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श्रद्धा, संस्कार, पुनर्जन्म, कीर्तब व भगवत्ता
यह केवल आदमियों में होता तो हम सोचते, शायद आदमी की समाज-व्यवस्था का परिणाम है। वैज्ञानिकों ने चूहों पर प्रयोग किए हैं, खरगोशों पर प्रयोग किए हैं, भेड़ों पर प्रयोग किए हैं; वे पांच प्रतिशत...। आपने सुना है न, भेड़ें कतार बांध कर चलती हैं। लेकिन किसी के तो पीछे चलती हैं। पांच प्रतिशत भेड़ें आगे भी चलती हैं। सभी भेड़ें पीछे नहीं चलतीं, पांच प्रतिशत भेड़ें आगे भी चलती हैं। वे पांच प्रतिशत भेड़ों को अलग कर लो, बाकी झंड एकदम केआटिक हो जाता है। उसकी कुछ समझ में नहीं आता अब क्या होगा।
जो लोग जू में काम करते हैं, अजायबघरों में काम करते हैं, जहां बड़े-बड़े-लंदन या मास्को में-जहां बड़े-बड़े अजायबघर हैं, उन अजायबघरों में काम करने वाले लोगों को पता है कि जब भी नए बंदर आते हैं, तो उनमें से पांच प्रतिशत तत्काल अलग कर लेने होते हैं। वे लीडर्स हैं, पोलिटीशियंस हैं। उनको अलग कर लेना पड़ता है। वे उपद्रव मचा देंगे। उनको अलग कर लेने के बाद बाकी सब डोसाइल हैं, बिलकुल अनुशासन मान लेते हैं।
इससे भी बड़ी मजे की बात जो है, वह यह पता चली है कि जेलखानों में जो अपराधी हैं; राजधानियों में जो राजनीतिज्ञ हैं; मंदिरों में, चर्चों में, गिरजाघरों में जो पुरोहित हैं; युनिवर्सिटीज में, विश्वविद्यालयों में, कालेजों में जो पंडित हैं; ये पांच प्रतिशत हैं सब मिला कर।।
यह जरा जटिल बात है। क्योंकि एक लंदन के जू में प्रयोग किया जा रहा था कि अगर बंदरों को ठीक से भोजन, ठीक से सुविधा, उनको कोई अड़चन न दी जाए, जगह दी जाए, तो वे जो पांच प्रतिशत प्रतिभाशाली लोग हैं, वे बाकी शेष बंदरों को अनुशासित रखने में सहयोगी होते हैं। उनको गड़बड़ नहीं करने देते। वे पांच प्रतिशत नेतृत्व ग्रहण कर लेते हैं। अगर तकलीफ दी जाए, भोजन कम हो, सुविधा कम हो, अड़चन हो, तो वे पांच प्रतिशत क्रिमिनल हो जाते हैं, अपराधी हो जाते हैं। और वे पांच प्रतिशत बाकी को उपद्रव करवा कर, हड़ताल या कुछ न कुछ, कुछ न कुछ करवाते हैं।
वैज्ञानिकों का यह कहना है कि अपराधी और राजनीतिज्ञ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसलिए आप कभी देखें, जब तक राजनीतिज्ञ ताकत में नहीं होता, तब तक वह हड़ताल करवाता है। जब वह ताकत में हो जाता है, तब वह हड़ताल तुड़वाता है। यह बड़े मजे की बात है। यह वही बंदर वाला नियम है, उसमें कुछ फर्क नहीं है। जब तक राजनीतिज्ञ ताकत के बाहर है, तब तक वह सब तरह के उपद्रव को क्रांति कहता है। जब वह ताकत में आ जाता है, सब तरह की क्रांति को वह उपद्रव कहता है। जब वह ताकत में होता है, तब वह कहता है कि लोग अपराधी हैं जो उपद्रव कर रहे हैं। जब वह ताकत के बाहर होता है, तब वह कहता है कि लोग बगावती हैं, विद्रोही हैं। उसकी भाषा बदल जाती है। ताकत में आते से ही वह अनुशासन की बात करता है; और वह कहता है, अगर अनुशासन रहेगा तो सुख-शांति सब आ जाएगी। ताकत के बाहर कर दो कि वह कहता है, बगावत चाहिए, क्रांति चाहिए, बिना क्रांति के कुछ भी नहीं हो सकता। क्रांति से ही सुख आएगा।
लेकिन चाहे अपराधी हों, चाहे राजनीतिज्ञ हों, यह पांच प्रतिशत ही है मनुष्य के पास। - आदमियों को छोड़ दें, पशुओं को छोड़ दें, जिन लोगों ने वनस्पति पर बहुत जीवन भर प्रयोग किए हैं, वे कहते हैं कि अफ्रीका के जंगल में भी जो वृक्ष सारी परेशानी और संघर्ष को पार करके जंगल के ऊपर उठ कर सूरज तक पहुंच जाते हैं, उनकी संख्या पांच प्रतिशत है। अगर एक पानी का सरोवर हो और उसमें मछलियां हों और आप जहर डाल दें, तो पांच प्रतिशत मछलियां ही हैं जो उस जहर से बचने की चेष्टा करती हैं, बाकी तो राजी हो जाती हैं।
आपके शरीर में जब कोई बीमारी प्रवेश करती है, तो आपके शरीर के सेल्स में भी पांच प्रतिशत ही हैं जो उसको रेसिस्ट करते हैं, उसको लड़ते हैं। अगर वे पांच प्रतिशत अलग कर दिए जाएं, आपके शरीर में फिर कोई रेसिस्टेंस, कोई अवरोधक शक्ति नहीं रह जाती। तब कोई भी बीमारी प्रवेश कर सकती है।
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