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________________ श्रद्धा, संस्कार, पुनर्जन्म, कीर्तन व भगवत्ता दो बातें खयाल रखें। एक, अगर मैं कहता कि आपका कर्म का फल आप भोग रहे हैं, तब तो तोड़ने का कोई उपाय नहीं था। समझ लें फर्क। अगर मैंने कोई कर्म किया है और उसके कारण मैं आज क्रोधित हो रहा हूं तो मुझे होना ही पड़ेगा। कोई उपाय नहीं है। लेकिन मैं कहता हूं कर्म का फल तो तत्काल मिल जाता है, सिर्फ संस्कार रह जाते हैं। संस्कार का अर्थ है, केवल एक खास ढंग का काम करने की वृत्ति। मजबूरी नहीं। इसलिए आप चाहें तो तत्काल अपने को बदल सकते हैं। चाहें तो तत्काल बदल सकते हैं, क्योंकि यह सिर्फ केवल एक आदत है। कभी आपने खयाल किया कि कुछ बातें आप केवल आदत के कारण किए चले जाते हैं? केवल आदत के कारण! कुछ और वजह नहीं होती। आदत को तोड़ना कठिन है, लेकिन असंभव नहीं है। और कभी-कभी जरा सी बात आदत को तुड़वा देती है। जरा सी बात। __ अभी अमरीका के कुछ मनोवैज्ञानिक, जो रियल थैरेपी के प्रतिपादक हैं। वे कहते हैं, एक यथार्थ मनोचिकित्सा। वे बड़े अनूठे प्रयोग कर रहे हैं, और बड़े काम के प्रयोग हैं। वे कहते हैं, एक आदमी को जिंदगी भर समझाओ कि सिगरेट मत पीयो, मत पीयो। पच्चीस दफे छोड़ता है, फिर शुरू कर देता है। शराब पीता है, छोड़ता है, फिर शुरू कर देता है। कोई उपाय नहीं होता। वे कहते हैं, आपकी थैरेपी रियल नहीं है, यथार्थ नहीं है। क्योंकि शराब है वास्तविक चीज और आपका समझाना है केवल शब्द। शराब है एक यथार्थ और शब्द हैं सिर्फ सिद्धांत। ये नहीं तोड़ पाएंगे। तो वे कहते हैं, कुछ और किया जाना जरूरी है। वे क्या करते हैं? अब उन्होंने एक इंजेक्शन ईजाद किया है। शराबी को वह इंजेक्शन रात में दे दिया जाता है। उसे पता भी नहीं चलता है। या उन्होंने गोलियां भी ईजाद की हैं। वे उसको खिला दी जाती हैं। उन गोलियों के बाद जब भी वह शराब पीता है, तो नासिया पैदा होता है; बड़ी बेचैनी पैदा होती है, वोमिट होती हैं और सारा शरीर झर-झर कंपने लगता है। और रो-रोआं इतनी पीड़ा से भर जाता है कि नरक उपस्थित हो गया। वह जो इंजेक्शन है, उसके और शराब के मिलने से यह परिणाम होता है। वह आदमी दुबारा हाथ में शराब नहीं ले सकता। जैसे ही वह शराब हाथ में लेता है, सब उसे याद आ जाता है जो हुआ। और हजारों साल समझाने से जो नहीं होता वह एक इंजेक्शन से क्यों हो जाता है? क्या हो गया? वह आदत थी सिर्फ एक। लेकिन अब आदत के विपरीत एक बड़ा दुख खड़ा हो गया। वह आदत इतनी बड़ी नहीं थी कि इस दुख के बावजूद भी...। आमतौर से हम सोचते हैं कि लोग शराब दुख के बावजूद भी पीते हैं। हम गलत सोचते हैं। लोग कहते हैं कि एक आदमी शराब पी रहा है, उसकी पत्नी दुख में पड़ी है, उसके बच्चे दुख में पड़े हैं, फिर भी शराब पीए चला जा रहा है। इतना दुख हो रहा है, फिर भी! आप गलती में हैं। हो सकता है, यह दुख देना भी शराब पीने का एक हिस्सा हो। शायद वह और किसी तरह से दुख देने में समर्थ न हो, या उतना आक्रामक न हो, इस बारीक तरकीब से वह दुख भी दे लेता है। अपना दुख भी भुला लेता है, दूसरों को दुख भी दे लेता है। दोनों काम कर लेता है। नहीं, इससे कोई अंतर नहीं पड़ेगा। बल्कि यह भी हो सकता है कि पत्नी दुखी दिखाई न पड़े और बच्चे बड़े प्रसन्न दिखाई पड़ें और सब कहें कि पिताजी, आप मजे से पीए चले जाओ, आप चौबीस घंटे पीओ, तो शायद वह चौंक कर खड़ा भी हो जाए कि मामला क्या है! कोई दुखी नहीं हो रहा और मैं शराब पीए चला जा रहा हूं! शायद शराब का रस ही चला जाए। जिंदगी बड़ी जटिल है। लेकिन ये रियल थैरेपी के लोग कहते हैं कि अगर किसी भी आदत को तोड़ना है तो उस आदत को इतने बड़े दुख के साथ जोड़ देना जरूरी है कि वह जो पुरानी सिर्फ वृत्ति की वजह से आदमी बह जाता था, वह दुख बीच में खड़ा हो जाए और उसको चुन कर जाना पड़े कि अगर मैं जाता हूं आदत में तो यह दुख झेलना पड़ेगा। बड़ी हैरानी की बात है, आदतें आसानी से बदल जाती हैं। 261
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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