर्मित कर रहे हैं। वही है हिसाब-किताब। अलग रखने की कोई भी जरूरत नहीं है। कोई प्रयोजन भी नहीं है। आपको जान कर ही आपका पूरा हिसाब-किताब जाना जा सकता है। आपका एक-एक कृत्य बताता है कि आपकी आदतें क्या हैं, गहरे संस्कार क्या हैं।
__अब जैसे मैंने संत फ्रांसिस की बात कही; यह आदमी कहता है कि मुझे कोई धोखा दे जाए तो भी मैं भरोसा ही करूंगा। यह इसके एक गहरे संस्कार की खबर है। इसने भरोसे का संस्कार बनाया है। तो कोई आदमी धोखा देकर इतनी आसानी से तोड़ नहीं सकता। बहुत मुश्किल है इसके संस्कार को तोड़ना। और जब इसका संस्कार टूटता नहीं धोखा देने से, तो और मजबूत हो जाता है। प्रत्येक चीज मजबूत होती है पुनरुक्ति से।
आपको कोई धोखा न भी दे, कोई आदमी आपके कमरे में ऐसे ही चला आए, तो ही जो पहला खयाल उठता है वह भरोसे का नहीं होता। अभी इसने कुछ किया नहीं है। न आपकी गर्दन दबाई, न कोई आपका सामान ले भागा; लेकिन जो पहला खयाल आपके भीतर उठता है वह यह उठता है कि पुलिस को आवाज दें, क्या करें। अभी इसने कुछ भी तो नहीं किया। अभी इसके संबंध में कोई भी निर्णय उचित नहीं है लेना। लेकिन आपने निर्णय गहरे में ले ही लिया। ऐसा है कुछ कि हमें, कोई आदमी बुरा है, इसके लिए प्रमाण की जरूरत नहीं होती। वह तो हमारे संस्कार से ही मिल जाती है खबर हमें। कोई आदमी भला है, तो हमें प्रमाण की जरूरत होती है। गैर-भरोसा हमारी आदत है। भरोसा हमारी मजबूरी है। कोई मानता ही नहीं और ऐसा व्यवहार किए जाता है कि हमें भरोसा करना पड़ता है। लेकिन गैर-भरोसा हमारी आदत है।
आपको लगता है कि आप कभी-कभी क्रोध करते हैं। गलती है आपकी। क्रोध आपकी आदत है; आप कभी-कभी ऐसा होता है जब क्रोध में नहीं होते। लेकिन इतना कम होता है यह कि आपको पता ही नहीं चलता। इसलिए आप सोचते हैं कि कभी-कभी आप क्रोध में होते हैं। बस आपका क्रोध ऐसा है कि कभी-कभी सौ डिग्री पर उबलता हुआ होता है, और कभी ल्यूकवार्म, कुनकुना। कुनकुना क्रोध आपको पता ही नहीं चलता; क्योंकि वह आपकी आदत है। वह आप जिंदगी से वैसे ही हैं। कभी-कभी जब यह कुनकुना क्रोध भी नहीं होता आप में, तब क्षण भर को आपको झलक मिलती है प्रेम की। अन्यथा नहीं मिलती। फिर कठिनाई यह है कि जितना आपका क्रोध का संस्कार है, उतना ज्यादा आप क्रोध करते हैं; जितना ज्यादा क्रोध करते हैं, उतना संस्कार मजबूत होता चला जाता है। हम अपने ही कारागृहों में बंद होते चले जाते हैं। इसे कहीं से तोड़ना पड़े।
आपको लगता है
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आपका क्रोध एसा
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