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________________ श्रद्धा, संस्कार, पुनर्जन्म, कीर्तन व भगवत्ता जितना कुरूप है। अगर इतने लोग सच में ही ईश्वर में भरोसा करते हैं, तो इनकी जिंदगी में जो सुगंध, जो सुवास आनी चाहिए, उसका तो कहीं कोई पता नहीं चलता। सिर्फ दुर्गंध आती है। यह भरोसा झूठा है। यह भरोसा ऊपरी है। यह भरोसा दिखाऊ है। तो इसे मैं कहूंगा अंधविश्वास।। जो क्रांति ले आए आपके जीवन में, वह श्रद्धा है। और जो आपकी जिंदगी में एक स्थिरता लगा दे, स्टैगनेंसी पैदा कर दे, और आप एक ही जगह बंद तालाब की तरह सड़ते रहें, वह अंधविश्वास है। जो मुल्क अंधविश्वासी हैं, वे बंद डबरे में सड़ते रहते हैं। श्रद्धा तो एक बहाव है, एक तीव्र गति है। श्रद्धालु होना आसान नहीं है। क्योंकि श्रद्धा का अर्थ है: अपने को बदलने की तैयारी। बुद्ध के पास अनेक लोग आते हैं। बुद्ध के पास आते हैं तो वह कहते हैं : बुद्धं शरणं गच्छामि! हम बुद्ध की शरण जाते हैं। एक युवक वैशाली में बुद्ध के पास आया। और उसने कहा कि मैं आपकी शरण आता हूं। तो बुद्ध ने पूछा, तुम मेरी शरण आते हो, यह अपना उत्तरदायित्व टालने के लिए तो नहीं? ऐसा तो नहीं है कि अब से तुम समझो। अब से तुम्हारी कृपा से कुछ हो तो ठीक है। अगर यह शरण में आना सिर्फ दायित्व टालना हो, तो तुम शरण नहीं आते, मेरे सिर पड़ते हो। और अगर यह शरण में आना सिर्फ एक आंतरिक क्रांति की शुरुआत हो, तो ही सार्थक है। मेरे पास भी लोग आते हैं। वे आकर कहते हैं कि हम तो कमजोर हैं, हमसे तो कुछ हो नहीं सकता, अब आप सम्हालो। एक सज्जन अभी-अभी आए। वे दस वर्ष से मुझे जानते हैं। दस वर्ष से मैं भी उन्हें जानता हूं। बस इस जानने के अतिरिक्त और कोई संबंध नहीं है। अभी आए और वह मुझसे बोले कि दस वर्ष हो गए, और अभी तक कुछ हुआ नहीं है। मैंने पूछा कि मैं समझा नहीं। उन्होंने कहा, दस वर्ष से आपको जानता हूं, अभी तक कुछ हुआ नहीं है। कुछ करके दिखाइए! अपराधी मैं हूं। और उन्होंने काफी काम किया कि दस वर्ष से मुझे जानते हैं। वे भी कह सकते हैं कि उनकी मुझ पर श्रद्धा है। वह श्रद्धा नहीं है, वह अंधविश्वास है। और वह अंधविश्वास आत्मघाती है। क्योंकि उसमें मेरा कोई नुकसान नहीं हो रहा है। अगर वे इस भरोसे बैठे हैं कि मैं कुछ करूं और होगा, तो कभी भी नहीं होगा। उन्हें ही कुछ करना पड़ेगा। हां, कोई करने को तैयार हो तो यह सारा जगत उसको साथ देने को तैयार है। कोई बैठने को तैयार हो तो यह सारा जगत उसको बैठाने को भी तैयार है। अस्तित्व सहयोगी है। आप नरक जा रहे हैं तो अस्तित्व आपको नरक की तरफ ले जाता है। आप स्वर्ग जा रहे हैं तो अस्तित्व आपको स्वर्ग की तरफ ले जाता है। लेकिन जाते सदा आप हैं। निर्णय आपका, दायित्व आपका। - आपकी श्रद्धा आपको रूपांतरित करने की कीमिया बने, तो समझना कि सम्यक श्रद्धा है। एक मित्र ने पूछा है कि-आँर एक ने नहीं, बहुत मित्रों ने, कोई बीस मित्रों ने वही सवाल पूछा है-पूछा है कि आपने कहा कि प्रत्येक कर्म का फल तत्काल मिल जाता है। अगर प्रत्येक कर्म का फल तत्काल मिल जाता है तो फिर एक आदमी अंधा और एक आदमी गरीब और एक आदमी अमीर क्यों पैदा होते हैं? अगर तत्काल फल मिल जाता है तो फिर जन्म-जन्म में भेद क्यों पड़ता है? इस भेद का कारण समझ लें। फल तो तत्काल मिलता है, फिर भी भेद पड़ता है। और भेद इसलिए पड़ता है कि तत्काल मिले हुए फल का जो इकट्ठा जोड़ है, वह आप हैं। उसका जोड़ कहीं किसी ईश्वर के हाथ में नहीं है, वह जोड़ आप हैं। आप जो भी एक जिंदगी में करते हैं, उस सबका परिणाम हैं। 255
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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