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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ की भाषा उन कमजोर साधुओं की भाषा है, जो लोगों को बदलने की कीमिया जिनके पास नहीं है। तो वे उनको ही चुनते हैं, जो पात्र हैं। पात्र का मतलब यह कि जिनको बदलने के लिए उनको कुछ भी न करना पड़ेगा। एक गांव में बुद्ध आए हैं। और रास्ते में जब वे आ रहे थे, तो गांव की वेश्या दूसरे गांव जा रही थी। और उसने बुद्ध को कहा कि आप गांव जा रहे हैं; वर्षों से मैं प्रतीक्षा करती थी। और आज मजबूरी है कि मुझे दूसरे गांव जाना पड़ रहा है। लेकिन सांझ होते-होते हर हालत में लौट आऊंगी। तो जब तक मैं न लौट आऊं, बोलना मत।। सारा गांव इकट्ठा हो गया। पंडित, पुजारी, ज्ञानी, सब आकर बैठ गए। और बुद्ध बार-बार देखने लगे-वह वेश्या अब तक नहीं आई है। आखिर एक आदमी ने कहा, आप शुरू क्यों नहीं करते, सब तो आ चुके हैं। गांव में जो भी आने योग्य थे, सब आ चुके हैं। अब किसकी प्रतीक्षा है? बुद्ध ने कहा कि किसी की प्रतीक्षा है। जिसके लिए बोलने मैं आया हूं, वह अभी मौजूद नहीं। लोगों ने चारों तरफ देखा, कोई ऐसा आदमी गांव में नहीं था जो धार्मिक हो और मौजूद न हो। कोई प्रतिष्ठित आदमी ऐसा न था जो गांव में हो और मौजूद न हो। किसकी प्रतीक्षा है? और तब अचानक वेश्या आई और बुद्ध ने बोलना शुरू किया। गांव बड़ा चिंतित हो गया। बोलने के बाद गांव के लोगों ने बुद्ध से कहा, क्या आप इस वेश्या की प्रतीक्षा कर रहे थे? इस अपात्र की? बुद्ध ने कहा, जो पात्र हैं, वे मेरे बिना भी तर जाएंगे। जो अपात्र हैं, उनके लिए ही मैं रुका हूं। लेकिन ध्यान रहे, जो अपने को पात्र मानता है, समझता है, उससे बड़ा अपात्र नहीं होता। और जो मानता है कि मैं अपात्र हूं, यह मानना ही उसकी पात्रता बन जाती है। यह विनम्रता उसके लिए द्वार बन जाती है। संत किसी के लिए परित्यक्त नहीं करते। कोई भी निरुपयोगी नहीं है। इससे भी गहरी बात दूसरे सूत्र में है, 'संत सभी चीजों की परख रखते हैं; इसी कारण उनके लिए कुछ भी त्याज्य नहीं है।' यह और भी कठिन है। 'ही इज़ गुड एट सेविंग थिंग्स; फॉर दैट रीजन देयर इज़ नथिंग रिजेक्टेड।' जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसका संत उपयोग करना नहीं जानते। उन्हें जहर दे दें, वे उसकी औषधि बना लेंगे। उन्हें जहर दे दें, वे उसकी औषधि बना लेंगे। उनके पास क्रोध हो, वे उसमें से दया का फूल खिला लेंगे। उनके पास कामवासना हो, उसी में ब्रह्मचर्य की सुगंध उठेगी। उनके पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे वे त्यागते हैं। रूपांतरित करते हैं, ट्रांसफार्म करते हैं। दो तरह के लोग हैं इस जगत में। एक वे, जो अपने को काट-काट कर सोचते हैं कि आत्मा को पा लेंगे। तो जो-जो उन्हें गलत लगता है, उसे काटते चले जाते हैं। लेकिन उन्हें पता नहीं, जो उन्हें गलत लगता है, उसे काट कर वे अपनी ही ऊर्जा को काट रहे हैं। और सब काटने के बाद अपना क्रोध काट दें, अपना सेक्स काट दें, अपना लोभ काट दें-सब काट दें, और तब आपको पता चलेगा आप बचे ही नहीं। काटने का ढंग आत्मघाती है, स्युसाइडल है। रूपांतरण वास्तविक धर्म है। संत रूपांतरित करते हैं, जो भी उनके पास है। इस विराट अस्तित्व ने उन्हें जो भी दिया है, उसे वे सौभाग्य मान कर स्वीकार करते हैं। और उसमें जो छिपा है, उसे प्रकट करने की कोशिश करते हैं। ऐसा किया जा सकता है अब कि आदमी को हम सेक्स से बिलकुल मुक्त कर सकते हैं वैज्ञानिक विधि से। अब कोई कठिनाई नहीं है। हम आदमी को बिलकुल क्रोधहीन कर सकते हैं वैज्ञानिक विधि से। क्योंकि क्रोध को पैदा होने के लिए कुछ रासायनिक तत्व जरूरी हैं। वे रासायनिक तत्व बहुत थोड़े से हैं। खून में उनको बाहर निकाला जा सकता है। आप क्रोध नहीं कर पाएंगे फिर। 228]
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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