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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ आपने एक जिंदगी में हजार बार क्रोध किया, तो आप वही आदमी नहीं हो सकते जिसने एक भी बार क्रोध नहीं किया। हजार बार क्रोध किया, हजार बार आपने फल पाया। जिस आदमी ने एक भी बार क्रोध नहीं किया, उसने एक भी बार फल नहीं पाया। आप पर हजार चोटें हैं क्रोध करने की और फल पाने की। आपका व्यक्तित्व हजार घावों से भर गया। माना कि वे घाव सूख गए; लेकिन उनके निशान रह जाएंगे। उन निशानों का नाम संस्कार है। कर्म करते हैं हम, फल तत्काल मिल जाता है। लेकिन संस्कार रह जाता है। संस्कार को समझ लेना जरूरी है। थोड़ा सूक्ष्म है। हम इस कमरे में एक पानी का गिलास लुढ़का दें; पानी बह जाएगा। सुबह धूप आएगी, पानी उड़ जाएगा। लेकिन एक सूखी रेखा कमरे में छूट जाएगी। वह सूखी रेखा पानी की है? पानी अब बिलकुल नहीं, इसलिए उसको पानी का कहना ठीक नहीं मालूम पड़ता। क्योंकि पानी की एक बूंद भी नहीं रह गई वहां, सब उड़ गई है। वह सूखी रेखा पानी की है, यह कहना उचित नहीं है। लेकिन फिर भी पानी की ही है। क्योंकि पानी के बहने से ही बन गई थी-इस कमरे की धूल पर। वह संस्कार है। सूख गया सब, पानी बिलकुल नहीं बचा; फिर भी रेखा रह गई। अब आप दुबारा पानी डालें, तो बहुत संभावना यह है कि मुखी रेखा को पकड़ कर वह पानी बहे। संस्कार का मतलब होता है टेंडेंसी। अब उस सूखी रेखा की यह वृत्ति होगी कि पानी मिले तो उससे बह जाए; क्योंकि लीस्ट रेसिस्टेंस के कारण। अगर और कहीं से पानी को बहना पड़े तो फिर से रास्ता बनाना पड़ेगा, धूल काटनी पड़ेगी। उतनी झंझट पानी भी नहीं लेना चाहता। जहां धूल कटी है और रास्ता बना है, उसी से बह जाता है। जिस आदमी ने कल दिन भर क्रोध किया, आज सुबह वह उठेगा क्रोध की सूखी रेखा के साथ। वह सिर्फ टेंडेंसी है। फल तो उसे कल ही मिल गया; जब क्रोध किया, तभी फल मिल गया। लेकिन क्रोध उसने किया और फल मिला, तो उसके व्यक्तित्व में एक सूखी रेखा क्रोध की बन गई। आज सुबह जब वह उठेगा, तो वह जो सूखी रेखा है, वह तत्पर है। जरा सा भी मौका मिला, कोई भी वेग उठा, वह सूखी रेखा उसको बहा देगी अपने में से। क्रोध पुनः प्रकट हो जाएगा। जब हम एक जन्म के बाद पैदा होते हैं, तो हम संस्कार लेकर पैदा होते हैं। वह जो हमने पिछले जन्म में किया है, और जन्मों-जन्मों में किया है, वही हमारा व्यक्तित्व है। वे सब सूखी रेखाएं लेकर हम पैदा होते हैं। इसलिए दो बच्चों में भेद होता है। इसलिए नहीं कि उनके पिछले जन्मों का कर्मों का फल उनको अभी भोगना है। फल तो वे भोग चुके। लेकिन फल भोगने के बाद भी जो वृत्तियां शेष रह गईं, जो वृत्तियों का प्रभाव शेष रह गया, जो-जो उन्होंने किया उसकी जो-जो पंक्तिबद्ध उनके ऊपर रेखाएं रह गईं, वे जो आदतें रह गईं, उनको लेकर बच्चा जन्म रहा है। इसलिए दो बच्चे अलग-अलग हैं। जिन मित्रों ने भी सवाल पूछा है, उनके सवाल में यही ध्वनि है कि अगर ऐसा है, तब तो फिर कर्म-फल का सिद्धांत समाप्त हो गया। क्योंकि तत्काल हमें फल मिल जाता है, तो मरते वक्त सब लेखा-जोखा पूरा हो जाता है। . तब तो सब व्यक्ति समान पैदा होने चाहिए, क्योंकि लेखा-जोखा पूरा हो गया। लेखा-जोखा जरूर पूरा हो गया। लेकिन हर आदमी ने लेखा-जोखा अलग-अलग ढंग से पूरा किया है। और हर आदमी के लेखे-जोखे में अलग-अलग घटनाएं घटी हैं। और हर आदमी ने अलग-अलग संस्कार अर्जित कर लिए हैं। उन संस्कारों को लेकर वह पैदा होता है। एक मित्र ने पूछा है, कोई आदमी अंधा पैदा हो जाता है, कोई आदमी गरीब पैदा हो जाता है। क्या कारण है कि कोई सोने की चम्मचें लेकर पैदा होता है। 256
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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