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________________ प्रकाश का चुराना ज्ञानोपलब्धि हैं 227 पड़ गया। ऐसे तो हजारों जेलखानों में, पश्चिम के सारे बड़े जेलखानों में उस पर प्रयोग किए गए। पुलिस के पास जितने उपाय थे, सब उपाय किए गए। और इतना कम समय उसको दिया गया खोलने का कि चाबी भी हो तो भी नहीं खोल सकते। चाबी भी तो समय लेगी न ताले को खोलने में ! आखिर ताले में चाबी को जाना; और फिर ताला अगर उलझा हुआ हो और होशियारी से बनाया गया हो और गणित का उसमें हिसाब हो, तो बहुत मुश्किल है। समय तो लगेगा। उसको बांध कर डाल दिया है पानी के भीतर, अब जितनी देर वह पानी के भीतर सांस ले सकता है, उतना ही समय है। जितनी देर सांस रोक सकता है, कुछ सेकेंडं । और हर ताले को वह पानी के भीतर से खोल कर बाहर आ जाएगा। हर हथकड़ी को उसने खोल कर बता दिया। हर जेलखाने के बाहर आकर खड़ा हो गया । और उसने कहा कि मैं कोई चमत्कारी नहीं हूं, मेरे पास कोई चमत्कार नहीं, कोई सिद्धि नहीं। मैं सिर्फ कुशल हूं। सिर्फ एक बार दिक्कत में पड़ गया; मजाक हो गई। जब सब ताले वह खोल चुका, तो स्काटलैंड यार्ड ने एक मजाक किया। दरवाजे के भीतर उसको जेल में बंद किया और दरवाजा अटकाया, ताला लगाया नहीं। वह मुश्किल में पड़ गया। वह बेचारा लगा कर अपना मन ताला खोलने की सोचता रहा होगा। ताला था नहीं; खोलने का कोई उपाय नहीं था। अटक गया, पहली दफा, एक ही दफा । आप कितना ही इंतजाम कर लें बाहर, सब इंतजाम तोड़ा जा सकता है। और आप भी जानते हैं कि जो इंतजाम किया जा सकता है, वह तोड़ा जा सकता है। इसलिए भय बना ही रहता है, असुरक्षा बनी ही रहती है। फिर जितना आप इंतजाम कर लेते हैं, उतनी असुरक्षा बढ़ जाती है । होता यह है कि किस पर करिए भरोसा ? एक पहरेदार दरवाजे पर खड़ा कर दिया। अब पहरेदार पर एक पहरेदार खड़ा करना पड़े; उस पर एक पहरेदार खड़ा करना पड़े। कहां किस पर करिए भरोसा? और आखिरी आदमी तो खतरनाक रहेगा ही। एक कड़ी तो आपको असुरक्षित रखनी ही पड़ेगी। इसलिए लाओत्से कहता है कि ये सारे जो इंतजाम पर इंतजाम हैं, सुरक्षा पर सुरक्षा है, यह बेमानी है। एक ही सुरक्षा है । और वह सुरक्षा है: पूरी तरह असुरक्षा को स्वीकार कर लेना । पूरी तरह असुरक्षा को स्वीकार कर लेना । जिसने मान ही लिया कि असुरक्षित हूं, अब कोई भय न रहा । यह उस हालत में आ गया, जिसमें हुडनी आ गया। दरवाजा खुला ही था और खोल न पाया। जो आदमी असुरक्षित है, उसकी इस जगत में कोई असुरक्षा नहीं है। असुरक्षा का भय ही समाप्त हो गया। ऐसा नहीं है कि उसकी मौत नहीं होगी। और ऐसा भी नहीं है कि कोई उसको छुरा मार दे तो वह नहीं मरेगा। मौत भी होगी, मरेगा भी; लेकिन असुरक्षा का कोई भय नहीं है। मौत भी उसे प्रियतम का मिलन होगी और छुरा भी उसी की भेंट। इससे कोई अंतर नहीं पड़ेगा। जो असुरक्षित होने को राजी है, उसकी सुरक्षा पूर्ण है। जो सुरक्षा की चेष्टा में लगा रहेगा, उसकी असुरक्षा बढ़ती चली जाती है। 'ठीक से बंधी गांठ के लिए रस्सी की कोई जरूरत नहीं है; फिर भी उसे अनबंधा नहीं किया जा सकता। संत लोगों का कल्याण करने में सक्षम हैं; इसी कारण उनके लिए कोई परित्यक्त नहीं है।' यह थोड़ी सी सूक्ष्म बात है। लाओत्से कहता है कि संतों के लिए कोई आदमी इतना बुरा नहीं है कि संत न हो सके । 'देयरफोर दिसेज इज़ गुड एट हेल्पिंग मैन, फॉर दैट रीजन देयर इज़ नो वन रिजेक्टेड एज यूजलेस ।' अगर कोई संत आपसे कहे कि तुम पापी हो और तुम्हें मैं स्वीकार नहीं कर सकता, तो समझना कि वह संत नहीं है। यह तो ऐसा ही हुआ कि एक डाक्टर किसी मरीज को कहे कि तुम मरीज हो, तुम्हें मैं कैसे स्वीकार कर सकता हूं? मरीज के लिए ही उसका होना है। संत का होना ही उसके लिए है, जो कि जीवन में भटक गया, खो गया। लेकिन अगर संत कहे कि तुम अपात्र हो तो जानना कि संत स्वयं अपात्र है । अपात्रता की भाषा संत की भाषा नहीं है । अपात्रता •
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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