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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ आपको मैं प्रेम करता हूं। राह पर आप मिले और मैंने आपको गले से लगा लिया। नाम न दें इसे सुख का या दुख का अभी, कोई नाम न दें। सिर्फ सीधा यह तथ्य कि मैं आपको गले से दबा रहा हूं; मेरी हड्डियां, मेरी चमड़ी आपको स्पर्श कर रही हैं; आपकी हड्डियां और चमड़ी मुझे स्पर्श कर रही हैं। इसको कोई नाम न दें कि यह आलिंगन है, सुख है, दुख है, कोई नाम न दें। सिर्फ यह तथ्य, यह फैक्ट कि क्या घटित हो रहा है। तब आपको बड़ा मुश्किल होगा कहना कि इसे सुख कहें कि दुख कहें। और अगर आप इसे सुख कहें, कहना चाहें कि नहीं, सुख है, और मैं आपको अपनी छाती से लगाए खड़ा ही रहूं; कितनी देर यह सुख रहेगा? एक क्षण, दो क्षण, पांच क्षण, फिर आसपास भीड़ इकट्ठी होने लगेगी और लोग झांकने लगेंगे कि क्या हो गया? और फिर आप बेचैन होने लगेंगे, और फिर आपके माथे पर पसीना आने लगेगा, और आप छूटना चाहेंगे, बचना चाहेंगे। वह जो सुख था, वह कब दुख बन गया, कभी आपने भीतर परीक्षण किया? किस घड़ी आकर सुख दुख बनना शुरू हो गया? और अगर मैं न ही छोडूं? . सुना है मैंने कि नादिरशाह ने ऐसा मजाक एक बार किया था। नादिर का प्रेम था एक युवती से; लेकिन युवती उस पर कोई ध्यान नहीं देती थी। नादिर ने सब उपाय किए थे। चाहता तो वह उठवा कर हरम में डलवा देता। लेकिन पुरुष को सुख मिलता है जीतने में; जबर्दस्ती करने में सारा सुख खो जाता है। चाहता था कि वह स्त्री अपने से आए। एक दिन अचानक उसे पता चला कि उस स्त्री का, नादिर का जो सिपाही है, उसका द्वारपाल जो है, उससे प्रेम है। नादिर रात पहुंचा और जब उसने अपनी आंख से उन दोनों को आलिंगन में देख लिया तो उसने उनको वहीं बंधवाया, महल बुलवाया। दोनों को नग्न किया, आलिंगन में बांध कर सामने एक खंभे से बंधवा दिया। दोनों आलिंगन में बंधे हैं खंभे से। बड़ा गहरा मजाक हुआ। और बड़ी कठिन सजा हो गई। ये दोनों प्रेमी एक-दूसरे के पास होने को तड़पते थे। चोरी से कभी मिल पाते थे; क्योंकि नादिर का डर भी था; खतरा भी था। सब खतरे उठा कर मिलते थे क्षण भर को तो स्वर्ग मालूम होता था। अब दोनों नग्न एक-दूसरे की बाहों में खंभे से बंधे खड़े थे। घड़ी, दो घड़ी के बाद ही एक-दूसरे के शरीर से बदबू आने लगी; एक-दूसरे की तरफ देखने का मन न रहा। जब कहीं बंधा ही हो कोई आदमी किसी के साथ तो फिर देखने को मन नहीं रह जाता। विवाह में यही परिणाम होता है। दो आदमी बंधे हैं एक-दूसरे से। थोड़े दिन में घबड़ाहट हो जाती है शुरू। विवाह बड़ी मजाक है, नादिर जैसी मजाक है। कहते हैं कि पंद्रह घंटे बाद...। पेशाब भी बह गया, मल-मूत्र हो गया, बदबू फैल गई। बहुत भयंकर मजाक हो गई। सब सौंदर्य खो गया। सब स्वर्ग नष्ट हो गया; नरक हो गया। पंद्रह घंटे बाद नादिर ने दोनों को छुड़वा दिया। कहानी कहती है कि वे दोनों फिर कभी एक-दूसरे को नहीं देखे। जो वहां से भागे, उस खंभे से, फिर कभी जीवन में दुबारा नहीं मिले। क्या हुआ? जिसे सुख जाना था, वह दुख में परिणत हो गया। किसी भी सुख को जरा ज्यादा खींच दो, दुख हो जाएगा; जरा सा ज्यादा खींच दो। लेकिन जो दुख हो सकता है, उसका अर्थ हुआ कि वह दुख रहा ही होगा। नहीं तो हो कैसे जाएगा? क्वांटिटी के बढ़ने से क्वालिटी अगर बदलती हो, परिमाण के बढ़ने से, घटने से अगर गुण बदलता हो तो उसका अर्थ है कि गुण छिपा हुआ रहा ही होगा। आपको प्रतीत नहीं हो रहा था, क्योंकि मात्रा कम थी। मात्रा सघन हो गई, आपको प्रतीत होने लगा। किसी भी दुख की मात्रा को भी बदल दो तो सुख हो जाता है। सुख की मात्रा को भी बदल दो तो दुख हो जाता है। दुख का भी अभ्यास कर लो तो सुख हो जाता है। दुख सुख हो जाते हैं; सुख दुख हो जाते हैं। फासले शायद शब्दों के हैं; यथार्थ का फासला नहीं है। लाओत्से कहता है, हां और न में कोई फर्क नहीं है।
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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