SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ३ है वह प्रकाश की है, उससे बड़ी कोई गति अभी तक नहीं है। वैज्ञानिक कहते हैं, प्रकाश की गति के यान बन जाएं, एक लाख छियासी हजार मील प्रति सेकेंड की रफ्तार से चलें, तो भी जो निकटतम तारा है वह हमसे चालीस प्रकाश वर्ष दूर है। मतलब अगर इतनी रफ्तार से आदमी जाए तो चालीस साल में पहुंचेगा और चालीस साल में वापस आएगा। अस्सी साल में आशा नहीं है उसकी कि वह बचे। और अगर वह बच भी जाए तो जिन्होंने भेजा था उनसे उसकी मुलाकात न होगी। और जिनसे उनकी मुलाकात होगी-हिप्पी और इन सबसे-वे उसको कुछ समझेंगे नहीं कि काहे के लिए आए हैं? क्या प्रयोजन है? कहां गए थे? इस घटना से एक कल्पना पैदा हुई। और वह कल्पना यह है कि अगर हमें कभी भी इतने दूर की यात्रा करनी तो उसका उपाय यान नहीं है, कोई माध्यम नहीं है, प्रोसेस नहीं है-छलांग! बड़ा मुश्किल मामला है। वैज्ञानिक कहते हैं आज नहीं कल-अभी कल्पना है-हम एक ऐसा यंत्र खोज लेंगे कि एक आदमी को उस यंत्र में रख दें, एंड ही डिसएपीयर्स फ्रॉम हियर, वह यहां से विलीन हो गया, एंड देन ही एपीयर्स ऑन ए प्लैनेट, ऑन ए स्टार। और बीच की प्रोसेस गोल, बीच में कोई उपाय नहीं। यहां से अप्रकट हो जाता है, शून्य हो जाता है, और वहां प्रकट हो जाता है। जब तक हम ऐसा कोई उपाय न खोज लें, तब तक तारों तक नहीं पहुंचा जा सकता। लेकिन आदमी पहुंच कर रहेगा। कोई उपाय खोजा जा सकता है। और अगर इलेक्ट्रान एक जगह से विलीन हो जाता है और दूसरी जगह प्रकट हो जाता है, तो आदमी भी इलेक्ट्रान का जोड़ है, इसलिए अड़चन नहीं है। गणित में अड़चन नहीं है। यह हो सकता है। क्योंकि अगर इलेक्ट्रान कर ही रहे हैं सदा से यह, तो आज नहीं कल आदमी भी क्यों न कर सके? तब हमें पहली दफे छलांग का पता चलेगा कि छलांग क्या है। लेकिन प्रज्ञावादी सदा से कहते रहे हैं कि जो पूर्णता है, वह प्रज्ञा की है। बुद्धि तो हिसाब लगाती है। हिसाब में भूल-चूक हो सकती है। जहां हिसाब ही नहीं है और निष्कर्ष सीधा है, वहीं, वहीं पूर्णता संभव है। 'ठीक से बंद हुए द्वार में और किसी प्रकार का बोल्ट लगाना अनावश्यक है। फिर भी उसे खोला नहीं जा सकता।' लेकिन हम जीवन में हमेशा एक के ऊपर एक ताले लगाए चले जाते हैं। उसका कारण है, भीतर हम असुरक्षित हैं। कितने ही ताले लगाएं, कोई अंतर नहीं पड़ता। तालों पर ताले लगाए चले जाते हैं, कोई अंतर नहीं पड़ता। असुरक्षा भीतर है। लाओत्से कहता है, जो ठीक से सुरक्षित है, कुछ भी हो जाए जगत में, वह असुरक्षित नहीं होता। और ठीक से सुरक्षा क्या है ? ठीक से सुरक्षित वही है-वह नहीं जिसने सब सुरक्षा के इंतजाम कर लिए, वह नहीं। आपने दरवाजे पर ताला लगा लिया, खिड़कियों पर ताले लगा दिए, सब कर लिया, फिर भी आप सुरक्षित नहीं हैं। सब ताले तोड़े जा सकते हैं। क्योंकि जिस बुद्धि से ताले लगते हैं, वही बुद्धि बाहर भी है। और ध्यान रहे, लगाने वालों से खोलने वालों के पास सदा ज्यादा बुद्धि होती है। कम बुद्धि वाले लगाने का काम करते हैं, क्योंकि डरे रहते हैं। ज्यादा बुद्धि वाले खोलने का काम करते हैं। इसलिए कितने ही ताले लगाओ, कोई खोल लेगा। हुडनी ने पश्चिम में सब तरह के ताले खोल कर बताए। ऐसा कोई ताला नहीं था, जो हुडनी नहीं खोल लेगा। और बिना चाबी के। और हुडनी कोई साईंबाबा नहीं था। और हुडनी कहता था कि मेरे हाथ में कोई मंत्र नहीं है, कोई सिद्धि नहीं है। मैं सिर्फ कुशल हूं। हुडनी बहुत ईमानदार आदमी था। इतने ईमानदार आदमी भारत के चमत्कारी साधुओं में भी खोजना मुश्किल हैं। हुडनी ने कहा कि मैं सिर्फ कुशल हूं; बस। ट्रिक्स हैं। . हुडनी पर सब तरह के तालों का प्रयोग किया गया। सिर्फ एक बार वह असफल हुआ; और वह इसलिए हुआ कि दरवाजा खुला था और ताला डाला नहीं गया था। और इसलिए वह नहीं निकल पाया। एक बार झंझट में 226
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy